वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का पक्ष: सिर्फ राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव, संपत्ति नहीं छीनी जाएगी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 21-05-2025
"Center's stand in Supreme Court on Waqf Amendment Act: Only change in revenue records, property will not be taken away"

 

आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली  

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 21 मई 2025 को वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पर सुनवाई की, जिसमें केंद्र सरकार ने इस अधिनियम के किसी भी अंतरिम स्थगन (interim stay) का विरोध किया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह अधिनियम विस्तृत विचार-विमर्श के बाद पारित किया गया था और इसमें किसी भी वक्फ संपत्ति की जब्ती का कोई प्रावधान नहीं है.

मेहता ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 3C के तहत, यदि कोई वक्फ संपत्ति सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर रही है, तो केवल राजस्व रिकॉर्ड में संशोधन किया जाएगा; संपत्ति का वास्तविक स्वामित्व अदालत द्वारा निर्धारित किया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया से केवल राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव होगा, और वास्तविक स्वामित्व का निर्धारण वक्फ ट्रिब्यूनल या उच्च न्यायालयों द्वारा किया जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि इस अधिनियम के तहत, वक्फ संपत्तियों की पहचान और पंजीकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया है, जिससे किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी या गलत दावों से बचा जा सके.

दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं ने इस अधिनियम के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी है, विशेष रूप से धारा 3C को, जो सरकारी अधिकारियों को वक्फ संपत्तियों की पहचान और स्वामित्व निर्धारण की शक्ति देती है. उनका कहना है कि यह प्रावधान बिना उचित न्यायिक प्रक्रिया के वक्फ संपत्तियों की पहचान बदलने का अधिकार देता है, जो संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है.

अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है और अगले सुनवाई की तिथि 5मई 2025निर्धारित की है. इससे पहले, 17अप्रैल 2025को, केंद्र सरकार ने अदालत को आश्वस्त किया था कि वक्फ परिषदों और बोर्डों में कोई नई नियुक्तियां नहीं की जाएंगी और 'वक्फ बाय यूज़र' संपत्तियों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा, जब तक अदालत इस मामले में अंतिम निर्णय नहीं देती.

इस मामले की सुनवाई में अदालत ने यह भी कहा था कि वक्फ बाय यूज़र संपत्तियों को बिना उचित दस्तावेजों के पहचानने का प्रयास गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि कई ऐतिहासिक मस्जिदों और कब्रिस्तानों के पास पंजीकरण या बिक्री के दस्तावेज नहीं हैं. अदालत ने यह भी सवाल उठाया था कि क्या गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों में प्रतिनिधित्व देना उचित है, और क्या केंद्र सरकार हिंदू धर्म के ट्रस्टों में मुसलमानों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करेगी.

कुल मिलाकर, यह मामला वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, धार्मिक स्वतंत्रता और राज्य के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है. अदालत के आगामी निर्णय से यह स्पष्ट होगा कि क्या यह अधिनियम संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है या नहीं.