डल झील की पृष्ठभूमि में बसा एसकेआईसीसी का हरियाली से भरा लॉन एक जीवंत साहित्यिक उत्सव में तब्दील हो गया, जब चिनार पुस्तक महोत्सव 2025 का भव्य शुभारंभ हुआ. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस नौ दिवसीय आयोजन का उद्घाटन करते हुए इसे "युवाओं की कल्पनाओं को उड़ान देने वाला पर्व" करार दिया.
उद्घाटन के बाद उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पुस्तक मेले का जायजा लेते हुए
जम्मू-कश्मीर में पहली बार इस पैमाने पर आयोजित किए गए इस पुस्तक मेले में सैकड़ों स्कूली छात्र, शिक्षक, लेखक, प्रकाशक और शिक्षा से जुड़े लोग उमड़ पड़े. उद्घाटन समारोह में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा, "किताबें केवल पढ़ने की चीज़ नहीं होतीं, वे जीवन की साथी होती हैं. हमें अपने बच्चों को मोबाइल और स्क्रीन से हटाकर फिर से किताबों की दुनिया से जोड़ना होगा."
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसे "ज्ञान और संस्कृति का महाकुंभ" बताया. उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर का हर बच्चा सोचने, कल्पना करने और ज़िम्मेदारी से निर्णय लेने में सक्षम बने, और यह तभी होगा जब वह पढ़ने की आदत अपनाएगा.
उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा पुस्तकालयों को डिजिटल रूप देने और पढ़ाई को अधिक सुलभ बनाने की योजनाओं पर भी ज़ोर दिया.इस पुस्तक महोत्सव में 100 से अधिक स्टॉल लगे हैं, जहाँ अंग्रेज़ी, हिंदी, उर्दू और कश्मीरी में किताबें उपलब्ध हैं—कथा, कविता, विज्ञान, इतिहास, बाल साहित्य, लोककथाएँ, और भी बहुत कुछ.
राष्ट्रीय और स्थानीय प्रकाशक, एनजीओ और शिक्षा संगठन इसमें सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं.सबसे दिलचस्प दृश्य तब दिखा जब कश्मीर के दूरदराज़ ज़िलों से आए बच्चे पहली बार किताबों की इस रंग-बिरंगी दुनिया से रूबरू हुए.
पुस्तक मेले में विद्यार्थियों का उत्साह देखते बन रहा है
पुलवामा से आए 7वीं के छात्र इरफ़ान अहमद ने मुस्कराते हुए कहा, “मैंने उर्दू की कहानियाँ और विज्ञान की किट खरीदी है. यह मेरी गर्मियों की सबसे यादगार छुट्टी है.”
पहले दिन कहानी लेखन, कविता पाठ और पारंपरिक कश्मीरी जिल्दसाज़ी पर कार्यशालाएँ आयोजित की गईं, जिनमें बच्चों ने पूरे उत्साह के साथ भाग लिया. स्थानीय लेखकों और शिक्षकों से सीधा संवाद बच्चों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं था.
पुस्तक मेले में सांस्कृति कार्यक्रमों का भी लोग लुत्फ उठा रहे हैं
गंदेरबल की शिक्षिका ताहिरा जान ने कहा, “ऐसे आयोजनों से बच्चों का आत्मविश्वास और शब्दकोष दोनों बढ़ता है. हमें चाहिए कि हर स्कूल में साहित्यिक कोने बनें जहाँ छात्र किताबों से संवाद कर सकें.”
आयोजकों के अनुसार, नौ दिन तक चलने वाले इस महोत्सव में हर दिन नए साहित्यिक, रचनात्मक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे. जिस उत्साह के साथ छात्र, शिक्षक और आम लोग इसमें शामिल हो रहे हैं, उसे देखते हुए आयोजक इसे कश्मीर का सालाना बुक फेस्टिवल बनाने की योजना बना रहे हैं.
उद्घाटन कार्यक्रम में पुस्तक प्रेमियों की भीड़ उमड़ पड़ी
डल झील के किनारे किताबों की ये बहती बयार इस बात का प्रमाण है कि वादियों में ज्ञान की एक नई सुबह दस्तक दे रही है—पढ़ने, सोचने और रचने की सुबह.