तिरंगे की यात्रा: 1906 से 1947 तक राष्ट्रीय ध्वज के बदलते रूपों की कहानी

Story by  अर्सला खान | Published by  [email protected] | Date 03-08-2025
Those colours of the tricolour: The journey from 1906 to 1947 and the reason for the change in the national flag
Those colours of the tricolour: The journey from 1906 to 1947 and the reason for the change in the national flag

 

अर्सला खान/नई दिल्ली

भारतीय राष्ट्रीय ध्वज सिर्फ तीन रंगों और एक चक्र का मेल नहीं है, यह आज़ादी की लड़ाई का साक्षी, सामाजिक समरसता का संदेशवाहक और भारत के बदलते राजनीतिक चिंतन का प्रतीक है. 1906 से लेकर 1947 तक, हमारे झंडे की हर डिज़ाइन अपने समय की ज़रूरत और विचारधारा को दर्शाती रही. आइए, इस ऐतिहासिक यात्रा को उस पृष्ठभूमि के साथ समझें, जिसने हर बदलाव को जरूरी बनाया.

1906 – कोलकाता झंडा: शुरुआती चेतना का प्रतीक

7 अगस्त 1906, कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर में पहली बार झंडा फहराया गया.
 
डिज़ाइन

तीन रंग: ऊपर हरा, बीच में पीला, नीचे लाल
बीच में आठ कमल के फूल (आठ प्रांतों का प्रतीक)
लाल पट्टी में सूर्य और चंद्रमा (शौर्य और शांति के प्रतीक)
 
बदलाव की वजह

1905 में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा बंगाल विभाजन किया गया, जिसने पहली बार भारतीय जनता में अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ राजनीतिक चेतना जगाई. इस झंडे ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीय अस्मिता और एकता का पहला प्रतीकात्मक विरोध रचा, लेकिन यह केवल प्रतीकात्मक था, आधिकारिक नहीं.
 
1921 – पिंगली वेंकैया का झंडा: धार्मिक समरसता और स्वदेशी का प्रतीक

महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चरम पर था। भारत को एक ऐसा झंडा चाहिए था जो धार्मिक एकता और आर्थिक आत्मनिर्भरता दोनों को दर्शा सके.
 
 
वेंकैया का प्रस्तावित झंडा:

लाल रंग: हिंदू समुदाय
हरा रंग: मुस्लिम समुदाय
गांधीजी ने सफेद रंग जोड़ा: अन्य समुदाय और शांति
साथ ही चरखा जोड़ा गया: स्वदेशी और श्रम का आदर
 
 
बदलाव की वजह:

देश में हिंदू-मुस्लिम एकता की आवश्यकता.
चरखा उस समय भारतीय आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का प्रतीक बन चुका था.
यह झंडा समावेशिता और उद्देश्यपूर्ण संघर्ष का पहला संगठित प्रतीक बना.
 
1931 – तिरंगे को मिली अस्थायी स्वीकृति: धर्मनिरपेक्ष और राजनीतिक परिपक्वता की ओर

1920 के दशक के अंत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ने लगे थे. चरखा झंडे को लेकर यह भ्रम फैलाया गया कि यह केवल एक धर्म विशेष का झंडा है.
 
1931 में कांग्रेस अधिवेशन (लाहौर):

भगवा: त्याग और बलिदान
सफेद: सच्चाई और शांति
हरा: कृषि और समृद्धि
बीच में चरखा ही रहा
 
बदलाव की वजह:

झंडे को धर्मनिरपेक्ष और राजनीतिक दृष्टि से स्वीकार्य बनाना जरूरी था.
चरखा तब तक राष्ट्रीय स्वाभिमान और आंदोलन का प्रतीक बन चुका था.
यह झंडा आम जनता के साथ-साथ कांग्रेस और क्रांतिकारी दलों को भी सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से जोड़ने में सफल रहा.
 
 
1947 – स्वतंत्र भारत का तिरंगा: संविधानिक और वैश्विक दृष्टिकोण के साथ

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत को एक ऐसा ध्वज चाहिए था जो सभी नागरिकों का प्रतिनिधित्व करे और दुनिया में एक आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र की छवि प्रस्तुत करे.
 
आख़िरी रूप:

वही तीन रंग (भगवा, सफेद, हरा)
लेकिन चरखे की जगह अशोक चक्र (24 तीलियाँ वाला धर्मचक्र) जोड़ा गया
 
बदलाव की वजह

चरखा स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक था, लेकिन स्वतंत्र भारत को वैश्विक सोच और नीति की दिशा में बढ़ना था.
अशोक चक्र धर्म (नीति), न्याय और सतत गति का प्रतीक था, जो संविधान, नीति-निर्देशक सिद्धांतों और समावेशिता के विचार को दर्शाता था.
यह चक्र सम्राट अशोक के धर्मराज्य और न्यायपूर्ण शासन की परंपरा से जुड़ा था, जो आधुनिक भारत के संविधानिक मूल्यों से मेल खाता है.
 
 
 
1906 से 1947 तक भारतीय ध्वज का हर बदलाव एक ऐतिहासिक संदर्भ, राजनीतिक जरूरत, और सांस्कृतिक चेतना से प्रेरित था. झंडा केवल कपड़ा नहीं, बल्कि भारत के आत्मबोध, संघर्ष, एकता और न्याय की यात्रा का जीवंत प्रतीक है.
 
 
 
तिरंगा सिर्फ तीन रंग नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है. हर रंग में इतिहास, हर तीलियों में जिम्मेदारी और हर लहर में संघर्ष की गूंज है.