भारतवर्ष: काज़ी नज़रुल इस्लाम की विरासत को एआई ने दी नई पहचान

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 21-08-2025
First AI song created on Kazi Nazrul Islam
First AI song created on Kazi Nazrul Islam

 

मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली

भारत की सांस्कृतिक और संगीत परंपरा में एक नया अध्याय जुड़ गया है. विद्रोही कवि काज़ी नज़रुल इस्लाम को समर्पित पहला कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आधारित गीत ‘भारतवर्ष’ हाल ही में रिलीज़ किया गया. यह गीत बंगाल की युवा और प्रतिभाशाली गायिका मेखला दासगुप्ता की पहल पर सामने आया, जिसने साहित्य और तकनीक के अनोखे संगम को प्रस्तुत कर नई पीढ़ी के लिए नज़रुल की रचनाओं को जीवंत बना दिया.
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नज़रुल की विरासत और नई पीढ़ी

काज़ी नज़रुल इस्लाम केवल बंगाल ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विरासत हैं. उन्हें ‘विद्रोही कवि’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी कविताओं और गीतों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ जनता के दिलों में क्रांति की आग जगाई.

उनकी रचनाएँ न केवल स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज़ बनीं बल्कि आज भी सामाजिक न्याय, समानता और मानवता के लिए प्रेरणा देती हैं.मगर बदलते समय और डिजिटल दौर में यह चिंता भी उठी कि क्या नई पीढ़ी नज़रुल की कविताओं और गीतों से उतना ही जुड़ पाएगी जितना पिछली पीढ़ियाँ जुड़ी थीं.

इसी सवाल का जवाब मेखला दासगुप्ता ने तकनीक का सहारा लेकर दिया. उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मदद से ऐसा गीत बनाया जो नज़रुल की कालजयी रचनाओं को बच्चों और युवाओं तक आधुनिक रूप में पहुँचाता है.

‘भारतवर्ष’ – गीत का संदेश

‘भारतवर्ष’ केवल एक गीत नहीं है, बल्कि यह इतिहास और तकनीक का अद्भुत मेल है. गीत में नज़रुल की कविताओं के शब्द, उनकी विचारधारा और भारत की सांस्कृतिक विरासत को आधुनिक संगीत और एआई तकनीक के सहारे नए सिरे से सजाया गया है.

यह गीत बच्चों को यह बताने की कोशिश करता है कि स्वतंत्रता, साहस और समानता जैसे मूल्य केवल इतिहास की बातें नहीं, बल्कि आज की पीढ़ी के लिए भी ज़रूरी हैं.

गायिका मेखला दासगुप्ता ने कहा, “इस गीत में कवि की रचना और तकनीक का ऐसा मिश्रण है जो काज़ी नज़रुल इस्लाम की रचनाओं को आज के बच्चों तक एक नए अंदाज़ में पहुँचाता है. हमने इसमें कवि की कई तस्वीरों और भारत की परंपराओं से जुड़े दृश्यों को शामिल किया है ताकि श्रोता केवल सुनें ही नहीं, बल्कि महसूस भी कर सकें.”
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कला और तकनीक का संगम

गीत निर्माण के दौरान कृत्रिम बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल केवल संगीत में ही नहीं, बल्कि विज़ुअल्स में भी किया गया. कवि की तस्वीरों को एआई तकनीक की मदद से इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि दर्शक भारत की परंपराओं और विरासत से फिर से जुड़ सकें.

यह प्रयोग दिखाता है कि किस तरह तकनीक का उपयोग सिर्फ आधुनिकता के लिए नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए भी किया जा सकता है.

गायिका का मानना है कि नज़रुल की रचनाओं को किसी एक गीत या प्रस्तुति में सीमित नहीं किया जा सकता. उनका साहित्य और संगीत इतना व्यापक और गहन है कि हर पीढ़ी उसमें नए अर्थ खोज सकती है.

मेखला कहती हैं, “इस गीत का उद्देश्य नज़रुल की रचनाओं को आधुनिक समय की जरूरतों और सोच के साथ जोड़ना है. ताकि बच्चे और युवा महसूस करें कि यह केवल पुराना साहित्य नहीं, बल्कि उनकी ज़िंदगी से भी गहराई से जुड़ा हुआ है.”

नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा

नज़रुल इस्लाम की रचनाएँ हमें अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने और एकजुट होने का संदेश देती हैं. उनके गीतों और कविताओं में प्रेम, समानता और विद्रोह का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. ‘भारतवर्ष’ गीत इस बात की याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि हर दौर में उसकी रक्षा और पुनर्परिभाषा ज़रूरी है.

इस गीत के माध्यम से बच्चों को यह भी समझाया गया है कि भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक चेतना है. और इस चेतना को जीवित रखने के लिए साहित्य और संगीत का योगदान सबसे बड़ा है.

भारत का यह पहला एआई-आधारित गीत न केवल तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि यह सांस्कृतिक जिम्मेदारी का भी परिचायक है. ‘भारतवर्ष’ यह साबित करता है कि जब कला और तकनीक एक साथ आते हैं, तो परिणाम केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि नई सोच और प्रेरणा भी होते हैं.

काज़ी नज़रुल इस्लाम की रचनाएँ समय की सीमाओं से परे हैं, और मेखला दासगुप्ता का यह प्रयास आने वाली पीढ़ियों को यह समझाने का है कि विद्रोही कवि की आवाज़ आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी सौ साल पहले थी.

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 काज़ी नज़रुल इस्लाम की कुछ कृष्ण भक्ति में डूबी रचनाएं

कृष्ण कन्हइया आओ मन में मोहन मुरली बजाओ।
कान्ति अनुपम नील पद्मासन सुन्दर रूप दिखाओ।
सुनाओ सुमधुर नूपुर गुंजन
“राधा, राधा” करि फिर फिर वन वन
प्रेम-कुंज में फूलसेज पर मोहन रास रचाओ;
मोहन मुरली बजाओ।
राधा नाम लिखे अंग अंग में,
वृन्दावन में फिरो गोपी-संग में,
पहरो गले वनफूल की माला प्रेम का गीत सुनाओ,
मोहन मुरली बजाओ।


जयतू श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण मुरारी शंखचक्र गदा पद्मधारी।
गोपाल गोविन्द मुकुन्द नारायण परमेश्वर प्रभू विश्व-बिहारी।।
सूर नर योगी ऋषि वही नाम गावे,
संसार दुख शोक सब भूल जावे,
ब्रह्मा महेश्वर आनन्द पावे गावत अनन्त ग्रह-नभचारी।।
जनम लेके सब आया ये धराधाम
रोते रोते मैं प्रथम लिया वो नाम।
जाऊंगा छोड़ मैं इस संसार को सुनकर कानों में भयहारी।।
गोपाल गोविन्द मुकुन्द नारायण परमेश्वर प्रभू विश्व-बिहारी


जगजन मोहन संकटहारी
कृष्णमुरारी श्रीकृष्णमुरारी।
रास रचावत श्यामबिहारी
परम योगी प्रभू भवभय-हारी।।
गोपी-जन-रंजन ब्रज-भयहारी,
पुरुषोत्तम प्रभु गोलोक-चारी।।
बंसी बजावत बन वन-चारी
त्रिभुवन-पालक भक्त-भिखारी,
राधाकान्त हरि शिखि-पाखाधारी
कमलापति जय गोपी मनहारी।

 काज़ी नज़रुल इस्लाम का अंतिम सफर

काज़ी नज़रुल इस्लाम अधेड़ उम्र में ‘पिक्‌स रोग’ से ग्रसित हो गए. बीमारी के वे साहित्यकर्म से अलग हो गए. बांग्लादेश सरकार के आमन्त्रण पर वे 1972 में परिवार के साथ ढाका आ गये. उन्हें बांग्लादेश की राष्ट्रीयता प्रदान की गई. 29 अगस्त, 1976 को 77 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया. बांग्लादेश में दुर्गा और कृष्ण को लिखे उनके भजन आज भी पूरी श्रद्धा के साथ गाये जाते हैं.