शरीयत उत्तराधिकार कानून में बदलाव की लड़ाई: वीपी सुहारा की अदालती जंग

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 21-08-2025
V.P.Suhara: A life dedicated to social reform
V.P.Suhara: A life dedicated to social reform

 

वीपी सुहारा के पास यह बताने का समय नहीं है कि वे महिला अधिकारों के लिए एक सक्रिय कार्यकर्ता कैसे बनीं. केरल की एक सक्रिय कार्यकर्ता, वीपी सुहारा कहती हैं, "मेरे जीवन के अनुभवों ने मुझे एक सक्रिय कार्यकर्ता बनाया है." हाल ही में (कम से कम केरल में) उन्होंने दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक लंबा आंदोलन चलाकर सुर्खियाँ बटोरीं, जिसमें उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के सामने आने वाली असमानताओं और अन्याय को दूर करने के लिए शरीयत आवेदन अधिनियम, 1837के उत्तराधिकार प्रावधानों में संशोधन की मांग की. ‘चेंज मेकर्स’के लिए आवाज द वाॅयस की सहयोगी श्रीलता मेनन ने त्रिशूर से वी.पी.सुहारा पर एक विस्तृत रिपोर्ट की है. 

दिल्ली में उन्होंने धमकी दी थी, "अगर इस मामले पर कोई फैसला नहीं लिया गया, तो मैं आत्महत्या कर लूँगी." इस धमकी के बाद केरल के भाजपा सांसद सुरेश गोपी ने संसद में इस मामले को उठाने का वादा करके उन्हें शांत किया. इस कानून पर वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा चल रहा है और यह एक लंबी न्यायिक प्रक्रिया से गुजर रहा है, जिससे सुहारा जैसे कार्यकर्ताओं का धैर्य जवाब दे रहा है.

सुहारा कहती हैं, "चूँकि हमारा जीवन धर्म पर आधारित है, इसलिए हममें से ज़्यादातर महिलाएँ जीवन के अपने अप्रिय अनुभवों को नियति मान लेती हैं, खासकर जब हम इसे सभी मुस्लिम महिलाओं के सार्वभौमिक अनुभव के रूप में देखते हैं."

दिल्ली से अपना मिशन पूरा किए बिना लौटीं सुहारा, राजनीतिक दलों के वादों से धोखा खाने वाली नहीं हैं और न ही वह आसानी से अपनी लड़ाई छोड़ने वाली हैं. वह कहती हैं, "मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि राजनीतिक दल मेरी जैसी महिला कार्यकर्ताओं की बात सुनकर धार्मिक नेताओं को नाराज़ नहीं करेंगे. लेकिन मैं हार नहीं मानूँगी."

महिला अधिकारों के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए, वह कहती हैं कि वह और उनकी साथी कार्यकर्ता 80के दशक के अंत में महिलाओं से बात करने और जागरूकता फैलाने के लिए घर-घर जाती थीं. वे केरल में नारीवादी आंदोलन के दिन थे. हमने देखा कि हम सभी महिला विरोधी कानूनों के कारण पीड़ित थीं.

"जब से हमने इन मुद्दों पर बोलना शुरू किया है, ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएँ आगे आकर अपनी समस्याओं के बारे में बात कर पा रही हैं." सुहारा कहती हैं, "मैं कह सकती हूँ कि मैं उन लोगों में से एक थी जिन्होंने महिलाओं के लिए खुलकर बात करने का माहौल बनाया."

उन्हें लगता है कि नई पीढ़ी ज़्यादा जागरूक है. सोशल मीडिया और आय सृजन के स्वयं सहायता समूह कुदुम्बश्री ने केरल में महिलाओं को सशक्त बनाने में मदद की है.

"मैं उन कई लोगों में से एक हूँ जिन्होंने उस समय आवाज़ उठाने और बदलाव की माँग करने की ज़रूरत महसूस की जब कोई पूछने की हिम्मत नहीं कर रहा था... इसलिए हमने निसा नामक एक संस्था बनाई जिसने कुरान सुन्नत सोसाइटी के साथ मिलकर हमारे पर्सनल लॉ में उत्तराधिकार कानूनों को महिलाओं के ख़िलाफ़ बताते हुए अदालत का दरवाज़ा खटखटाया."

"केरल उच्च न्यायालय में दायर याचिका से हमें कोई मदद नहीं मिली क्योंकि सत्तारूढ़ सरकार ने इसका समर्थन करने से इनकार कर दिया. इसलिए हमें सर्वोच्च न्यायालय में अपील करनी पड़ी, जहाँ यह याचिका अभी फैसले का इंतज़ार कर रही है."

उन्होंने कहा, "मुख्यमंत्री ने अदालत को बताया कि उन्होंने मुस्लिम प्रतिनिधियों से बात की है और उन्हें पर्सनल लॉ में कुछ भी गलत नहीं लगा." राजनीति की दुखद वास्तविकता को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल कभी भी मुस्लिम या किसी भी धार्मिक संस्था के खिलाफ नहीं जाएंगे.