ओलंपिक खेलों में कितना खर्च आता है ?

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 01-08-2024
Narendra Modi with Indian players
Narendra Modi with Indian players

 

नई दिल्ली. हर 4 साल में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेलों का दुनियाभर में गजब का क्रेज है. खेलों के इस महाकुंभ में दुनियाभर के देश और हजारों एथलीट भाग लेते हैं. इस बार ओलंपिक की मेजबानी पेरिस कर रहा है. ओलंपिक खेलों के आयोजन पर हजारों करोड़ रुपये खर्च होते हैं. ऐसे में इसकी मेजबानी करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. अब सवाल ये है कि क्या भारत का मिशन 2036 पूरा हो पाएगा?

मिशन ओलंपिक 2036 की मेजबानी के लिए भारत पूरी तरह से तैयारियों में जुटा हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन और खेल मंत्री मनसुख मंडाविया की देखरेख में एक कमेटी इस सपने को पूरा करने पर कार्य कर रही है. पेरिस ओलंपिक में भारतीय दल के रवाना होने से पहले भी पीएम मोदी ने खिलाड़ियों से बात की.

इस दौरान पीएम मोदी ने खिलाड़ियों से ओलंपिक 2036 की मेजबानी को लेकर भी बात की. इस बात का ऐलान पहले ही हो चुका है कि अगर सब कुछ ठीक रहा, तो भारत 2036 ओलंपिक मेजबानी हासिल करने के लिए दावेदारी पेश करेगा.

अब सवाल है कि क्या ओलंपिक खेलों की मेजबानी से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है, ओलंपिक खेलों का अर्थशास्त्र क्या है और 2024 के पेरिस ओलंपिक की अनुमानित लागत क्या है और क्या भारत के लिए ये सपना साकार करना मुमकिन है.

रिपोर्ट के अनुसार, पेरिस ओलंपिक 2024 की मेजबानी पर 10 बिलियन डॉलर (करीब 83,000 करोड़ रुपये) का खर्च आने की उम्मीद है. हालांकि यह बस अनुमान है. दरअसल, ओलंपिक खेलों में स्टेडियम और खेल सुविधाओं के विकास के साथ पर्यटन, सुरक्षा सहित अन्य सुविधाओं के विस्तार पर मोटा खर्च आता है. ऐसे में छोटे देशों के लिए इसकी मेजबानी करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अनुसार, खेलों की मेजबानी से अधिक नौकरियां पैदा होती हैं. मेजबान देश में पर्यटन को बढ़ावा मिलता है और शहर को आर्थिक लाभ मिलता है.

कम से कम 1960 के बाद से हर ओलंपिक मेजबान ने योजना से ज़्यादा खर्च किया है. हर ओलंपिक खेलों का कैलेंडर लगभग सात साल पहले तय किया जाता है, चाहे उस समय की आर्थिक स्थिति कैसी भी हो. हालांकि, कुल खर्च और कमाई के बारे में पारदर्शिता बहुत कम है.

रिपोर्ट के अनुसार, लंदन ओलंपिक 2012 पर 16.8 बिलियन डॉलर (89,000 करोड़), रियो ओलंपिक 2016 पर 23.6 बिलियन डॉलर (1.55 लाख करोड़) और टोक्यो ओलंपिक 2020 पर 13.7 बिलियन डॉलर (1.04 लाख करोड़ रुपये) खर्च हुए थे. इन आंकड़ों को देखकर ये साफ है कि जिस देश को भी ओलंपिक की मेजबानी करनी होगी उसे एक मोटी रकम खर्च करनी होगी. इसलिए भारत को मेजबानी करनी है, तो एक मोटी रकम जोड़नी होगी.

पिछली बार जब भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में मेजबानी की थी. उस समय हजारों करोड़ रूपए तो खर्च हुए ही, साथ ही खेल की आड़ में एक बड़ा घोटाला भी हुआ, जो देश में अब तक के सबसे बड़े स्कैम में से एक है. हालांकि, भारत ने सफलतापूर्वक खेलों का आयोजन किया. भारत ने जी-20 शिखर सम्मेलन की भी मेजबानी की है.

ऐसे में सामाजिक आर्थिक सशक्तिकरण को ध्यान में रखते हुए भारत ओलंपिक की मेजबानी के लिए एक मजबूत दावेदार है. लेकिन भारत के सामने कई चुनौतियां होंगी और एक मजबूत रणनीति तैयार करनी होगी.

भारत की उम्मीदें अपने खिलाड़ियों से मेडल के साथ-साथ मिशन 2036 की दावेदारी मजबूत करने पर भी है. पीएम मोदी ने खिलाड़ियों से पेरिस में व्यवस्थाओं का अनुभव साझा करने का आग्रह भी किया. यह सभी बातें इस बात की गवाह है कि पेरिस ओलंपिक 2024 भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है. 

 

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