गुलाल गोटा: हिन्दू-मुस्लिम सदभाव का प्रतीक

Story by  फरहान इसराइली | Published by  onikamaheshwari | Date 22-03-2024
Gulal Gota: Symbol of Hindu-Muslim harmony
Gulal Gota: Symbol of Hindu-Muslim harmony

 

फरहान इसराइली/ जयपुर

होली का त्योहार दस्तक दे रहा है. इस साल होली का त्योहार 25 मार्च को मनाया जाएगा. इससे पहले बाजार गुजिया, गुलाल, पिचकारी और दूसरे रंगों से सज गया है. होली में इस बार जयपुर के गुलाल गोटा की मांग बेहद बढ़ गई है. प्राकृतिक रंगों से भरे छोटे गोले आकार के गेंदों को गुलाल गोटा कहा जाता है. ये राजस्थान की राजधानी जयपुर में बनाया जाता है. कुछ मुस्लिम परिवार की कई पीढ़ियां इस गुलाल को बना रही है.

गुलाल गोटा का इस्तेमाल 400 साल पहले जयपुर के शाही राजघराने ने किया था. गुलाबी नगर बसने के समय से गुलाल गोटे केवल पूर्व राजपरिवार और ठिकानेदार ही इस्तेमाल किया करते थे. लेकिन आज गुलाल गोटे की प्रसिद्धि विदेशों तक पहुंच गई है. जिसके चलते विदेशों में गुलाल गोटों की मांग बनी हुई है. अमरीका, इंगलैण्ड, स्वीटजरलैंण्ड, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, थाइलैण्ड आदि देशों के पर्यटक इसे खरीद कर ले जा रहे हैं.

ऐसे बनते है गुलाल गोटे

जयपुर का गुलाल गोटा लाख से निर्मित है. 2-3 ग्राम लाख की छोटी-छोटी गोलियों को एक बांसुरीनुमा नलकी में लगाकर फूंक मारते हुए घुमाया जाता है. धीरे-धीरे यह गुब्बारे की तरह फूल जाता है. फिर धीरे से इसको नलकी में से निकालकर पानी भरे हुए बर्तन में रख दिया जाता है. फिर इसमें प्राकृतिक सुगधिंत गुलाल भरा जाता है. यह गुलाल अरारोट का बना होता है. यह एक दम हर्बल होता है. फिर इस पर कागज चिपका कर पैक कर दिया जाता है. तैयार गुलाल गोटा 15 ग्राम का होता है और यह कागज की तरह पतले होते है. 

उपहार में देने का प्रचलन बढा

आजकल जयपुर वासी दूसरे शहरों में रहने वाले अपने संबंधियों को गुलाल गोटे के पैकेट उपहारस्वरूप भेजते है. यहां से भी कुछ लोग ऐसे है जो कि यहां से गुलाल गोटा खरीदकर दूसरें शहरों में होली मनाते है. गुलाल गोटा अहमदाबाद, सूरत, बडोदरा, मुबंई, नागपुर, पूना, आगरा , मथुरा, वृदावंन आदि जगहों पर भेजा जा रहा है. वहीं विदेशों में अमरीका, इंगलैण्ड , स्वीटजरलैंण्ड, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, थाइलैण्ड जैसे देशों तक लोग इसे ले जाते है.

हिन्दू-मुस्लिम सदभाव का प्रतीक

मोहम्मद सादिक का कहना है कि गुलाल गोटा हिन्दू-मुस्लिम सदभाव व आपसी सहिष्णुता का प्रतीक है. राजशाही के जमाने से यह परपंरा चली आ रही है.आज भी लोग इससे होली खेलना ज्यादा पसंद करते है. आवाज़ से बातचीत में गुलाल बनाने वाले अवाज मोहम्मद ने कहा कि इस बार काफी ज्यादा डिमांड बढ़ने के कारण होली से दो महीने पहले से ही कारिगरों ने इसे बनाना शुरू कर दिया है.

गुलाल गोटा की खास बात है कि ये बेहद पतले और नाजुक होते हैं. कोई भी इसे अपने हाथ से तोड़ सकता है. पहले राजपरिवार होली के समारोह में गुलाल गोटा को जरूर शामिल करते थे. बातचीत में कारीगर परवेज मोहम्मद ने कहा कि 'गुलाल गोटा की मांग कई दूसरे शहरों से भी आ रही है. मंदिर और लोगों के अलावा अब इसका इस्तेमाल इवेंट्स और पार्टी में भी होता है.

ये इसकी बढ़ती मांग का कारण हो सकता है. एक वक्त था कि इस मांग बिल्कुल भी खत्म हो गई थी. हम सभी तब काफी ज्यादा निराश हो गए थे. अब ऑर्डर और डिमांड के बढ़ने के बाद परिस्थित ठीक हो गई है. इसके अनोखेपन के कारण लोग इसे काफी ज्यादा पसंद करते हैं. ये पर्यावरण के अनुकूल है और इससे किसी को नुकसान भी नहीं होता है.'

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