हक मेहर कितना होना चाहिए?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 26-04-2024
Haq mehar
Haq mehar

 

राकेश चौरासिया

इस्लाम में, हक मेहर शादी के समय पति द्वारा पत्नी को दिया जाने वाला एक अनिवार्य उपहार है. यह न केवल पत्नी का वित्तीय अधिकार है, बल्कि उसके सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक भी है. हक मेहर की कोई निश्चित राशि निर्धारित नहीं है, यह पति की क्षमता, पत्नी की इच्छा और सामाजिक रीति-रिवाजों सहित कई कारकों पर निर्भर करता है.

हक मेहर की दो मुख्य किस्में हैं

  • महर-ए-मुस्समः यह वह राशि है, जो शादी के अनुबंध में स्पष्ट रूप से निर्धारित की जाती है.
  • महर-ए-मिसिलः यह वह राशि है, जो पत्नी की सामाजिक स्थिति, सौंदर्य और शिक्षा के आधार पर पति द्वारा स्वेच्छा से दी जाती है.

हक मेहर का महत्व

  • यह पत्नी की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करता है.
  • यह पत्नी के सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक है.
  • यह पति-पत्नी के बीच प्रेम और स्नेह को बढ़ावा देता है.
  • यह सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज प्रथा को खत्म करने में मदद करता है.

ध्यान रखने योग्य बातें

  • पति को अपनी क्षमता के अनुसार ही हक मेहर देना चाहिए. यदि वह गरीब है, तो उसे कम राशि दे सकता है, लेकिन यदि वह अमीर है, तो उसे अधिक राशि देनी चाहिए.
  • ज्यादातर उलमा का कहना है कि हक मेहर 30 तोला चांदी या उसकी कीमत से कम नहीं होना चाहिए.
  • पत्नी को अपनी इच्छा के अनुसार हक मेहर की राशि निर्धारित करने का अधिकार है.
  • हक मेहर की राशि सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुरूप भी होनी चाहिए.

हक मेहर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक अधिकार है. यह पत्नी की वित्तीय सुरक्षा, सम्मान और प्रतिष्ठा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. पति को अपनी क्षमता और पत्नी की इच्छा के अनुसार उचित राशि का हक मेहर देना चाहिए.