करण खान छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री (छॉलीवुड) के प्रमुख अभिनेताओं में से एक हैं. लोक-भाषा में कहें तो उन्हें सुपरस्टार की उपाधि पाने वाले कलाकारों में माना जाता है. उनका काम फिल्मों के अलावा म्यूजिक एल्बमों, वीडियो सांगों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी देखने को मिलता है. करण खान ने मूवी और संगीत वीडियो दोनों क्षेत्रों में काम किया है. उन्होंने काफी सारे छत्तीसगढ़ी एल्बम सांगों में अभिनय किया है, और उनके गाने यूट्यूब आदि प्लेटफार्मों पर काफी लोकप्रिय हुए हैं. उन्होंने डिक्टो करन खान मोना सेन जैसे गीत-एल्बमों में काम किया है.
सैय्यद ताहिर अली उर्फ करण खान सिर्फ फिल्मों तक ही नहीं, बल्कि उन्होंने वीडियो एल्बम्स में भी काम किया है, जिससे उनकी पहुंच और दर्शक-संख्या बढ़ी है.पढ़िए करण खान पर डी चेंज मेकर्स श्रृंखला के तहत छत्तीसगढ़ की पहली विस्तृत रिपोर्ट जिसे रायपुर से लिखा है मंदाकिनी मिश्रा ने.
करण खान की एक अपकमिंग फिल्म में एरी एलेजिया (Arri Alexa) जैसा पेशेवर-ग्रेड कैमरा इस्तेमाल किया गया है, जो कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों में कम देखने को मिलता है. छॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री को बड़े बजट और हाई-एंड टेक्नोलॉजी की कमी रहती है; कैमरा, प्रोडक्शन, पोस्ट-प्रोडक्शन आदि में सीमाएं हैं. करण खान ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं (उच्च गुणवत्ता कैमरे का प्रयोग आदि). छत्तीसगढ़ी फिल्में अक्सर स्थानीय सीमाओं तक ही सीमित होती हैं. उन्हें राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय ध्यान दिलाना मुश्किल हो सकता है. मनोरंजन की दुनिया लगातार बदल रही है; दर्शकों को नई सामग्री, आधुनिक प्रस्तुति, बेहतर तकनीक चाहिए. परंपरा के साथ आधुनिकता का संतुलन बैठाना पड़ता है.
करण खान ने छत्तीसगढ़ी जनता में लोकप्रिय सिनेमा स्टार की छवि अच्छी तरह बनाई है. उनके गानों और फिल्मों के माध्यम से उनकी पहचान सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में है-जो छत्तीसगढ़ की भाषा, परंपरा और जीवनशैली को प्रदर्शित करते हैं. सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता, फैन्स के साथ जुड़ाव, और वीडियो कंटेंट के माध्यम से उनकी पहुंच बढ़ी है.
करण खान छत्तीसगढ़ी सिनेमा के उन कलाकारों में से हैं, जिन्होंने लोकभाषा की फिल्मों में समर्पण, निरंतरता और गुणवत्ता का प्रयास किया है. उनकी सफलता सिर्फ अभिनय दक्षता की वजह से नहीं, बल्कि यह वजह है कि उन्होंने अपने काम में संस्कृति-परंपरा, दर्शकों की अपेक्षाएं, और आधुनिक टेक्नोलॉजी के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है. करण बताते हैं कि भविष्य में यदि बजट, प्रचार, और फिल्म उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार हुआ, तो मेरे यानी करन खान जैसी प्रतिभाएं और भी ऊंचाई पर पहुंचेंगी.
रायपुर में जन्में, संषर्घ में बीता बचपन
करण बताते हैं कि बचपन में अब्बू (पिता स्वर्गीय श्री सैय्यद ज़फ़र अली ) का स्वर्गवास हो गया था, अम्मी (शमशाद बेगम) ने बहुत ही संघर्ष से हम पांचों भाईयों को पढ़ाया लिखाया और पाल-पोस कर बड़ा किया. इस दौरान बड़े भाईयों ने भी बहुत योगदान दिया और मुझे बचपन में कभी कोई तकलीफ़ नहीं होने दिया. अब्बू के स्वर्गवास के बाद हमलोगों को आर्थिक दिक्कतें बहुत आई. मेरी स्कूली शिक्षा माधव राव सप्रे स्कूल बूढापारा रायपुर में हुई और स्कूल पढ़ते हुए ही मैं रंगमंच इप्टा के सम्पर्क में आ गया, आगे बीए फाइनल तक पढाई प्राइवेट किया. इप्टा में मेरे गुरु मिन्हाज असद जी रहे, उनके निर्देशन में मैंने अभिनय की बारीकियां सीखीं.
ऐसे मिली छत्तीसगढ़ी फिल्मों में एंट्री, करन बोले- खुद को साबित करने के लिए करना पड़ा संघर्ष
करण खान बताते हैं कि इप्टा ( इंडियन पीपुल्स थिएटर ऑफ एसोसिएशन ) के अंतर्गत मैंने बहुत से नाटकों का मंचन किया, उसी के साथ ही दूरदर्शन केन्द्र रायपुर से भी कई टेली फिल्मों में अभिनय करने का अवसर मिला. इसके बाद मायानगरी मुंबई पहुंचा. इस दौरान कुछ सीरियल्स में काम किया, लेकिन छत्तीसगढ़ की माटी ने मुझे वापस बुला लिया. इस बीच, छत्तीसगढ़ी फिल्म का दौर आया और मैंने यहां एक्टिंग शुरू की.
करन को छत्तीसगढ़ी फिल्मों में एंट्री आसानी से नहीं मिली, बल्कि इसके लिए संघर्ष करना पड़ा. जगह-जगह स्क्रीन टेस्ट देकर अपने काम को साबित किया. करन बताते हैं कि मेरी पहली फिल्म मोर गंवई गांव असफल रही, लेकिन डायरेक्टर प्रेम चंद्राकर और भूपेन्द्र साहू ने मुझे तोर मया के मारे फिल्म में बतौर एक्टर अवसर दिया. ये फिल्म छत्तीसगढ़ में खूब चली. इसके साथ दर्शकों के साथ लोगों ने भी मेरे एक्टिंग खूब सराहा. इसके बाद से मैंने अब तक लगभग 45के आसपास फिल्मों में मुख्य एक्टर की भूमिका निभा चुका है. इसके अलावा एल्बम्स में सक्रिय भूमिका निभाते हुए अब तक लगभग 3000से अधिक गानों में अभिनय कर एक नया रिकॉर्ड बनाया है.
ऐसे पड़ा सैय्यद ताहिर अली से करन खान नाम
करण की सफल फिल्मों में तोर मया के मारे, मितान 420 , तीजा के लुगरा, लैला टीप टाप छैला अंगूठा छाप, राधे अंगूठाछाप, मोही डारे, बेनाम बादशाह, ससुराल आदि फिल्म है. करण बताते हैं कि आज जब छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री को फलता-फूलता देखता हूं तो बहुत ही अच्छा महसूस करता हूं और दिल को सूकून मिलता है. ऐसा लगता हमारी मेहनत आज रंग ला रही है. साथ ही अपना संघर्ष भी याद आता है. मैं इकलौता कलाकार हूं जिसने साल 2001से आज 2025तक लगातार एक ही प्रोफेशन में काम किया. करन के मुताबिक तोर मया के मारे फिल्म में मेरे किरदार का नाम करन था, जिसे दर्शकों ने इतना पसंद किया और प्यार दिया कि मेरा नाम सैय्यद ताहिर अली से करन खान पड़ गया.
इस फिल्म ने लोगों की छुड़ा दी शराब
करण इकलौते ऐसे अभिनेता हैं, जिसने छत्तीसगढ़ी बायोपिक फिल्म मंदराजी में दाऊ मंदराजी की भूमिका निभाई, जो दर्शकों में अमिट छाप छोड़ी है और बेनाम बादशाह फिल्म से शराब से होने वाले नुकसानों को चरितार्थ किया है. करण ने बताया कि इस फिल्म से प्रेरित होकर कई लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है. आज भी उनके परिवार वालों के मैसेज आते हैं कि आप की फिल्म बेनाम बादशाह देखकर शराब से हमेशा के लिए दूर हो गए और परिवार में खुशियां लौट आई. मैं हमेशा अपनी फिल्म से समाज को एक संदेश देने का प्रयास करता हूं.
15 से ज्यादा सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का मिल चुका है सम्मान
एक्टर करण को 15से अधिक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का सम्मान मिल चुका है. करण बताते हैं कि अब तक सरकार की तरफ से कोई सम्मान नहीं दिया गया है. सरकारी सम्मान न मिलने वजह शायद ये है कि मैंने कभी किसी सरकार से अपने लिए कोई सम्मान मांगा ही नहीं और यह बात सबको मालूम है कि यहां सरकारी सम्मान कैसे मिलता है, इसलिए मुझे इस बात का कोई मलाल भी नहीं है. किसी भी सरकारी सम्मान के मिलने की असली खुशी तब होनी चाहिए जब वो सम्मान बिना मांगे मिले या किसी राजनैतिक दल से जुड़े बिना वो सम्मान मिले तब ही वो असली सम्मान माना जाता है और मुझे उसी पल की प्रतीक्षा है.
सपने पूरा करने का कोई शॉर्टकट नहीं होता
करण के मुताबिक मैंने अपनी फिल्मों के सारे किरदारों को बहुत ही शिद्दत से निभाया है और पूरे छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ से बाहर भी मुझे दर्शकों का इतना प्यार और सम्मान मिला है, जिसके लिए मैं अपने दर्शकों का हमेशा कृतज्ञ रहूंगा. अल्लाह ने मुझे आज जो इज्ज़त शोहरत बक्शी है. इसके लिए मैं अल्लाह रब्बुल इज्ज़त का बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूं. मेरी सफलता में अम्मी जी की दुआएं, पत्नी जहाँआरा और मेरी दोनों बेटियों बेबी अनाबिया अली-बेबी अरौश अली के साथ भी है. मैं युवाओं को यह संदेश देना चाहूंगा कि जीवन में कभी कोई शॉर्टकट नहीं अपनाना चाहिए. कड़ी मेहनत ही सपने पूरा करने का मंत्र है.