कश्मीर की पहली गायिका: राज बेगम की अनसुनी कहानी अब पर्दे पर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-09-2025
Kashmir's first female singer: The untold story of Raj Begum now on screen
Kashmir's first female singer: The untold story of Raj Begum now on screen

 

एहसान फ़ाज़ली/श्रीनगर

कश्मीर की शांत घाटियाँ सदियों से संगीत और कला की गवाह रही हैं, लेकिन एक समय ऐसा था जब समाज की रूढ़िवादी सोच ने कला के सार्वजनिक मंचों पर महिलाओं की भागीदारी को सीमित कर दिया था. ऐसे ही समय में, एक ऐसी महिला ने अपनी आवाज़ से न केवल इस मौन को तोड़ा, बल्कि कश्मीरी संगीत को एक नई दिशा दी. उनका नाम था राज बेगम. हाल ही में उन पर बनी बायोपिक, "सॉन्ग्स ऑफ पैराडाइज", ने उनकी अद्वितीय कहानी को फिर से सुर्खियों में ला दिया है. यह कहानी एक ऐसे साहस की है जिसने सामाजिक और धार्मिक प्रतिबंधों को तोड़कर घाटी के संगीत जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई.

बीसवीं सदी के उत्तरार्ध तक, कश्मीरी लोक रंगमंच अपने चरम पर था, जहाँ महिलाओं की भूमिकाएँ भी पुरुष कलाकार ही निभाते थे, जो महिलाओं की तरह वेश धारण कर गाते और अभिनय करते थे. ऐसे समय में, राज बेगम का मंच पर प्रवेश 1950 के दशक में हुआ. यह वह दौर था जब भारत विभाजन के बाद अपने प्रारंभिक वर्षों में था. रेडियो कश्मीर श्रीनगर (जिसे अब ऑल इंडिया रेडियो, श्रीनगर के नाम से जाना जाता है) कलात्मक और सांस्कृतिक प्रदर्शनों का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन रहा था.

रेडियो कश्मीर ने 1 जुलाई 1948 को अपना काम शुरू किया और 1950 के दशक तक यह महसूस किया गया कि घाटी की समृद्ध सामाजिक, सांस्कृतिक और कलात्मक क्षमता को तलाशने और विकसित करने की बहुत ज़रूरत है.

इसके प्रतिनिधि गाँव-गाँव जाकर लोगों की सामाजिक और शैक्षिक गतिविधियों को रिकॉर्ड करते थे. इस पृष्ठभूमि में, जहाँ कई पुरुष कलाकार सामने आए, वहीं महिला कलाकारों की सख्त ज़रूरत थी.

इस खोज में पहली बार राज बेगम का नाम सामने आया, जो उस समय तक केवल शादियों और अन्य सामाजिक समारोहों में गाया करती थीं. पुराने कलाकारों के अनुसार, उनके इस मुकाम तक पहुँचने का श्रेय गुलाम कादिर लांगो को जाता है, जो रेडियो कश्मीर श्रीनगर के शुरुआती संस्थापकों में से एक थे.

लैंगो ने एक दिन श्रीनगर की गलियों में राज बेगम को घूमते देखा और रेडियो के लिए एक नई प्रतिभा की तलाश को ध्यान में रखते हुए उन्हें रेडियो स्टेशन ले आए. इस प्रकार, रति नामक यह युवा गायिका 1954 में रेडियो कश्मीर श्रीनगर में शामिल हुईं और उन्हें राज बेगम के नाम से पहचान मिली.

वह कश्मीरी लोक और सुगम शास्त्रीय संगीत की एक प्रसिद्ध गायिका बनीं. उनका आगमन कश्मीर में महिलाओं के लिए सार्वजनिक प्रदर्शनों के द्वार खोलने वाला एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने आने वाली कई पीढ़ियों के लिए रास्ता बनाया.

राज बेगम के जीवन पर बनी बायोपिक "सॉन्ग्स ऑफ पैराडाइज" का निर्देशन कश्मीरी फिल्म निर्माता दानिश रेंजो ने किया है. इसका निर्माण कश्मीरी-अमेरिकी निर्माता शफी काजी ने किया है. यह फिल्म फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी के एक्सेल एंटरटेनमेंट बैनर तले रिलीज़ हुई है.

यह फिल्म संगीत, संस्कृति और एक ऐसी महिला के असाधारण साहस को दर्शाती है जिसे दुनिया चुप कराना चाहती थी. ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेज़न प्राइम पर लोकप्रियता हासिल कर रही यह फिल्म, दिवंगत गायिका के जीवन पर बनी पहली फिल्म नहीं है. इससे पहले भी केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने उनके जीवन पर कम से कम दो फिल्में बनाई थीं.

इस बायोपिक में सबा आज़ाद ने युवा राज बेगम की भूमिका निभाई है, जबकि बुजुर्ग कलाकार की भूमिका सोनी राजदान ने निभाई है. फिल्म में राज बेगम के गीतों को नई कश्मीरी गायिका मसरत-उन-निसा ने आवाज़ दी है, जिन्होंने मकबूल शाह करलोरी के गीत "दिल चूर है दिल नीम शमां..." के बोल गाए हैं. मसरत द्वारा राज बेगम के गीतों की प्रस्तुति ने इस उभरती हुई कश्मीरी लड़की को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई है, जो इस बात का प्रमाण है कि राज बेगम की विरासत आज भी जीवित है.

27 मार्च, 1927 को श्रीनगर के मगरमल बाग में जन्मी राज बेगम को उनकी असाधारण प्रतिभा के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें 2002 में पद्मश्री, 2013 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और जम्मू-कश्मीर कला, संस्कृति और भाषा अकादमी सहित कई अन्य सम्मान मिले.

उन्होंने 26 अक्टूबर, 2016 को अपनी मृत्यु तक रेडियो कश्मीर के कार्यक्रमों में भाग लेना जारी रखा. 1960 और 70 के दशक में पली-बढ़ी पीढ़ी आज भी रेडियो कश्मीर श्रीनगर पर प्रसारित होने वाले उनके मनमोहक गीतों को याद करती है. उनके गीत आज भी रेडियो और दूरदर्शन श्रीनगर पर सुबह के कार्यक्रम "तहंज फरमाइश" (आपकी फरमाइश) पर प्रतिदिन प्रसारित होते हैं.

प्रसिद्ध सूफ़ी कलाकार उस्ताद मुहम्मद याक़ूब शेख ने इस बात की पुष्टि की कि राज बेगम पहली महिला गायिका थीं जिनकी आवाज़ रेडियो कश्मीर पर प्रसारित हुई. उनके बाद ही नसीम अख्तर, ज़ोन बेगम और मेहताब बेगम जैसी गायिकाओं ने अपनी पहचान बनाई.

उस्ताद शेख ने बताया कि राज बेगम और नसीम अख्तर को रेडियो के लिए गाने के कारण "समाज की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा." उन्होंने राज बेगम को, जो रेडियो पर हमेशा बुर्का पहनती थीं, बेहद विनम्र और दयालु बताया. उन्होंने कहा कि उनकी अनगिनत उपलब्धियों को हमेशा याद रखा जाएगा और उनके बाद आने वाली महिला कलाकारों ने हमेशा उन्हें अपना आदर्श माना.

बाद में, शमीमा देव, कैलाश मेहरा, सुनीना कौल और आरती टाको जैसी महिला गायिकाएँ भी मंच पर आईं और उन्होंने भी राज बेगम से प्रेरणा ली.राज बेगम सिर्फ एक गायिका नहीं थीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक थीं जिन्होंने अपनी कला का उपयोग सामाजिक बाधाओं को तोड़ने के लिए किया.

उनकी आवाज़ ने कश्मीरी महिलाओं को कला के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने का साहस दिया. उनकी जीवन और संगीत आज भी गूँज रहा है, जो यह साबित करता है कि सच्ची कला और साहस समय और सीमाओं को पार कर जाते हैं.