आवाज द वाॅयस विशेष
भारत की आज़ादी के बाद पहली बार जन्म लेने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जीवन और राजनीति से यह सिद्ध कर दिया है कि संघर्ष और सेवा के संस्कार किसी भी व्यक्ति को असंभव लगने वाली ऊँचाइयों तक पहुँचा सकते हैं. 17 सितंबर 1950 को गुजरात के छोटे से कस्बे वडनगर में जन्मे नरेंद्र दामोदरदास मोदी का बचपन बेहद साधारण परिस्थितियों में बीता.
उनके पिता रेलवे स्टेशन पर चाय बेचकर परिवार का पेट पालते थे और माँ हीराबेन दूसरों के घरों में काम करती थीं. इन्हीं हालातों में पले-बढ़े नरेंद्र मोदी ने गरीबी, अभाव और संघर्ष को जीवन का हिस्सा बनाकर सीखा और यही अनुभव उन्हें भविष्य में करोड़ों भारतीयों की पीड़ा समझने की ताक़त देने वाला बना.
मोदी ने अपने शुरुआती दिनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का रुख किया और एक प्रचारक के रूप में संगठन के अनुशासन और राष्ट्र सेवा का पाठ सीखा. आपातकाल के दिनों में उन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। 1974 के गुजरात नवनिर्माण आंदोलन ने उन्हें राजनीतिक चेतना दी और तभी उन्होंने कविता के माध्यम से तत्कालीन सत्ता को चुनौती दी.
उनकी लिखी पंक्तियाँ—“जब कर्तव्य ने पुकारा तो कदम-कदम बढ़ गए, चौखट चरमरा गए, सिंहासन हिल गए”—यह स्पष्ट करती हैं कि उनका राजनीतिक दृष्टिकोण केवल सत्ता की तलाश नहीं था बल्कि बदलाव का आह्वान था.
2001 में जब गुजरात भूकंप से तबाह हुआ, तब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को राज्य का नेतृत्व सौंपा. मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने अगले तेरह वर्षों तक गुजरात को विकास के एक ऐसे मॉडल से जोड़ा, जिसने राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित किया.
गुजरात का विकास मॉडल धीरे-धीरे भारतीय जनता पार्टी का चुनावी घोषणापत्र और फिर राष्ट्रीय विमर्श का केंद्र बन गया. 2014 में नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में ‘नामदार बनाम कामदार’ और ‘प्रधान सेवक’ की पहचान के साथ चुनावी मैदान में प्रवेश किया। उन्होंने खुद को सत्ता का मालिक नहीं बल्कि जनता का सेवक बताया और यही भाव उनके राजनीतिक सफर की सबसे बड़ी पूंजी बना.
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने सत्ता को विशेषाधिकार नहीं बल्कि सेवा का अवसर बताया. यही वजह रही कि उन्होंने प्रधानमंत्री आवास से लेकर संसद तक हर जगह खुद को ‘प्रधान सेवक’ कहकर संबोधित किया.
उनके कार्यकाल में कई ऐसी योजनाएँ शुरू हुईं, जिन्होंने देश की राजनीति और समाज के रिश्ते को नए ढंग से परिभाषित किया. स्वच्छ भारत अभियान को उन्होंने सरकारी योजना न बनाकर जन आंदोलन बनाया और करोड़ों लोगों को इसमें शामिल किया.
उज्ज्वला योजना ने गरीब महिलाओं को धुएँ से मुक्ति दिलाई और दस करोड़ से अधिक परिवारों तक गैस कनेक्शन पहुँचे. जन धन योजना ने पचास करोड़ से अधिक भारतीयों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ा. आयुष्मान भारत योजना ने पचास करोड़ लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा दी और इसे दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना कहा गया.
मोदी हमेशा कहते रहे कि ये काम उनकी वजह से नहीं बल्कि जनता-जनार्दन के आशीर्वाद और सहभागिता से संभव हुए हैं.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति का एक मानवीय चेहरा उनकी माँ हीराबेन से जुड़ा है। मोदी कई बार बताते हैं कि किस तरह उनकी माँ ने दूसरों के घरों में बर्तन धोकर परिवार को पाला और उसी संघर्ष ने उन्हें हर गरीब के दर्द को समझने की शक्ति दी.
2015 में अमेरिका की यात्रा के दौरान जब फेसबुक मुख्यालय में मार्क जकरबर्ग ने उनसे उनकी सफलता का राज पूछा, तो मोदी भावुक हो उठे और आँसुओं के साथ अपनी माँ के संघर्ष को याद किया. माँ ने उन्हें मुख्यमंत्री बनने पर सिर्फ इतना कहा था—“बेटा, जो सही लगे करो, लेकिन रिश्वत मत लेना।” यही सीख उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी पूंजी बनी.
मोदी के राजनीतिक सफर की एक और पहचान महिला सशक्तिकरण रही है.उन्होंने 2010 में ही स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने की वकालत की थी. प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ पास कराया, जिसे महिला आरक्षण विधेयक कहा जाता है.
उज्ज्वला योजना और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान ने भी महिला सशक्तिकरण को नई गति दी। मोदी बार-बार कहते रहे कि नारी शक्ति हर विकास प्रयास की अग्रदूत है.
तकनीक और नवाचार भी नरेंद्र मोदी के विज़न का अहम हिस्सा रहे हैं. उन्होंने 2010 में ही कहा था—“आईटी प्लस आईटी बराबर आईटी, यानी इंडियन टैलेंट प्लस इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी बराबर इंडिया टुमारो.”
उनके नेतृत्व में डिजिटल इंडिया अभियान शुरू हुआ और भारत ने न सिर्फ मोबाइल कनेक्टिविटी बल्कि डिजिटल भुगतान प्रणाली में भी दुनिया को चौंका दिया. आज भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग और स्पेस टेक्नोलॉजी में अपनी पकड़ मज़बूत कर रहा है.
राष्ट्रवाद और सुरक्षा के मुद्दे पर मोदी का नेतृत्व हमेशा मुखर रहा. उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद को न बख्शा जाएगा और न सहा जाएगा. 2019 के पुलवामा हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर हमला किया और प्रधानमंत्री ने साफ कहा—“घर में घुसकर मारेंगे.”
2025 में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह दिखा दिया कि भारत अब आतंकवाद के आकाओं और उनके सरपरस्तों को अलग-अलग नहीं मानता, बल्कि उन्हें एक ही तराज़ू में तौलकर जवाब देता है.
वैश्विक मंच पर नरेंद्र मोदी ने भारत की साख को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया. उन्होंने योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित कराया.
उन्हें कई देशों ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए, जिनमें सऊदी अरब का ‘शाह अब्दुलअज़ीज़ अवार्ड’, रूस का ‘ऑर्डर ऑफ द होली एपोस्टल एंड्रयू’, फ्रांस का ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर’ और अन्य दर्जनों पुरस्कार शामिल हैं. मोदी ने भारत की विदेश नीति को मजबूती देते हुए यह साबित किया कि आज भारत सिर्फ दक्षिण एशिया का नहीं बल्कि दुनिया का अहम निर्णायक शक्ति केंद्र है.
2024 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और यह जीत भारतीय राजनीति में एक अद्वितीय अध्याय बनी. लगातार तीन बार पूर्ण बहुमत हासिल कर उन्होंने यह साबित किया कि जनता का भरोसा सिर्फ उनके नेतृत्व पर नहीं बल्कि उनके काम और विज़न पर भी है.
उन्होंने जनता को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत का भविष्य आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में तय होगा. मोदी का मंत्र रहा है—“एक ही रास्ता आत्मनिर्भर भारत, एक ही लक्ष्य विकसित भारत.”
नरेंद्र मोदी का राजनीतिक सफर यह दिखाता है कि राजनीति केवल सत्ता पाने का साधन नहीं बल्कि समाज की सेवा का अवसर है. उनका जीवन संघर्षों और अनुभवों से बना है. गरीबी से निकलकर वैश्विक मंच तक पहुँचने वाले मोदी ने यह साबित किया कि जनता के साथ सीधा संवाद, योजनाओं का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाना, परंपरा और आधुनिकता का संगम और अंतरराष्ट्रीय मंच पर दृढ़ उपस्थिति ही किसी नेता की असली पहचान होती है.
आज नरेंद्र मोदी को लोग प्रधानमंत्री से अधिक ‘प्रधान सेवक’ मानते हैं. उनकी राजनीति ने भारतीय लोकतंत्र को यह सीख दी है कि जनता के बीच से निकला नेता ही जनता की सबसे गहरी आकांक्षाओं को पूरा कर सकता है.
यही कारण है कि भारत की राजनीति में नरेंद्र मोदी सिर्फ एक नेता नहीं बल्कि एक युग प्रवर्तक माने जाते हैं, जिनका प्रभाव आने वाले दशकों तक भारतीय राजनीति और समाज पर छाया रहेगा.