चांदी की चप्पलें, लखनऊ की विरासत: मोहम्मद हुसैन का अद्वितीय हुनर

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 09-12-2024
Silver slippers, Lucknow's heritage: The unique craft of Mohammad Husain
Silver slippers, Lucknow's heritage: The unique craft of Mohammad Husain

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 
 
जूता भले ही चांदी-सोने का हो, लेकिन पहना तो पांव में ही जाएगा मगर, शौक भी बड़ी चीज होती है. अब लखनऊ के एक नवाब साहब का दिल किया कि वो और उनकी बेगम चांदी के नागरे-चप्पल पहनेंगे, तो हुक्म की तामील की गई. उनके बोलते ही चांदी के नागरे हाजिर हो गए. किस्से को भले ही दो सौ साल गुजर चुके हैं मगर, वह आज भी लखनऊ के दामन का हिस्सा है. साथ में जीवंत है चांदी के नागरे बनाने वाला परिवार, कारीगर और वही चांदी के नागरे.

लखनऊ हमेशा से ही छुपे हुए शिल्प और कहानियों का खजाना रहा है, और आज आप इस लेख के माध्यम से जानेंगें लखनऊ के आखिरी कारीगर मोहम्मद हुसैन के बारे में जो चांदी की चप्पलें बनाते हैं. नवाबी दौर में, चांदी की जूतियाँ शान-ओ-शौकत का प्रतीक थीं और आज, शादियों में भी इनका इस्तेमाल होता है.
 
 
चांदी की चप्पलें बनाने वाले लखनऊ के मोहम्मद हुसैन

मोहम्मद हुसैन कहते है कि पिछले कुछ वर्षों में चांदी के आभूषणों की मांग बढ़ी है क्योंकि यह लखनऊ में नवविवाहित दुल्हनों के लिए एक लोकप्रिय उपहार है. उनकी दुकान में मुहर्रम के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले अलम जैसे नक़्क़ाशी के कई टुकड़े प्रदर्शित थे. एक चीज़ जो ध्यान आकर्षित करती है वह है चाँदी की चप्पल (चाँदी की चप्पल). चाँदी पर नक्काशी करते हुए.
 
 
मोहम्मद हुसैन कहते है कि चांदी की चप्पल पर नक्काशी करना जटिल है. उनके दादा और पिता ने जो डिजाइन बनाए थे, जैसे फूल और पत्तियों के डिजाइन, वे कहीं अधिक जटिल थे. हालाँकि कई नक्काशी करने वाले हैं, लेकिन चाँदी की चप्पल बनाने वाले केवल हम ही हैं क्योंकि इसके लिए उन्नत कौशल की आवश्यकता होती है.
 
मोहम्मद हुसैन लखनऊ के आखिरी कारीगर 

आपको जानकर हैरानी होगी कि मोहम्मद हुसैन लखनऊ के आखिरी कारीगर हैं जो एक पेशे में हैं. वे कहते हैं कि यह उनके लिए सिर्फ़ एक पेशा नहीं है, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही विरासत है. उनके पूर्वज ईरान से अमरोहा चले गए थे और वहाँ से वे आखिरकार लखनऊ में बस गए. 
 
मोहम्मद हुसैन कहते हैं कि "चांदी की एक जोड़ी चप्पल बनाना कोई आसान काम नहीं है - इसमें लगभग एक सप्ताह, कभी-कभी दस दिन भी लग जाते हैं. यह प्रक्रिया चांदी की चादरें बनाने से शुरू होती है, उसके बाद जटिल नक्काशी और अंत में, कुंदन और रत्नों को अत्यंत सटीकता से जड़ना. हर कदम पर धैर्य, कौशल और समर्पण की आवश्यकता होती है."
 
 
चप्पल बनाना एक व्यक्ति का काम नहीं है. इसके लिए हर चरण में अलग-अलग लोगों की ज़रूरत होती है. सबसे पहले मशीन से चांदी को काटा जाता है, फिर उस पर नक़्क़ाशी की जाती है और अंत में चप्पल को जोड़ा जाता है. चप्पलें मांग के अनुसार बनाई जाती हैं और थोक में नहीं बनाई जाती हैं. 
 
अपने वालिद से सुने किस्सों को ताजा करते हुए मोहम्मद हुसैन बताते हैं कि पहली बार किसी नवाब ने चांदी के नागरे पहनने की इच्छा जताई तो उनके पुरखों ने बनाकर पेश किया. इसके बाद तो काम मिलने लगा. नवाब लोग चांदी देते थे और घर से नागरे और चांदी के चप्पल बनकर पहुंच जाते थे. 
 
ऐसे बनती है चांदी की जूती

चांदी की जूतियां तैयार करने वाले बताते हैं कि सबसे पहले चमड़े की जूती तैयार की जाती है. फिर चांदी का पात तैयार किया जाता है, और उस पर सुनार द्वारा हाथ से नक्काशी की जाती है. इसके बाद उनके द्वारा चांदी की जूती तैयार की जाती है, और शाही लुक देने के लिए अंदर वेलवेट लाल कपड़ा लगाया जाता है एक चांदी की जूती तैयार करने में एक सप्ताह का समय लगता है. इसमें बाद में नगीने और सुंदर नग भी लगाए जाते हैं. जिससे इसका लुक और भी शानदार और नवाबी हो जाता है.
 
एक नागरा बनाने में नाप के हिसाब से ढाई सौ या तीन सौ ग्राम चांदी लगती है. इसकी सिलाई के लिए विशेष उपकरण हैं. जूतों का तल्ला ही बस रबड़ का होता है और बाकी हिस्सा चांदी का. 
 
 
मोहम्मद हुसैन: चांदी की चप्पलों की कला के संरक्षक 
 
मोहम्मद हुसैन कहते हैं कि "लेकिन जो बात मुझे सबसे ज़्यादा चौंकाती है, वह यह है कि इस कला को सीखने वाला कोई नहीं बचा है. हुसैन साहब अकेले ही इस कला को जीवित रखने वाले आखिरी व्यक्ति हैं. फिर भी, उम्मीद की एक किरण है. YouTube जैसे प्लेटफ़ॉर्म ने उनके काम पर बहुत ज़्यादा ध्यान आकर्षित किया है और जब से उनकी कहानी शेयर की गई है, उनके काम की मांग और प्रशंसा दोनों में काफ़ी वृद्धि हुई है."
 
 
मोहम्मद हुसैन बताते हैं कि पैसा कम होने के चलते खुद बनाकर बेच नहीं सकते, लेकिन कुछ शेरवानी और शादी के कपड़ों के विक्रेता ऑर्डर देते हैं तो उसी से काम चल जाता है. शादी-ब्याह के मौसम में तो महीने में दस से पंद्रह ऑर्डर मिल जाते हैं.