डॉ. फैयाज अहमद फैजी
बहुत कम व्यक्तित्व और विचारधाराएं, पसमांदा विमर्श के निहितार्थ और उसकी विचार की महत्ता की समझ रखती हैं. पसमांदा आंदोलन के लिए यह एक बहुत बड़ा नकारात्मक पहलू है. आप इसका वर्गीकरण मध्यकालीन और आधुनिक युग के आधार पर स्वतः ही कर सकते हैं. आधुनिक दौर में जिन कुछ गिने-चुने लोगों ने पसमांदा आंदोलन को अपनी सहमति और सहयोग दिया, उनमें सरदार सतनाम सिंह संधू जी का भी एक महत्वपूर्ण नाम है.
सरदार सतनाम सिंह संधू मृदुभाषी सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं. बहुत जल्दी ही लोगों से घुल मिल जाते हैं. मिलनसार होने का गुण नैसर्गिक है. लोगों की मदद करने में सदैव तत्पर रहते हैं. खास कर वंचित समाज और छात्रों के लिए आपके हृदय में अपार स्नेह है. वंचित समाज के प्रति समर्पण ही शायद आपको पसमांदा आंदोलन की तरफ खींच लाया है.
उत्कृष्ट नागरिक के कर्तव्यों का निर्वहन भी सरकार की जनकल्याण नीतियों को जनसाधारण तक पहुंचा कर पूरा करते रहते हैं. उन्होंने घरेलू स्तर पर कश्मीर से केरल,पंजाब से उड़ीसा तक राष्ट्रीय एकता के लिए अपने प्रयासों से छाप छोड़ी है. विदेशों में प्रवासी भारतीयों के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर इसी उद्देश्य पर काम करते रहते हैं.
गतिविधियां
चंडीगढ़ विश्वविद्यालय की स्थापना उनकी प्रमुख कृतियों में से एक है. स्थापना के पीछे सतनाम जी का मत स्पष्ट था कि उच्च शिक्षा को आम लोगों के पहुंच तक लाया जाए. इससे पहले यह देखा जाता था कि वैज्ञानिक उच्च शिक्षा खास कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए छात्रों को घर से बहुत दूर दराज के शहरों में जाना पड़ता था.
चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के कुलपति होने के बावजूद उन्होंने समाज को कुछ ना कुछ वापस देने और राष्ट्र निर्माण मे भूमिका निभाने के नीति उद्देश्य से कई एक संगठनों का निर्माण किया. जिनमें प्रमुख रूप से न्यू इंडिया डेवलपमेंट (एनआईडी), सीडब्ल्यूटी चंडीगढ़ वेलफेयर ट्रस्ट,एन्वायरनमेंट स्टैंडिंग कमेटी, यूटी चंडीगढ़ और इंडियन माइनॉरिटी फाउंडेशन (आईएमएफ) की स्थापना है.
क्रमशः एनआईडी में नए-नए आइडियाज के साथ भारत के विकास में सहयोग देने पर काम किया जाता है, वहीं सीडब्ल्यूटी चंडीगढ़ शहर के विकास स्वास्थ्य की समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूकता फैलाने के लिए और इंडियन माइनॉरिटी फाउंडेशन (आईएमएफ) साफ-सफाई और पर्यावरण के लिए किया गया है.
आईएमएफ की स्थापना भारत के अल्पसंख्यकों के बीच आपस में समन्वय स्थापित करने के लिए और उनके सामाजिक उत्थान, राष्ट्रीय एकता, समरूपता के उद्देश्य से गठित किया गई है.
इंडियन माइनॉरिटी फाउंडेशन के अंतर्गत लगभग सभी गतिविधियों में पस्मान्दा प्रतिनिधियों को समुचित भागीदारी देते रहते हैं. साथ ही साथ लगभग हर मौके पर पसमांदा आंदोलन को अपना खुला समर्थन भी करते रहते हैं.
पारिवारिक पृष्ठभूमि और संघर्ष
एक विश्वविद्यालय का कुलपति और अब राज्यसभा का सदस्य बनने का सफर इतना आसान नहीं था. आज वे एक शिक्षाविद के रूप में विश्व विख्यात है, लेकिन यह जानकर हैरानी होती है कि आपका परिवार कोई बहुत पढ़े-लिखे लोगों का परिवार नहीं रहा है. स्वयं सतनाम जी की शिक्षा भी साधारण स्नातक तक ही रही है.
एक लोअर मिडल क्लास के खेती-किसानी परिवार में आपका जन्म हुआ. आजादी के बाद और बंटवारे के भयावह, विध्वंसकारी परिस्थितियों में लाहौर के नत्थे जागीर गांव के मंगल सिंह संधू के परिवार के लोग, जिनमें सतनाम जी के दादा डोगर सिंह संधू, उनकी बहन मलखो, बेटे पीपल सिंह के साथ फिरोजपुर के गांव रसूलपुर में आकर बस गए. गांव के लोग उनके परिवार वालों को नथाईये और गांव के बाहर के लोग लाहोरिया कहते थे.
आपके दादा डोगर सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और वतन परस्त थे और किसान हित की बात सदैव करते रहते थे. डोगर सिंह किसान यूनियन में महत्वपूर्ण पद पर थे. सामाजिक कार्यों में चढ़-बढ़कर हिस्सा लेते थे. चाहे गांव में शिक्षा की बात हो, अस्पताल की बात हो या और कोई सामाजिक कार्य हो, उनके दादा ने गाँव मे अस्पताल की स्थापना भी की.
बालक सतनाम पर इन सबका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था. सतनाम जी का ज्यादा समय अपने दादाजी के साथ सामाजिक कार्यों में व्यतीत होता था. उनके दादा उन्हें एक डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था.
पिता पीपल सिंह संधू जी भी किसान यूनियन के प्रेसिडेंट के पद पर रहकर किसानों की हक की लड़ाई लड़ते रहे. यहां भी वे अपने पिताजी के साथ उनके नक्शे-कदम पर चलते रहे. उनकी माताजी एक गृहणी हैं. उन्होंने उनके लिए मोहाली में एक घर लेकर दिया और उनसे रहने का आग्रह किया, लेकिन माताजी ने गांव में ही रहने को तरजीह दी.
खेती-किसानी और उनके समस्याओं से संघर्ष की आपके परिवार की एक लंबी कहानी है. आज भी सतनाम जी के छोटे भाई सरदार फरमान सिंह संधू जी भारतीय किसान यूनियन के प्रेसिडेंट हैं.
शिक्षा पाने में सतनाम जी को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और गंभीर संघर्ष करना पड़ा. प्राइमरी शिक्षा गांव से ही प्राप्त की, लेकिन गांव में स्कूल की कोई बिल्डिंग नहीं थी. माता के हाथों का सिला खाद की बोरी का बस्ता ही उनका स्कूल बैग हुआ करता था. जैसे-तैसे करके उन्होंने प्राइमरी, मिडिल, 10वीं और 12वीं की शिक्षा हासिल की.
लेकिन असल चुनौती ग्रेजुएशन के समय पेश आई. उन्होंने अपने अदम्य साहस के दम पर ग्रेजुएशन करने का फैसला किया. वे सुबह जल्दी उठकर दूध लेकर दरवाजे दरवाजे बांटने के बाद, गाय-भैंसों के नित्य काम निपटाकर, मोगा जिले के गुरु नानक कॉलेज में पढ़ने के लिए जाया करते थे. कॉलेज में उनके पास विद्यार्थी बैठने से कतराते थे, क्योंकि उनके कपड़ों से गाय-भैंस और गोबर की गंध आती थी.
उस समय कॉलेज के हालात ठीक नहीं थे. आए दिन हड़ताल हुआ करती थी. शिक्षा बाधित होती थी. उन्होंने तय किया कि शिक्षा के साथ-साथ कॉलेज के सुधार का काम भी किया जाए. इन परिस्थितियों में वे कॉलेज के अध्यक्ष बने. अपने कार्यकाल में कॉलेज और शिक्षा सुधार के कई महत्वपूर्ण कार्य किए. उन्होंने मोगा बाजार में लोगों से मिलकर पैसे इकट्ठे करके कॉलेज की चार दिवारी का निर्माण कराया.
यहीं पर आप अकाली दल के संपर्क में आए और एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में महती भूमिका का पालन किया. आपके काम को प्रकाश सिंह बादल तक ने नोटिस किया. सुखबीर सिंह बादल के साथ भी काम किया, लेकिन जल्द ही राजनीति से मोह भंग हो गया.
आर्थिक हालत ठीक न होने के कारण उन्हें बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. संघर्ष के दिनों में अपने साथियों के साथ मिलकर कार खरीदने-बेचने का कारोबार शुरू किया. इस व्यवसाय के बहुत अच्छे परिणाम आए और धीरे-धीरे आगे के नए अवसरों के द्वार खुलते चले गए.
अपने संघर्ष के दिनों में आपने कुछ समय के लिए पत्रकार के रूप में भी अजीत अखबार में काम किया और लोगों की समस्याओं को अखबार के माध्यम से सामने लाने का प्रयास किया, लेकिन यहां भी उनके अपने मकसद को बहुत कामयाबी नहीं मिली.
उनका मुख्य झुकाव शिक्षा की तरफ ही लगा रहा. उन्होंने खुद बहुत अच्छी शिक्षा नहीं पाई, लेकिन शिक्षा को आसान और आम पहुंच तक बनाने की चिंता हमेशा लगी रही. इन्हीं कोशिशें में आपने 2001 में चंडीगढ़ ग्रुप आफ कॉलेज की स्थापना बैंक से लोन लेकर की. लेकिन इसके लिए भी काफी जद्दोजहद और कॉलेज की पहचान स्थापित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा. 10 वर्ष के कम समय में ही कॉलेज ने विश्वविद्यालय का रूप ले लिया.
अगले 10 वर्षों की अवधि के भीतर, चंडीगढ़ विश्वविद्यालय ने क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग 2023 में जगह बनाई, जिससे यह एशिया के निजी विश्वविद्यालयों में पहले स्थान पर पहुंच गया.
उनकी सामाजिक सेवाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, सामाजिक एकता और राष्ट्रवादिता प्रमुख अंग है.
सम्मान एवं पुरस्कार
शिक्षा के क्षेत्र में आपके योगदान और समाजिक कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने आपको राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया. यह सौभाग्य ही है कि वे नए संसद भवन में शपथ लेने वाले पहले सांसद बने.
प्रभाव
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों-कृतियों का सरदार सतनाम सिंह संधू पर गहरा और अमित छाप पड़ी है. विशेष रूप से मोदी जी के विकसित भारत की परिकल्पना और अभियान में उन पर विशेष प्रभाव डाला है. आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की जन कल्याण नीतियों को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने वाले सच्चे दूत हैं.
राज्यसभा में जनकल्याण से संबंधित पानी की समस्या, नदियों की समस्या और सिख समुदाय की फौजी सयतों, काबिलियतों को ध्यान में रखते हुए आनंदपुर साहिब में फौजी अकादमी की स्थापना के मुद्दे को उठाए हैं.
वह दिन अब दूर नहीं, जब सतनाम जी को राज्यसभा में पसमांदा मुद्दे उठाते हुए देखा और सुना जाएगा.
(लेखक पसमांदा-सामाजिक कार्यकर्ता, स्तंभकार, मीडिया पैनलिस्ट और पेशे से चिकित्सक हैं.)