नरेंद्र मोदी की संघर्ष गाथा: चाय की दुकान से तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने तक

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 10-06-2024
Narendra Modi's struggle story: From a tea stall to becoming Prime Minister for the third time
Narendra Modi's struggle story: From a tea stall to becoming Prime Minister for the third time

 

मलिक असगर हाशमी

गुजरात के मूल निवासी और इस प्रदेश के लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं. मोदी देश के पहले ऐसे राजनेता हैं जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बाद लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त है.

हालांकि, बालवास्था में चाय की दुकान पर काम करने से लेकर तीसरी बार देश का प्रधानमंत्री बनने तक का सफर कोई आसान नहीं रहा. इसके लिए उन्हें लंबे संघर्षों से गुजरना पड़ा. यहां तक कि गुजरात दंगे तक के आरोप झेलने पडे.

बावजूद इसके आज वे न केवल शोहरत के शिखर पर हैं, उन्हांेने आरएसएस की उन आकांक्षाओं को भी पूरा किया है, जिसे देश की मांग बताया जाता रहा है. चाहे वह अनुच्छेद 370 हटाना हो, सीएए, तीन तलाक या राम मंदिर.आइए, यहां जानने की कोशिश करते हैं कि कैसे नरेंद्र मोदी चाय की दुकान से शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचे हैं.

1960 के दशक की शुरुआत में  गर्मी के एक दिन , अहमदाबाद से लगभग 100 किलोमीटर उत्तर में वडनगर के एक प्राथमिक विद्यालय, कुमार शाला नंबर 1 के छात्रों को एक कठिन चुनौती का सामना करना पड़ा - एक चैंपियन टीम के साथ कबड्डी की लड़ाई.

कुमार शाला के खेल शिक्षक, कनु भावसार, हार के लिए मानसिक रूप से तैयार थे, लेकिन जब मैच शुरू हुआ, तो अप्रत्याशित हुआ. "हमारी टीम एक इकाई की तरह खेली और दूसरी टीम की चालों को पहले ही भांप लिया. यह एक आश्चर्यजनक जीत थी." ..पिछले कुछ सालों में खेल के मैदान और खेल भले ही बदल गए हों, लेकिन वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान चलाने वाले के बेटे मोदी के लिए जीतना एक आदत बन गई है, जो आरएसएस मुख्यालय में झाड़ू लगाने से लेकर चुनावों में झाड़ू लगाने तक का सफर तय कर चुके हैं.

प्रशिक्षण की शुरुआत सुबह जल्दी हुई, जैसा कि मोदी को उनके सहपाठी एनडी कहकर बुलाते थे, वे स्कूल के बाद आरएसएस शाखा में नियमित रूप से जाते थे. एनसीसी प्रशिक्षण ने उनके शरीर को आकार दिया . रंगमंच ने उनके वक्तृत्व कौशल को निखारा, जो लोकसभा के लिए लंबे अभियान के दौरान खूब दिखा.

1963 में, उन्होंने एक मोनो-एक्ट किया, जो उनकी उम्र के बराबर था और पास के गांव से था. परिवार के सदस्यों का कहना है कि उन्होंने जशोदाबेन से अपनी शादी कभी पूरी नहीं की, जो अब एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षिका हैं.

1967 से दो या तीन साल के दौरान वे कहां-कहां घूमते रहे और क्या-क्या करते रहे, इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. अहमदाबाद जाने से पहले वे 1970 में कुछ समय के लिए अपने गृहनगर लौटे थे. यहां उन्होंने अपने मामा के लिए काम किया, जो आरएसएस मुख्यालय हेडगेवार भवन से  दूर गीता मंदिर बस स्टॉप पर कैंटीन चलाते थे. चाय की दुकान पर नियमित ग्राहकों में आरएसएस कार्यकर्ता भी थे, जिनसे मोदी सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर बातचीत करते थे.

पहली जीत

आपातकाल के दौरान, जनसंघ (बीजेपी के पूर्ववर्ती) में शीर्ष नेता रहे एल के आडवाणी ने इस युवा कार्यकर्ता के संगठन कौशल को पहचाना. उन्होंने 1987 की शुरुआत में मोदी को बीजेपी में शामिल किया . उन्हें राज्य संगठन सचिव बनाया.

मोदी का बड़ा दिन तुरंत ही आ गया, जब उन्होंने बीजेपी की धमाकेदार फिल्म बनाई, जिसमें एक दलित महिला और उसके बीमार बेटे की दुर्दशा को दिखाया गया था. मोदी पर जीवनी लिखने वाले किशोर मकवाना कहते हैं कि नाटक में मोदी को दिखाया गया था.

जब वे 17 वर्ष के थे, तब मोदी ने आत्मज्ञान की खोज में घर छोड़ने का फैसला किया. माना जाता है कि दामोदरदास और हीराबा को जब इस फैसले के बारे में बताया गया तो वे परेशान हो गए, क्योंकि मोदी की शादी जशोदाबेन से हुई थी. यह पहली बार था जब पार्टी ने गुजरात में सत्ता का स्वाद चखा था. सूत्रों का कहना है कि मोदी ने आडवाणी और वाजपेयी सहित भाजपा नेताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा.

रणनीति के साथ सारथी

 राम जन्मभूमि आंदोलन के जोर पकड़ने के साथ ही आडवाणी को अयोध्या में विवादित मस्जिद की जगह पर मंदिर निर्माण के लिए अभियान चलाने के लिए रथ यात्रा शुरू करने का विचार सूझा. मोदी को आडवाणी के 'सारथी' के रूप में चुना गया. उन्होंने 1990 की यात्रा की बारीकी से योजना बनाई, जो सोमनाथ से शुरू हुई और जिसने भारतीय राजनीति को अपरिवर्तनीय रूप से बदल दिया. मोदी के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसने उन्हें गुजरात से परे भी पहचान दिलाई.

यह वास्तव में निर्वासन की कार्रवाई नहीं थी

1995 में मोदी के संगठन सचिव रहते हुए अकेले ही लड़ते हुए, भाजपा ने उनकी रणनीति, वाघेला की आक्रामकता और केशुभाई पटेल की जन अपील के दम पर विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की. ​​लेकिन जल्द ही गुजरात की सबसे शक्तिशाली तिकड़ी में दरारें उभर आईं क्योंकि मोदी को 'सुपर सीएम' के रूप में देखा जाने लगा.  मुख्यमंत्री पटेल पर बहुत प्रभाव था.

कई राज्यों में चुनाव नजदीक आ रहे थे और मोदी ने अहम भूमिका निभाई. उन्होंने इस समय का उपयोग पार्टी कार्यकर्ताओं के अलावा राजनेताओं, नौकरशाहों और राजनयिकों के साथ संबंध बनाने में किया. मोदी के नेतृत्व में, हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा की सीटें 1996 में बढ़कर 11 हो गईं , जो 1991 में केवल दो थीं.

 इसी तरह, हिमाचल प्रदेश विधानसभा में, जहां मोदी के सत्ता में आने पर भाजपा की सीटें केवल आठ थीं, 1998 के चुनावों में यह संख्या 31 तक पहुंच गई. लगभग उसी समय, पार्टी ने चंडीगढ़ नगर निकाय चुनावों में जीत हासिल की.

पर्दे के पीछे की चालें

उनकी अन्य कमियाँ चाहे जो भी हों, मोदी अपने परिवार का पक्ष लेने के लिए जाने जाते हैं. उनके पाँच भाई-बहन हैं - भाई सोम, अमृत, प्रहलाद और पंकज, और एक बहन, वसंती. सार्वजनिक जीवन में आने के बाद से उनके परिवार का कोई भी सदस्य उनके आस-पास नहीं देखा गया.

जब मोदी अक्टूबर 2001 में पहली बार गुजरात के सीएम के रूप में शपथ ले रहे थे, तो समारोह में एक भाजपा नेता ने महसूस किया कि आम लोगों के लिए बने खचाखच भरे हिस्से में जगह के लिए धक्का-मुक्की कर रही एक सिकुड़ी हुई महिला उनकी मां थी.

अपना ब्रांड बनाना

दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद मोदी को एहसास हुआ कि भावनात्मक सांप्रदायिक मुद्दे उनके बड़े लक्ष्य में मदद नहीं कर सकते. उन्होंने 2003 में विकास मोड में कदम रखा और रिसर्जेंट गुजरात बिजनेस समिट की शुरुआत की - जो उनके पहले के वाइब्रेंट गुजरात का अवतार था.

उन्होंने कई पुरानी योजनाओं को फिर से शुरू किया. साथ ही प्रशिक्षण और शिक्षा के माध्यम से सरकारी अधिकारियों की दक्षता में सुधार के लिए 'कर्मयोगी' कार्यक्रम की शुरुआत की। वे जमीनी स्तर के संपर्कों का उपयोग करने के लिए जाने जाते हैं.

पूर्व की ओर देखना

बड़ा झटका मार्च 2005 में लगा, जब अमेरिका ने धार्मिक स्वतंत्रता को दबाने के आधार पर उनका वीजा रद्द कर दिया. यूरोपीय संघ ने भी यही किया. पश्चिम द्वारा उनकी अनदेखी किए जाने के बाद, मोदी ने पूर्व की ओर देखना शुरू किया. खासकर जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, हांगकांग और चीन की ओर. उन्होंने इनमें से अधिकांश देशों का दौरा किया. 2007 में वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन के लिए जापान एक भागीदार देश बन गया.

मोदीनॉमिक्स कारगर नहीं है?

हालांकि, आलोचक मोदी के गुजरात विकास मॉडल में कई खामियां बताते हैं. गुजरात सरकार 2000 के दशक के दौरान 5.6% के राष्ट्रीय औसत की तुलना में 6.9% की स्वस्थ विकास दर का दावा कर रही है, लेकिन राज्य सामाजिक सूचकांकों पर पिछड़ा हुआ है.

निजी जीवन गाथा

26 मई, 2014 की शाम को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में एक इतिहास लिखा गया जब श्री नरेंद्र मोदी ने भारत की जनता से ऐतिहासिक जनादेश प्राप्त करने के बाद भारत के प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली. भारत की जनता ने नरेंद्र मोदी में एक ऐसे ओजस्वी, निर्णायक तथा विकासोन्मुख नेता की छवि देखी जो करोड़ों भारतीयों के सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आशा की एक किरण बनकर सामने आए .

 विकास पर जोर देने, विस्तार पर नज़र रखने तथा गरीबों के जीवन में गुणात्मक बदलाव लाने के उनके प्रयासों ने  नरेंद्र मोदी को संपूर्ण भारत में एक लोकप्रिय तथा सम्मानित नेता बना दिया है.नरेंद्र मोदी का जीवन साहस, संवेदना तथा सतत् कठिन परिश्रम वाला रहा है.

छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने जीवन को जनता की सेवा में लगाने का निर्णय ले लिया था. उन्होंने निचले स्तर के कार्यकर्ता, एक संगठक तथा अपने गृह राज्य गुजरात के मुख्य मंत्री के रूप में अपने 13 वर्ष के लंबे शासनकाल के दौरान एक प्रशासक के रूप में अपने कौशल का परिचय दिया. यहां उन्होंने जन-हितैषी तथा सक्रिय सुशासन की शुरूआत करते हुए शासन में आमूल परिवर्तन किया

सृजनात्मक वर्ष

नरेंद्र मोदी की प्रधान मंत्री कार्यालय तक की प्रेरणाप्रद जीवन-यात्रा उत्तर गुजरात के मेहसाणा जिले के एक छोटे-से कस्बे वडनगर की गलियों से शुरू हुई. उनका जन्म भारत की आजादी के तीन वर्ष बाद 17 सितंबर, 1950 को हुआ.

वे पहले प्रधानमंत्री हैं जिनका जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ.नरेंद्र मोदी  दामोदरदास मोदी तथा  हीराबा मोदी की तीसरी संतान हैं. नरेंद्र मोदी एक साधारण तथा विनम्र परिवार से हैं. उनका पूरा परिवार लगभग 40/12 फीट के छोटे-से एक मंजिला मकान में रहता था.

नरेंद्र मोदी के सृजनात्मक वर्षों ने उन्हें शुरू से ही कठिन परिश्रम करना सिखाया जिसके फलस्वरूप ही वे अपनी पढ़ाई तथा पढ़ाई के बाद के जीवन के बीच तालमेल बिठा पाए और अपने परिवार की चाय की दुकान पर काम करने के लिए समय निकाल पाए क्योंकि उनके परिवार को दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करने के लिए संघर्ष करना पड़ता था.

 उनके स्कूल के दिनों के मित्र बताते हैं कि वे बचपन से ही बहुत मेहनती रहे. वे चर्चा करने के लिए तत्पर रहते थे तथा पुस्तकें पढ़ने के लिए उत्सुक रहते थे. उनके सहपाठी बताते हैं कि किस तरह  मोदी स्थानीय पुस्तकालय में घटों स्वाध्याय किया करते थे। बचपन में उन्हें तैराकी का भी शौक था.

बचपन से ही नरेंद्र मोदी के विचार तथा सपने उनके हमउम्र बच्चों के विचार से बिलकुल अलग थे. शायद यह वडनगर का ही प्रभाव था क्योंकि यह सदियों पहले बौद्ध शिक्षा तथा अध्यात्म का जीवंत केंद्र था. बचपन में भी वे समाज में बदलाव लाने के प्रबल पक्षधर थे.

वे स्वामी विवेकानंद के कार्यों से अत्यधिक प्रभावित थे जिससे उनके जीवन में अध्यात्म की नींव पड़ी और भारत को जगत-गुरू बनाने के स्वामी जी के सपने को पूरा करने की दिशा में कार्य करने की प्रेरणा मिली.

17 वर्ष की आयु में उन्होंने संपूर्ण भारत की यात्रा करने के लिए घर छोड़ दिया. दो वर्षों तक उन्होंने विभिन्न संस्कृतियों का पता लगाने के लिए भारत के विशाल भू-खंड की यात्रा की. जब वे घर लौटे तब वे एक अलग ही व्यक्ति थे जिसे यह स्पष्ट पता था कि उन्हें जीवन में कौन-सा लक्ष्य हासिल करना है. वे अहमदाबाद चले गए और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए.

 राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है, जो भारत में सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण का कार्य कर रहा है.1972 में अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रचारक बनने के बाद से नरेंद्र मोदी की कठिन दिनचर्या है.

उनकी दिनचर्या प्रातः 5 बजे शुरू होती है और देर रात तक चलती है. 1970 के दशक के आखिरी दिनों ने यह भी देखा कि युवा नरेंद्र मोदी ने भारत में आपातकाल के दौरान दमित किए जा रहे प्रजातंत्र की पुनर्बहाली के लिए चलाए जा रहे आंदोलन में हिस्सा लिया.

1980 के दशक में संघ में अलग-अलग जिम्मेदारियां लेते हुए  नरेंद्र मोदी अपने संगठन कौशल के नमूने के साथ एक संगठक के रूप में सामने आए. 1987 में नरेंद्र मोदी के जीवन का एक अलग अध्याय तब शुरु हुआ जब उन्होंने गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के महासचिव के रूप में कार्य करना शुरु किया.

अपने पहले कार्य में श्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद के नगर निगम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को पहली बार जीत दिलाई. उन्होंने 1990 के गुजरात विधान सभा चुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनाई। 1995 के विधान सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के संगठन कौशल के फलस्वरूप भारतीय जनता पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ा और पार्टी ने 121 सीटें जीतीं.

इनपुट:ईटी और पीएम इंडिया