बाप दादा से काम सीख मोहम्मद रफीक अंसारी बन गए अवार्डी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 17-02-2024
Mohammed Rafiq Ansari,  an awardee after learning work from grandfather
Mohammed Rafiq Ansari, an awardee after learning work from grandfather

 

दयाराम वशिष्ठ

हस्त निर्मित दरी के क्षेत्र में काम करने वाले कानपुर के गांव चंदारी के रहने वाले स्टेट अवार्डी हस्तशिल्प मोहम्मद रफीक अंसारी न केवल युवाओं को ट्रैनिंग देकर रोजगार दिलवा रहे हैं, अपितु खुद भी अपने इस हुनर से लाखों रूपये प्रति महीने कमाई कर रहे हैं. वे अपनी मेहनत से काफी खुश हैं. उन्होंने हाथ से बनी दरी व मैट की डिजाइन और बुनाई का यह पुस्तैनी काम अपने बाप दादा से सीखा. जिनकी मांग देश विदेश तक में हो रही है. परिवार तीन पीढ़ियों से यह काम कर रहा है. शुरू से ही उनकी यह सोच रही कि एक दिन उसे बुनकर व डिजाइनिंग में अपना व पूर्वजों का नाम रोशन करना है. इसी भाव से वे निरंतर आगे बढते चले गए. आखिर उनकी मेहनत रंग लाई और विदेशों तक में उनकी दरियां खरीदी जाने लगी हैं.
 

ठंडे देशों में एक्सपोर्टर के जरिए होती है दरियों की सेल

दसवीं कक्षा तक की पढाई करने वाले मोहम्मद रफीक अंसारी का कारोबार देश विदेश तक में फैला हुआ है. तीन बेटों में बडा बेटा मोहम्मद इफितहाज ग्रेजुएशन की पढाई पूरी करने के बाद अब अपने पिता का कारोबार संभालने लगा है. युवा सोच के चलते अब इनका कारोबार देश विदेश तक होने लगा है. 
 
रफीक अंसारी ने बताया कि उनकी दरियों की ज्यादातर मांग ठंडे मुल्क स्वीटरजलैंड, आस्ट्रेलिया व चाइना समेत कई मुल्कों में है. कई मूल्कों में घोडें के ऊपर बिछाई जाने वाली पैट के नीचे उनकी दरी 3 फीट गुना ढाई फीट का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि चलते वक्त उस लकडी या चमडे के पैट से घोडे को कोई चोट न लगे. इसी तरह इन देशों में बैड के नीचे मैट का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि बैड से उतरते वक्त ठंड से बचाव हो सके. एक्सपोर्टर की ओर से दी जाने वाली डिजाइन के मुताबिक वे विदेशों की मांग के अनुरूप 6 फीट गुना 2 फीट मैट को डिजाइन देकर बनाने का काम करते हैं.
 
 
आस्ट्रेलिया की ऊन का होता है ज्यादा इस्तेमाल
ठंडे मुल्क में भेजी जाने वाली दरी या मैट में ज्यादातर आस्ट्रेलिया की ऊन का इस्तेमाल किया जाता है. आस्ट्रेलिया व चाइना की ऊन सबसे अच्छी मानी जाती है. इसलिए यह ऊन हरियाणा के पानीपत व यूपी के मिर्जापुर में एक्सपोर्टर के जरिए मंगाई जाती है. यह ऊन 200 से 250 रूपये तक बाजार में मिल जाती है.
 
बेटे की तमन्ना एक दिन बनेगा बडा एक्सपोर्टर
रफीक अंसारी अपने बेटे की काबलियत पर बहुत खुश हैं. उनका कहना है कि युवा सोच की बहुत फर्क होता है. उनका बेटा जहां उनके बिजनेस को ऑन लाइन बढावा दे रहे हैं, वहीं अब वह एक दिन बडा एक्सपोर्टर बनने का सपना देख रहा है. उनका मानना है कि हम भले ही ज्यादा नहीं पढ सके, लेकिन बाप दादा से सीखकर अपने जीवन को सफल बनाया है. जरूर उन्हें देखकर उनका बेटा भी एक दिन भारत का नाम रोशन करेगा. उसके तीन बेटे हैं, इनमें छोटे दो बेटे अभी पढाई कर रहे हैं, जबकि पांच बेटियां हैं.
 
6 महीने की ट्रैनिंग देकर दिला रहे हैं रोजगार
शहबाद अंसारी ने बताया कि उनके यहां 10 युवाओं का एक साथ ट्रैनिंग देने की व्यवस्था है. 6 महीने का कोर्स करने के बाद युवाओं को इस क्षेत्र में रोजगार आसानी से मिल जाता है. उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से भी उन्हें 4000 रूपये महीना इस ट्रैनिंग के लिए दिया जाता है. जिसमें युवाओं को दरी बुनाना, डिजाइन तैयार कराना समेत कई तरह के कार्य सिखाए जाते हैं. अब तक वे काफी संख्या में युवाओं को ट्रैनिंग देकर निपुण कर चुके हैं, जो अलग_अलग स्थानों पर काम धंधा कर अपना गुजर बसर करने लगे हैं.
 
हाथ से दरी की बुनाई का काम सीखने के बाद मिली प्रसिद्धि
स्टेट अवार्डी मोहम्मद रफीक अंसारी का कहते हैं कि उन्होंने हाथ से दरी की बुनाई करने व मनमोहक डिजाइन बनाने का काम अपने माता पिता मोहम्मद अयुब अंसारी से सीखा. उनके दादा भी दरी का काम करते थे. उनसे काम सीखने के बाद वह खुद भी इसमें परफेक्ट होते चले गए. काम करते करते हाथ से दरी की बुनाई व डिजाइन को लेकर जब उन्हें स्टेट अवार्ड मिला तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. वह एक सप्ताह में लगातार 7-8 घंटे काम करके एक दरी को बना लेते हैं.
 
वर्ष 2010 के बाद उनका कारोबार तेजी पकडा. इसी कारोबार से वे बच्चों की पढाई व घर खर्च चलाते हैं. उनके तीन बेटे हैं. जो पढाई के साथ साथ उनके काम में भी हाथ बंटाते हैं. इस काम की बदौलत उन्हें देश के विभिन्न शहरों कानपुर, उडीसा, गोआ, चैन्नई समेत कई शहरों में लगाए जाने वाले मेले में जाने का मौका मिला. 
 
उनका यह कारोबार निरंतर बढता रहा. उनकी पत्नी सायरा बानो का सहयोग भी कारोबार को बढाने में अहम रहा. दरी में इस्तेमाल किए जाने वाला धागा लच्छे की शक्ल में होता है, जिसे वे दरी की बुनाई में इस्तेमाल के लिए नली व नार में डालने का काम करती हैं. इससे उन्हें काफी मदद मिलती है. पहले घर खर्च मुश्किल से चल पाता था, लेकिन अब पूरे परिवार की मेहनत के चलते लाखों रूपये की कमाई कर लेते हैं. सूरजकुंड मेला में भी उन्हें खूब नाम मिला. यहां लोग उनकी दरियों व डिजाइन के अन्य कपडे खूब पसंद आते हैं. .
 
यूपी में धागा मिल बंद होने से बचत हुई कम
हस्तशिल्प मोहम्मद रफीक अंसारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में धागा मिल बंद होने से अब उन्हें पानीपत से धागा मंगाना पडता है. इससे उनके आयटम पर कॉस्ट बढ गई है. 400 रूपये में बिकने वाली दरी पर उन्हें मुश्किल से 50 रूपये ही बच पाते हैं. इससे बुनकरों का धंधा भी काफी प्रभावित हुआ है. इससे उनकी लागत बढ जाती है. इससे बुनकरों के परिवारों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. यही कारण है कि नए युवा बुनकर के क्षेत्र में आने से बच रहे हैं.