नीरज चोपड़ा और निखत ज़रीन: क्या हम उनसे "वापसी" की उम्मीद कर सकते हैं?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  onikamaheshwari | Date 20-09-2025
Neeraj Chopra and Nikhat Zareen: Can we expect a
Neeraj Chopra and Nikhat Zareen: Can we expect a "comeback" from them?

 

fमलिक असगर हाशमी 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बेवजह के राजनीतिक शोर और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेसिर-पैर की बयानबाज़ी के बीच दो बड़ी खेल खबरें दबकर रह गईं,जिन पर न सिर्फ चर्चा होनी चाहिए थी, बल्कि गंभीर विश्लेषण भी. ये खबरें थीं भारत के दो विश्वविजेता खिलाड़ियों—नीरज चोपड़ा और निखत ज़रीन की हालिया अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहद निराशाजनक हार.

एक तरफ टोक्यो में आयोजित वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में नीरज चोपड़ा आठवें स्थान पर रहे, तो दूसरी तरफ निखत ज़रीन वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल में हार गईं. ये केवल दो हार नहीं थीं; ये उस स्थिति का संकेत थीं जहां से वापसी करना आसान नहीं होता और जहां से किसी भी खिलाड़ी का "सर्वश्रेष्ठ दौर" खत्म होता दिखने लगता है. यही वजह है कि नीरज की हार के बाद कई मीडिया रिपोर्ट्स ने लिखा—"एक युग का अंत हो गया."
 
वास्तव में, नीरज की हार केवल एक थ्रो की असफलता नहीं थी, बल्कि उस निरंतरता के टूटने की पीड़ा थी जो उन्होंने 2018 से कायम रखी थी.लगातार 33 प्रतियोगिताएं, हर बार पदक के साथ वापसी. लेकिन टोक्यो 2025 में वह 84.03 मीटर के थ्रो के साथ आठवें स्थान पर रहे, जो कि उनके मौजूदा राष्ट्रीय रिकॉर्ड 90.23 मीटर (दोहा डायमंड लीग 2025) से बहुत पीछे था. उनका रन-अप अस्थिर दिखा, ब्लॉकिंग में लय नहीं थी और थ्रो में वह तीव्रता नज़र नहीं आई जो उन्हें नायाब बनाती रही है.
 
 
यह वही नीरज हैं जिन्होंने 2020 टोक्यो ओलंपिक में भारत को एथलेटिक्स में पहला स्वर्ण पदक दिलाया था और फिर 2024 पेरिस ओलंपिक में रजत जीतकर भी कमाल कर दिखाया. लेकिन इस बार जब वह हार के बाद स्टेडियम में अकेले बैठे थे, तो वह न केवल एक प्रतियोगिता से बाहर हुए खिलाड़ी थे, बल्कि एक ऐसे प्रतीक थे जिनका आत्मविश्वास इस बार उनके साथ नहीं था.
 
उन्होंने खुद स्वीकार किया कि टोक्यो रवाना होने से पहले प्रशिक्षण के दौरान उन्हें चोट लगी थी. यह चोट शॉटपुट अभ्यास के दौरान हुई और इसके बावजूद उन्होंने खेलने का फैसला किया. हालांकि साहसिक निर्णय था, लेकिन इसने यह भी उजागर कर दिया कि उनकी फिटनेस अब पहले जैसी नहीं रही. लगातार चोटों से जूझते हुए वह अब उस मुकाम पर हैं जहां उन्हें अपने करियर के अगले कदम पर गंभीरता से विचार करना होगा.
 
दूसरी ओर, निखत ज़रीन की बात करें तो उनका मामला भी कुछ अलग नहीं. 2022 और 2023 में दो बार की विश्व चैंपियन रह चुकी निखत इस बार 2025 विश्व मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल में हार गईं. विपक्षी थीं तुर्की की बुसे नाज़ काकिरोग्लू—एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी—लेकिन निखत के लिए यह हार महज़ एक तकनीकी हार नहीं, बल्कि मानसिक मोर्चे पर भी एक ठहराव जैसा था.
 
पेरिस ओलंपिक 2024 में वह पहले ही राउंड में हार गई थीं और उसके बाद मेनिस्कस की चोट से उबरने में उन्हें कई महीने लग गए. उन्होंने खुद कहा—"मैं उस पुरानी निखत को वापस लाना चाहती हूं, जिसमें जीत की भूख थी." यह बयान उनकी मानसिक मजबूती को तो दर्शाता है, लेकिन बॉक्सिंग जैसे हाई-कॉन्टैक्ट स्पोर्ट में जहां हर मैच शरीर की परीक्षा लेता है, वहां बार-बार चोट लगना एक बड़ी चिंता बन जाता है.
 
निखत अब 28 वर्ष की हो चुकी हैं. मुक्केबाज़ी जैसे खेल में जहां युवा शरीर ही सबसे बड़ी ताकत होता है, वहां यह उम्र निर्णायक हो सकती है. उनकी हालिया फॉर्म और फिटनेस को देखते हुए यह कहना मुश्किल नहीं कि उनके पास वापसी के मौके हैं, लेकिन वो सीमित हैं और समय कम है.
 
नीरज और निखत दोनों को अंतरराष्ट्रीय कोचों और आधुनिक सुविधाओं का लाभ मिला है. उन्होंने विश्व स्तर पर देश का नाम रौशन किया है. लेकिन सवाल यह है—क्या अब भी हम इनसे उसी स्तर की उम्मीद कर सकते हैं? या फिर हमें यह स्वीकार करना होगा कि शायद उनके "पीक" का दौर बीत चुका है?
 
भारत में खेलों को लेकर एक प्रवृत्ति रही है,जब तक खिलाड़ी जीतते रहते हैं, उन्हें सर आंखों पर बैठाया जाता है. लेकिन जैसे ही वे हारते हैं, उन्हें भुला दिया जाता है. यही हाल आज नीरज और निखत के साथ हो रहा है. मीडिया में उनके प्रदर्शन की गहराई से चर्चा नहीं हुई, सरकार की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई, और न ही खेल संस्थाओं ने कोई रोडमैप पेश किया कि अब आगे क्या होना चाहिए.
 
असल चिंता यह है कि जब देश को विश्व पटल पर गौरवान्वित करने वाले खिलाड़ी हारते हैं, तो उनकी हार केवल व्यक्तिगत नहीं होती—वह पूरे खेल तंत्र की विफलता को उजागर करती है. क्या हम केवल ओलंपिक में मेडल गिनने तक सीमित रहेंगे ? या फिर खिलाड़ियों को निरंतर सहयोग और संरचना देकर उन्हें लंबी अवधि तक बनाए रखने की दिशा में काम करेंगे ?
 
अब जब लॉस एंजिल्स ओलंपिक 2028 सिर्फ तीन साल दूर है, तब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि नीरज और निखत जैसे दिग्गज खुद को कैसे तैयार करते हैं. क्या वे फिर से वापसी की राह पर निकलेंगे, या यह आखिरी मोड़ था?
 
नीरज के पास अब भी ताकत है, लेकिन उन्हें अब अपने शरीर के साथ-साथ तकनीक पर भी बारीक काम करना होगा. उन्हें हर प्रतियोगिता में नहीं, बल्कि चुनी हुई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर लंबी रेस का घोड़ा बनना होगा. वहीं निखत को चाहिए कि वह चोट से बचाव और रिकवरी पर अधिक ध्यान दें, और अपने अनुभव को हथियार बनाकर खुद को फिर से साबित करें.
 
वापसी का रास्ता आसान नहीं होता. यह केवल सोशल मीडिया पोस्ट, इंटरव्यूज़ और "मैं फिर लौटूंगी" जैसे भावनात्मक बयानों से नहीं तय होता. इसके लिए असाधारण प्रतिबद्धता, वैज्ञानिक प्रशिक्षण और सबसे ज़्यादा—एक सुदृढ़ सपोर्ट सिस्टम की ज़रूरत होती है. क्या भारत का खेल तंत्र अब इतना परिपक्व हो चुका है कि अपने स्टार खिलाड़ियों को दूसरी पारी खेलने का अवसर दे सके?
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यह सवाल सिर्फ नीरज और निखत का नहीं है—यह पूरे देश के खेल भविष्य का है. अगर आज हम अपने स्टार खिलाड़ियों के गिरते प्रदर्शन पर मौन रहेंगे, तो कल नए खिलाड़ियों के लिए कोई उदाहरण नहीं बचेगा. और तब शायद कोई नीरज चोपड़ा या निखत ज़रीन बनने की हिम्मत भी न कर सकेगा.
 
आख़िर में सवाल यही है—क्या हम इन दो चैंपियनों से फिर चमत्कार की उम्मीद कर सकते हैं? शायद हां, लेकिन उम्मीद अकेले काफी नहीं. अब वक्त है कठोर सच्चाइयों का सामना करने और तटस्थ विश्लेषण से रास्ता तय करने का. एक दौर ख़त्म हुआ है—अब या तो नया दौर शुरू होगा, या फिर इतिहास की किताबों में ही सहेज लिया जाएगा.