डॉ. फ़िरदौस ख़ान
हास्य-व्यंग्य कविता साहित्य की एक विधा है. इसमें जहां हास्य के माध्यम से श्रोताओं का मनोरंजन किया जाता है, वहीं व्यंग्य के द्वारा समाज की कुरीतियों, अंधविश्वासों और भ्रष्टाचार आदि पर कटाक्ष किया जाता है. वास्तव में हास्य-व्यंग्य की कविताएं गम्भीर विषयों को सरल और सहज शब्दों में व्यक्त कर लोगों को सोचने पर मजबूर करती हैं. जिस प्रकार भारतीय समाज में बहु को कुछ कहना होता है, तो सास अपनी बेटी को डांटती है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि बहु को बुरा भी न लगे और बात उस तक पहुंच भी जाए. हास्य-व्यंग्य की कविताएं भी यही काम करती हैं. देश में हास्य-व्यंग्य के कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जनमानस को जागरूक करने का काम किया है और आज भी कर रहे हैं.
काका हाथरसी
काका हाथरसी सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य के कवि थे. उनका असली नाम प्रभुलाल गर्ग था. वे ‘काका’ के नाम से नाटक किया करते थे, इसलिए लोग उन्हें काका कहने लगे. हाथरस के निबासी होने के कारण वे ‘काका हाथरसी’ नाम से विख्यात हो गए. उन्होंने इसी नाम से काव्य रचा. वे हास्य-व्यंग्य के कवियों के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणा स्रोत्र हैं. उनका उद्देश्य केवल अपने चुटीले अंदाज़ से लोगों का मनोरंजन करना ही नहीं था, बल्कि इसके माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों के प्रति जनमानस को जागरूक करने का कार्य किया. नशाख़ोरी पर उनकी व्यंग्य कविता का एक अंश देखें-
भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसंधान
देव-दनुज-किन्नर सभी, किया सोमरस पान
किया सोमरस पान, पियें कवि, लेखक, शायर
जो इससे बच जाये, उसे कहते हैं 'कायर'
कहें 'काका', कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला
दो घंटे में लिख डाली, पूरी 'मधुशाला'
काका हाथरसी ने शासन-प्रशासन की जनविरोधी नीतियों और भ्रष्टाचार पर भी जमकर कटाक्ष किए. उनकी एक कविता देखें, जिसमें उन्होंने नगरपालिका पर निशाना साधा है-
पार्टी बंदी हों जहाँ, घुसे अखाड़ेबाज़
मक्खी, मच्छर, गंदगी का रहता हो राज
का रहता हो राज, सड़क हो टूटी-फूटी
नगरपिता मदमस्त, छानते रहते बूटी
कहें ‘काका' कविराय, नहीं वह नगरपालिका
बोर्ड लगा दो उसके ऊपर ‘नरकपालिका’
उन्हें संगीत से भी लगाव था. उन्होंने संगीत कार्यालय की स्थापना की थी. उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
शैल चतुर्वेदी
शैल चतुर्वेदी सुप्रसिद्ध कवि, व्यंग्यकार, गीतकार और अभिनेता थे. वे अपने तीखे राजनीतिक व्यंग्य के लिए विख्यात थे. उन्होंने कई हिन्दी फ़िल्मों और टीवी धारावाहिकों में भी काम किया. उनकी प्रमुख फ़िल्मों में उपहार, मेरे भैया, चितचोर, पायल की झंकार, जज़्बात, हम दो हमारे दो, चमेली की शादी, नरसिम्हा, धनवान, क़रीब और तिरछी टोपीवाले शामिल हैं. उन्होंने टीवी धारावाहिक श्रीमान श्रीमति, ज़बान संभाल के, कुछ भी हो सकता है, ब्योमकेश बख़्शी और काकाजी कहिन में भी अपनी अभिनय प्रतिभा दिखाई.
उनके हास्य-व्यंग्य के संग्रहों में बाज़ार का ये हाल है, चल गई, लेन देन, तुम वाक़ई गधे हो, सौदागर ईमान के, कब मर रहे हैं, भीख माँगते शर्म नहीं आती, आँख और लड़की, पेट का सवाल है, हे वोटर महाराज, मूल अधिकार, दफ़्तरीय कविताएं, देश के लिए नेता, पुराना पेटीकोट, औरत पालने को कलेजा चाहिए, उल्लू बनाती हो?, तू-तू, मैं-मैं, एक से एक बढ़ के, अप्रैल फूल, यहाँ कौन सुखी है, गांधी की गीता, मजनूं का बाप, शायरी का इंक़लाब, दागो भागो, कवि सम्मेलन टुकड़े-टुकड़े हूटिंग, फ़िल्मी निर्माताओं से शामिल हैं.
वे हास्य कवि सम्मेलनों के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में से एक थे. श्रोता उनके मंच पर आने की प्रतीक्षा करते थे. सरकार पर तीखा व्यंग्य करती हुई उनकी एक कविता ‘कार/सरकार’ देखें-
नए-नए मंत्री ने
अपने ड्राईवर से कहा-
"आज कार हम चलायेंगे."
ड्राईवर बोला-
"हम उतर जायेंगे
हुज़ूर! चलाकर तो देखिये
आपकी आत्मा हिल जायेगी
ये कार है सरकार नहीं, जो
भगवान भरोसे चल जायेगी."
हुल्लड़ मुरादाबादी
हुल्लड़ मुरादाबादी सुप्रसिद्ध हास्य कवि थे. उनका असली नाम सुशील कुमार चड्ढा था. प्रारम्भ में उन्होंने वीर रस की कविताएं लिखीं. इसमें उनका मन नहीं लगा और वे हास्य-व्यंग्य की कविताएं लिखने लगे. उनकी कविताएं ख़ूब पसंद की जाने लगीं. उन्होंने फ़िल्म ‘संतोष’ और ‘बंधन बाहों का’ में अभिनय भी किया था.
उनकी प्रमुख कृतियों में इतनी ऊंची मत छोड़ो, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है, त्रिवेणी, तथाकथित, भगवानों के नाम, हुल्लड़ का हुल्लड़, हज्जाम की हजामत, बेस्ट ऑफ़ हुल्लड़ मुरादाबादी और अच्छा है पर कभी कभी शामिल हैं. उनकी हास्य-व्यंग्य की रचनाएं लोगों को हँसाने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर कर देती हैं. उनके कुछ दोहे देखें-
कर्ज़ा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए,
महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए.
बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय,
पंगा लेकर पुलिस से, साबित बचा न कोय.
पूर्ण सफलता के लिए, दो चीज़ें रखो याद,
मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद.
नेता को कहता गधा, शरम न तुझको आए,
कहीं गधा इस बात का, बुरा मान न जाए.
हुल्लड़ खैनी खाइए, इससे खांसी होय,
फिर उस घर में रात को, चोर घुसे न कोय.
हुल्लड़ काले रंग पर, रंग चढ़े न कोय,
लक्स लगाकर कांबली, तेंदुलकर न होय.
बुरे समय को देखकर, गंजे तू क्यों रोय,
किसी भी हालत में तेरा, बाल न बांका होय.
दोहों को स्वीकारिये, या दीजे ठुकराय,
जैसे मुझसे बन पड़े, मैंने दिए बनाय.
उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें कलाश्री अवार्ड, ठिठोली अवार्ड, टीओवाईपी अवार्ड, महाकवि निराला सम्मान, अट्टहास शिखर सम्मान, काका हाथरसी पुरस्कार और हास्य रत्न अवार्ड आदि शामिल हैं.
सुरेन्द्र शर्मा
सुरेन्द्र शर्मा सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि हैं. वे अपनी ठेठ हरियाणवी भाषा शैली और अपनी "चार लैन सुणा रियो ऊँ" के लिए जाने जाते हैं. उनकी लगभग सभी हास्य-व्यंग्य कविताओं के पात्र वे स्वयं और उनकी पत्नी ही होती हैं. वे किसी और पर कटाक्ष न करके स्वयं पर ही काव्य रचते हैं. उनकी यह शैली उन्हें विशिष्ट बनाती है. उनकी एक हास्य कविता देखें-
हमने अपनी पत्नी से कहा—
तुलसीदास जी ने कहा है—
‘ढोल गँवार सूद्र पशु नारी.
ये सब ताड़न के अधिकारी.’
इसका अर्थ समझती हो या समझाएँ?
पत्नी बोली—‘इसके अर्थ तो बिल्कुल ही साफ़ हैं
इसमें एक जगह मैं हूँ
चार जगह आप हैं.’
वे हरियाणा और दिल्ली की साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष भी रहे हैं. वे केन्द्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड के सदस्य हैं. उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
प्रदीप चौबे
प्रदीप चौबे एक प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य के कवि थे. उन्होंने देश, काल और समाज आदि पर हास्य कविताएं लिखीं. उनकी कविताओं में यथार्थ का चित्रण मिलता है. अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने मानवीय प्रवृत्ति को व्यक्त किया है. उनकी कविता का एक अंश देखें-
हम अपनी
शवयात्रा का आनंद ले रहे थे
लोग हमें
ऊपर से कंधा
और
अंदर से गालियाँ दे रहे थे
एक धीरे से बोला—
साला क्या भारी है!
दूसरा बोला—
भाई साहब
ट्रक की सवारी है
ट्रक ने भी मना कर दिया
इसलिए
हमारे कंधों पे
जा रही है
एक हमारे ऑफ़िस का मित्र बोला—
इसे मरना ही था
तो संडे को मरता
कहाँ मंडे को मर गया बेदर्दी
एक ही तो छुट्टी बची थी
कमबख़्त ने उसकी भी हत्या कर दी
अशोक चक्रधर
अशोक चक्रधर हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, लेखक, अभिनेता, निर्देशक और फ़िल्म निर्माता हैं. वे कविता की वाचिक परम्परा का विकास करने वाले हिन्दी के प्रमुख विद्वानों में से एक हैं. उनके कविता संग्रहों में बूढ़े बच्चे, सो तो है, भोले भाले, तमाशा, चुटपुटकुले, हंसो और मर जाओ, देश धन्या पंच कन्या, ए जी सुनिए, इसलिये बौड़म जी इसलिये, खिड़कियाँ, बोल-गप्पे, जाने क्या टपके, चुनी चुनाई, सोची समझी, जो करे सो जोकर, मसलाराम आदि प्रमुख हैं.
वे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान और दिल्ली हिन्दी अकादमी के उपाध्यक्ष भी रहे. उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें पद्मश्री, काका हाथरसी हास्य पुरस्कार, मनहर पुरस्कार, बाल साहित्य पुरस्कार, राष्ट्रीय सद्भाव कवि सम्मान, राष्ट्रभाषा समृद्धि सम्मान, कीर्तिमान पुरस्कार, काका हाथरसी सम्मान, हिन्दी उर्दू साहित्य अवार्ड, दिल्ली के गौरव सम्मान, राष्ट्रीय पर्यावरण सेवा सम्मान, सुमन सम्मान,सद्भावना पुरस्कार, चौपाल सम्मान, काव्य-गौरव पुरस्कार, स्वर्णपत्र सम्मान, निरालाश्री पुरस्कार, आशीर्वाद पुरस्कार, प्रियदर्शिनी अवार्ड, कीर्तिमान संगीत सम्मान, राजभाषा सम्मान, दिल्ली रतन, व्यंग्यश्री, काका बिहारी शिखर सम्मान, अट्टहास शिखर-सम्मान, सरस्वती सम्मान आदि शामिल हैं.
उनकी कविताओं में समाज के यथार्थ का चित्रण मिलता है. उनकी कविता का एक अंश देखें-
पिछले दिनों
राष्ट्रीय भ्रष्टाचार महोत्सव
मनाया गया,
सभी सरकारी संस्थाओं को
बुलाया गया.
भेजी गईं सभी को
निमंत्रण पत्रावली,
साथ में प्रतियोगिता की नियमावली.
लिखा था—
प्रिय भ्रष्टोदय!
आप तो जानते हैं
भ्रष्टाचार हमारे देश की
पावन, पवित्र, सांस्कृतिक विरासत है,
हमारी जीवन-पद्धति है
हमारी मजबूरी है
हमारी आदत है.
आप अपने
विभागीय भ्रष्टाचार का
सर्वोत्कृष्ट नमूना दिखाइए,
और उपाधियाँ तथा
पदक-पुरस्कार पाइए.
व्यक्तिगत उपाधियाँ हैं—
भ्रष्ट शिरोमणि, भ्रष्ट भूषण
भ्रष्ट विभूषण और भ्रष्ट रत्न
और यदि सफल हुए
आपके विभागीय प्रयत्न,
तो कोई भी पदक, जैसे :
स्वर्ण गिद्ध
रजत बगुला
या काँस्य कउआ दिया जाएगा,
सांत्वना-पत्र और
विस्की का
एक-एक पउआ दिया जाएगा.
अरुण जैमिनी
अरुण जैमिनी भी सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य के कवि थे. वे अपनी हरियाणवी शैली और हँसी-ठिठोली के लिए जाने जाते थे. उनमी कविता ढूंढते रह जाओगे बहुत लोकप्रिय हुई. इस कविता का एक अंश देखें-
चीज़ों में कुछ चीज़ें
बातों में कुछ बातें वो होंगी
जिन्हें कभी देख नहीं पाओगे
इक्कीसवीं सदी में
ढूँढ़ते रह जाओगे
बच्चों में बचपन
जवानों में यौवन
शीशों में दरपन
जीवन में सावन
गाँव में अखाड़ा
शहर में सिंघाड़ा
टेबल की जगह पहाड़ा
और पाजामे में नाड़ा
ढूँढ़ते रह जाओगे
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)