ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
इज्जत की कमाते हैं, इज्जत की खाते हैं, किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते, अमिताभ की मर्द फिल्म का ये मशहूर डॉयलोग सिर्फ मर्दों तक सीमित नहीं है. इस बात का जीता जागता उदाहरण हैं दिल्ली की महिला ऑटो ड्राइवर बिलकिस खान, जो अपनी मेहनत से रोजी-रोटी कमातीं हैं और अपने परिवार और तीनों बच्चों का पालन पोषण स्वयं करतीं हैं.
महिला ऑटो ड्राइवर बिलकिस खान ने आवाज को बताया कि हर महिला आराम की जिंदगी चाहती है जो एक गृहणी बन अपने पति और बच्चों का ख्याल रखे और घर संभाले. लेकिन शादीशुदा जिंदगी में 17 साल बीत जाने पर भी उन्हें वो सुख नसीब नहीं हुआ. जिसके बाद उन्होनें अपने बच्चों के लिए अपनी जिंदगी की डोर खुद संभाली और उसकी कैप्टन खुद बनीं.
आठवीं पास बिलकिस खान कहतीं हैं कि मेरा अनपढ़ पति नहीं चाहता था कि मेरे बच्चें पढ़ें-लिखें, किसी काबिल बनें. उसे केवल अपनी दारू और नशे की लत्त से वास्ता था. तब मेने एक हॉस्टल में हाउसकीपिंग का काम शुरू किया लेकिन उससे भी कोई गुजारा नहीं हो रहा था.
दूसरों की नौकरी में भी मुझे कोई आराम नहीं मिल रहा था. मेरे माता-पिता भी इस दुनिया में नहीं हैं. ऐसे में मुझे मेरे बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए अपनी इनकम का सोर्स खोजना ही था. तब मेरी बहन जो खुद एक बस ड्राइवर है, उसने मुझे एक रास्ता दिखाया जिसने मेरी और मेरे बच्चों की जिंदगी सवार दी.
महिला ऑटो ड्राइवर बिलकिस खान ने आवाज को बताया कि "मेने दिल्ली सरकार की नीति के अंतर्गत 28 दिनों की ऑटो ड्राइविंग की ट्रेनिंग लीं और मुफ्त लाइसेंस योजना के तहत मुझे मेरा ऑटो ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त हुआ. अब मैं ईटीओ कम्पनी के साथ जुडी हूँ जो एक इलेक्ट्रिक ऑटो हब है वहां से ऑटो संख्या 1382 लेकर में दिल्ली की सड़कों पर सवारियों को यहां से वहां छोड़तीं हूँ."
बिलकिस खान कहतीं हैं कि शुरुवाती दिन कठिन थे क्योंकि एक महिला ऑटो ड्राइवर को पुरुष ड्राइवर बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. उन्होनें मुझे ऑटो स्टैंड से मेरा ऑटो हटाने के लिए कहा, मेरा उनसे झगड़ा भी हुआ. इसमें अपशब्दों की बौछार भी मेरे ऊपर की गयीं. लेकिन मैं पीछे नहीं हटी. धीरे-धीरे महिला ऑटो चालकों को समाज ने अपनाया. लेकिन आज भी बहुत से पैसेंजर मेरे ऑटो में बैठने से डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि एक महिला केवल चूल्हा-चुका कर सकती हैं. सड़कों पर ऑटो चलाना उसके बस की बात नहीं.
ऑटो ड्राइवर बिलकिस खान ने आवाज को बताया कि पहले मुझे ऑटो चलाना थोड़ा अजीब इसीलिए भी लगा क्योंकि हमें सवारियों के लिए आवाज़ देनी होती है. चौक चौराहों पर चिल्लाना होता है. लेकिन दिल्ली के लोग ही मेरे सहयोगी बने जो मेरे ऑटो में बैठना पसंद करते और ऑटो राइड के बाद मेरी ड्राइविंग की तारीफ करते. इससे मुझे भी हौसला मिला.
कई सवारियों ने मेरी तारीफ की तो मुझे एहसास हुआ कि किसी और की नौकरी-चाकरी करने या किसी के घर में सफाई और जूठन साफ करने से कई बहतर ऑटो ड्राइविंग है. जिसमें मैं ऑटो ही नहीं अपनी जिंदगी की चालक हूँ. मेरी कम्पनी से मुझे महीने की सेलेरी 15000 रुपए प्राप्त होती है. जिससे मैं अपने मकान का किराया 4500 चूकाती हूं. मेरे बच्चों की पढ़ाई की फीस अदा करती हूँ, अपने घर में राशन भरती हूँ.
ऑटो ड्राइवर बिलकिस खान ने बताया कि 'ए टू जेड' सारी जरूरतों का ख्याल रखते हुए, मैं आनंद विहार में किराए के मकान में अपने बच्चों के साथ सुखी हूँ. मेरी बड़ी बेटी सीजा खान ने 12 वीं पास है और अब उसका एडमिशन मेने कॉलेज में बी.ए. की पढ़ाई के लिए करा दिया है, वो 17 साल की है. वहीँ मेरी छोटी लड़की जोया खान भी पढ़ाई
कर रही है, जॉकी 15 साल की है. उससे छोटा मेरा 10 वर्षीय बेटा अयान खान भी स्कूल में पढ़ता है.
बिलकिस खान कहतीं हैं कि मैं मेरे बच्चों को अपने जीते जी इस काबिल बना देना चाहतीं हूँ कि उन्हें किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े. वे अपने पैरों पर खड़ी हों खासकर की मेरी दोनों प्यारी बेटियां. मैं उनके हाथ तबतक पीले नहीं करूंगी जबतक वे खुद किसी काबिल न बन जाएं अपने लिए दो वक़्त की रोटी कमाना न सीख लें.
मुझे मेरे पती से अलग हुए 2 साल हो चुके हैं मुझे मेरी शादी का दिन याद नहीं है लेकिन अपनी मेहनत से कमाई हुई पाई-पाई याद है. मैं अपनी बहन का शुक्रिया अदा करतीं हूँ जिसने मुझे ये राह दिखाई. जिंदगी से मैं इस बात का ज्ञान प्राप्त कर चुकी हूँ कि कोई भी शख्स हमे केवल रास्ता दिखा सकता है हमे उसपर खुद ही आगे बढ़ना होता है. मैं भविष्य में अपनी बहन की तरह बस ड्राइवर बनना चाहती हूँ.
ऑटो ड्राइवर बिलकिस खान कहतीं हैं कि "मुझे अब ऑटो चलाते हुए 1 साल से ज्यादा हो चूका है. ज्यादातर मैं अपना ऑटो लोटस टेंपल, कालकाजी मंदिर, इस्कॉन मंदिर, नेहरू प्लेस, अक्षरधाम मंदिर या मेट्रो स्टेशन के बाहर लगाती हूँ. वहां से मुझे अच्छी सवारियां मिलतीं हैं.
हमारी इलेक्ट्रिक ऑटो कम्पनी ने मुझे प्रति दिन 650 रुपए के कलेक्शन का टारगेट दिया है. उससे ज्यादा हो जाता है तो और भी अच्छी बात है. मेरी ऑटो कम्पनी हब से मैं मानसी मेडम के गाइडेंस में काम करतीं हूँ. कभी बीच सड़क ऑटो बन्द हो जाता है तो हम उसे वहीं छोड़कर कम्पनी को बता सकते हैं. छोटी-मोती रिपेयर मैैं खुद भी कर लेेती हूँ."
बिलकिस खान कहतीं हैं कि सुबह 12 बजे तक घर का काम निपटा कर, बच्चों को स्कूल भेजकर मैं ऑटो लेकर निकल जाती हूँ. दिल्ली की सड़कों पर कभी-कभी रात को भी ऑटो चलाना पड़ जाता है. लगभग दिन के 8 से 9 घंटे मैं ऑटो चलतीं हूँ. कभी-कभी किसी सवारी से किराये को लेकर भी तू-तू में-में हो जाती है. लेकिन वो सब इस काम का ही एक हिस्सा है. अब ऑनलाइन राइड्स बुक होने लगी हैं, जिससे ऑटो की सवारियां सीमित हो गयीं हैं लेकिन अब हमारी कम्पनी ने भी एक ऑनलाइन एप्प लॉन्च किया है. जिसका नाम है सोजो एप्प, जो ऑनलाइन राइड्स ब्यूकिंग के लिए चौबीसों घंटे तैयार रहतीं हैं.

इस कम्पीटीशन के जमाने में बिलकिस खान ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों राइड्स के द्वारा सवारियों को उनके गंतव्य तक पहुंचातीं हैं. अभी हाल ही में उन्हें पिंक ऑटो राइडर अवार्ड से भी दिल्ली में सम्मानित किया गया है.
वे कहतीं हैं कि ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जिसमें महिला पीछे हैं. 35 वर्षीय बिलकिस खान का मानना है कि एक महिला अगर ठान ले, तो वो कुछ भी कर सकती है और समाज को उसे इज्जत बख्शनी होगी क्योंकि वो किसी से कुछ मांग नहीं रही बल्कि अपनी मेहनत के बलबूते अपनी जीवन की सारथी वो खुद है. अंत में वे कहतीं हैं कि
रात है तो सवेरा भी होगा,
है सफर तो अँधेरा भी होगा ,
गम के आगे मुस्कुराके गाएं हम
तारा रा रम, तारा रम पम.
वे महिलाएं जो अपने आप को लाचार समझतीं हैं कि वे एक मर्द के बिना कुछ भी नहीं कर सकतीं बिलकिस खान ऐसी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं.