आर्टिस्ट जुबैर बोले, Best Career Option साबित हो सकता है Calligraphy
Story by ओनिका माहेश्वरी | Published by onikamaheshwari | Date 09-07-2024
Calligraphy can prove to be the best career option: Calligraphy Artist Zubair
ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
उर्दू और हिंदी भाषा के मेल से बनाया गया यह ॐ (ओम) इस बात को साफतौर पर दर्शाता है कि एक कलाकार का सबसे बड़ा धर्म उसकी कला है. खूबसूरत कैलीग्राफी कला के धनी मोहम्मद ज़ुबेर अपना ब्रश चलाते वक़्त केवल इसी बात को सर्वोपरी रखते हैं.
प्रोफेशनल कैलीग्राफी आर्टिस्ट मोहम्मद ज़ुबेर निष्पक्ष दृष्टि से ग्रसित हैं उनकी बाईं आंख में रोशनि कम है जिसके कारण उन्हें कम दिखाई देता है वहीँ उनकी सीधी आंख में भी परेशानी है बावजूद इसके वे सभी को समान ऐनक से देखते हैं. वे कहते हैं कि संसार का कोई धर्म किसी अन्य धर्म से घृणा करने या बैर करने की शिक्षा नही देता.
मोहम्मद ज़ुबेर ने आवाज द वॉयस को बताया कि वे लगबग 20 वर्षों से कैलीग्राफी कर रहे हैं. उन्होनें अपनी पहली प्रदर्शनी 2003 में राजघाट पर लगाई थी जहां उन्हें बेइंतिहां मोहोब्बत और इज्जत नवाजी गई. इससे उन्हें अच्छी कमाई भी हुई.
मोहम्मद ज़ुबेर ने कैलीग्राफी अपने बड़े भाई हाफिज मोहोम्मद अकरम से सीखी. वे बचपन में ही अपने बड़े भाई के निब और ब्रश चुराकर अपना हाथ इस कला में अजमाते थे. जब वे बड़े हुए तो उन्हें इसमें खास रुचि हुई. उन्होनें लगभग 5 साल उर्दू अकादमी से कैलीग्राफी सीखी. जिसके बाद वे इस कला में निपुण हुए और लोग इनके सुलेख को खास पसंद करने लगे.
मोहम्मद ज़ुबेर ने आवाज द वॉयस को बताया कि लोग उनसे प्रेम पत्र लिखवाया करते थे, अपनी बोतल, पेन पर सुविचार और नामों को कैलीग्राफी द्वारा लिखवाना लोगों को बहुत पसंद था और मोहम्मद ज़ुबेर भी इसे खुशी से करते थे.
मोहम्मद ज़ुबेर उर्दू अकादमी में बतोर इंस्ट्रक्टर भी नियुक्त हुए और बच्चों को इस कला की शिक्षा दी. आज मुस्तफाबाद में एक एनजीओ सोफ़िया एडुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी के अंतर्गत वे बच्चों को मुफ्त में कैलीग्राफी सीखाते हैं. जिसमें हिंदी, अंग्रेजी, अरबी, उर्दू, पंजाबी आदि भाषा शामिल हैं.
मोहम्मद ज़ुबेर 100 से ज्यादा कैलीग्राफी वर्कशॉप्स अटेंड कर चुके हैं. और वे लगभग 2 से 3 हज़ार छात्रों को कैलीग्राफी सीखा चुके हैं जो आज ऑनलाइन माध्यम से अच्छा कमा रहे हैं.
मोहम्मद ज़ुबेर का मानना है कि आजकल की आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस और आधुनीकरण किसी भी सच्चे कलाकार को कभी मात नहीं दे सकता क्योंकि कंप्यूटर केवल एक मशीन है जबतक कलाकार इसमें इनपुट्स नहीं देगा AI अपको कोई ऑउटपुट नहीं दे सकता.
मोहम्मद ज़ुबेर ने बताया कि कैलीग्राफी एक अच्छा करियर ऑप्शन साबित हो सकता है. यह किसी एक मजहब से भी संबंधित नहीं हैं. जब विभिन्न धर्मों के लोग अपने नाम, ग्रंथ, विचार और नाम मुझसे सुलेख करवाते हैं तो मुझे यह कभी महसूस नहीं हुआ. इसीलिए यह एक विलुप्त कला नहीं बल्कि एक मॉडर्न आर्ट बनती जा रही है जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं.
मोहम्मद ज़ुबेर अपनी कैलीग्राफी इंक, ब्रश और निब से बेहद प्यार करते हैं और चाहते हैं कि लोग इसे सीखें वे आज भी 4 से 5 जगाहों पर छात्रों को कैलीग्राफी सीखते हैं. वे कहते हैं कि कभी-कभी कुछ चीज़ें हम भविष्य के लिए नहीं अपनी संतुष्टी के लिए भी करते हैं कैलीग्राफी भी गायन, क्रिकेट की तरह शौकिया तोर पर सीखी जा सकती है.
कैलीग्राफी आर्टिस्ट जुबैर हिंदुस्तान के जिस भी राज्य में जाते हैं लोग उन्हें घेर लेते हैं और वे कई नामचीन हस्तियों को उनका नाम कैलीग्राफी में लिखकर भेट कर चुके हैं. गॉड गिफ्टेड कला को निखार से सीखने के बाद वे हमेशा ही ऊपर वाले के शुक्रगुजार रहते हैं कि खुदा ने उन्हें एक ऐसी कला बक्शी है जिससे वे लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने में सक्षम है और वे इसे खुदा का नेक काम मानते हैं.
उन्होंने आवाज द वॉयस को बताया कि "दिल्ली की कई दीवारों, संग्रहालय, पुस्तकालय और संस्थान में उनके सुलेख हैं."
सुलेख के महत्व पर, जुबैर ने कहा, "पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात जिसने मुझे इस ओर आकर्षित किया, वह था इसका खुदा से जुड़ाव. पवित्र कुरान अरबी में लिखा गया था और इसमें इस्लामी सुलेख का इस्तेमाल किया गया था. मैंने अपने हाथों से पवित्र कुरान की आयतें लिखने के बारे में सोचा और यह अपने आप में सबसे अच्छा इनाम हो सकता है."
इस्लामी सुलेख का इस्तेमाल पवित्र कुरान जैसी पवित्र पुस्तकों और कविता और गीतों जैसे धर्मनिरपेक्ष कार्यों के लिए किया जाता था, लेकिन इसने वास्तुकला सहित लगभग हर दूसरे कला रूप में भी अपना रास्ता बना लिया। सल्तनत और मुगल काल की मस्जिदों, महलों और अन्य संरचनाओं की दीवारों पर खूबसूरत सुलेख देखे जा सकते हैं.
उन्होंने आवाज़ से कहा कि सभी कला प्रेमियों की ज़िम्मेदारी है कि वे सभी लुप्त हो चुकी कला रूपों को जीवित रखने के लिए काम करें. उन्होंने कहा, "यह हमेशा एक संयुक्त प्रयास होना चाहिए."
भारत भर में कई संग्रहालय, पुस्तकालय और संस्थान भारतीय सुलेख की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए समर्पित हैं. नई दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय में पांडुलिपियों, शिलालेखों और सुलेख कलाकृतियों का एक व्यापक संग्रह है. नई दिल्ली में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र भी दुर्लभ पांडुलिपियों और सुलेख सामग्री का संरक्षण करता है.
जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आधुनिक युग में इस लुप्त कला के अस्तित्व के बारे में पूछा गया, तो सुलेख कलाकार ने जवाब दिया, "चाहे तकनीक कितनी भी आगे बढ़ जाए, यह लोगों का जुनून ही है जो इस सदियों पुरानी कला को जीवित रखेगा."