इस साल क्यों चलने वाली है ज्यादा लू, प्रधानमंत्री को क्यों बुलानी पड़ी हीट वेव से निपटने के लिए बैठक

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 18-04-2024
Why is there going to be more heat this year, why did the Prime Minister have to call a meeting to deal with the heat wave?
Why is there going to be more heat this year, why did the Prime Minister have to call a meeting to deal with the heat wave?

 

मंजीत ठाकुर

प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़ी इस खबर की तरफ लोगों का ध्यान कम ही गया. पिछले 11अप्रैल को प्रधानमंत्री ने लू संबंधी स्थिति से निपटने के लिए तैयारियों की समीक्षा की थी. और इस बैठक में प्रधानमंत्री ने संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण पर जोर दिया; अस्पतालों में पर्याप्त तैयारी के साथ-साथ जागरूकता सृजन के महत्व पर भी बल दिया.

इस बैठक में प्रधानमंत्री को आगामी गर्म मौसम के पूर्वानुमान और तापमान के सामान्य से अधिक रहने की संभावनाओं के बारे में जानकारी दी गई.

प्रधानमंत्री को आगामी महीनों में गर्म मौसम (अप्रैल से जून) के पूर्वानुमान सहित अप्रैल से जून, 2024की अवधि के दौरान देश के अधिकांश हिस्सो में विशेष रूप से मध्य भारत और पश्चिमी प्रायद्वीपीय भारत में सामान्य से अधिक तापमान रहने की संभावना, से जुड़ी जानकारी प्रदान की गई. आवश्यक दवाओं, आइस पैक, ओआरएस और पेयजल के संदर्भ में स्वास्थ्य क्षेत्र में तैयारियों की भी समीक्षा की गई.

टेलीविजन, रेडियो और सोशल मीडिया जैसे सभी प्लेटफार्मों के माध्यम से विशेष रूप से क्षेत्रीय भाषाओं में आवश्यक आईईसी/जागरूकता सामग्री के समय पर प्रसार पर जोर दिया गया.आखिर प्रधानमंत्री को चुनाव की गहमागहमी के बीच यह महत्वपूर्ण बैठक क्यों करनी पड़ी? असल में, मौसम वैज्ञानिकों ने आशंका जाहिर की है कि 2024में सामान्य से अधिक गर्मी पड़ सकता है.

बैठक में प्रधानमंत्री ने संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण पर जोर देते हुए कहा कि केंद्र, राज्य और जिला स्तर पर सरकार के सभी अंगों और विभिन्न मंत्रालयों को इस पर तालमेल के साथ कार्य करने की आवश्यकता है.इस बैठक में प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव, गृह सचिव, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारियों ने भाग लिया.

आखिर कितनी गर्मी पड़ने वाली है इस साल ?

मौसम विज्ञानियों ने पूर्वानुमान लगाया है कि 2024 के गरमी के मौसम के दौरान यानी अप्रैल से जून के बीच उत्तर के मैदानी इलाकों समेत दक्षिण भारत में भीषण गर्मी होगी और लू चलेगी. मौसम विभाग (आइएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने एक अपने बयान में कहा है,  “अप्रैल-जून के बीच अधिकतम तापमान सामान्य से ऊपर रहने की आशंका है. मध्य भारत, उत्तर के मैदानी इलाकों और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में कई दिनों तक लू चलने का अनुमान है.”

गौरतलब है कि इन राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश हैं. 23राज्यों ने हीट वेव से निपटने के लिए कार्य योजना तैयार की है.केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरन रिजिजू ने अपने बयान में कहाः “अप्रैल के अंत में और उसके बाद गरम मौसम की भविष्यवाणी की गई है.”

हालांकि, आइएमडी की ओर से कहा गया था कि अधिकतम तापमान में वृद्धि का गेहूं की फसल पर कोई असर नहीं पड़ेगा. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि अप्रैल के पहले पखवाड़े तक देश में गेहूं की कटाई तकरीबन पूरी हो जाती है.

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क्या होती है लू यानी हीट वेव ?

भारत में गरमी के मौसम में चलने वाले स्थानीय पवन को लू कहा जाता है. असल में, अंग्रेजी में इस हीट वेव कहा जाता है.मौसम विभाग के मुताबिक, यदि आईएमडी का मौसम केंद्र का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों के लिए कम से कम 40डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तक पहुंच जाता है तो ऐसी स्थिति को हीटवेव माना जाता है.

आमतौर पर सामान्य से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्यिसस अधिक तापमान को हीटवेव घोषित किया जाता है और 6.4 डिग्री से अधिक का अंतर ‘गंभीर हीटवेव’ कहा जाता है.और, जब अधिकतम तापमान 45डिग्री सेल्सियस के बराबर या उससे ऊपर होता है, तो यह लू होती है, जबकि यदि यह 47डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर होता है, तो यह गंभीर लू होती है.

लू की स्थिति बताने के लिए मौसम विज्ञान उप-मंडल में कम से कम 2स्टेशनों पर लगातार कम से कम दो दिनों तक उपरोक्त मानदंड पूरे किए जाने की जरूरत होती है.

लू लगने के क्या हैं लक्षण ?

यदि कोई व्यक्ति इतने तापमान और गर्म हवाओं के संपर्क में ज्यादा समय तक रहता है तो वह लू की चपेट में आ सकता है.लू लगने पर शरीर में पानी की कमी भी महसूस होने लगती है. साथ ही कुछ लोगों को हीट वेव की वजह से तेज सिरदर्द होना, उल्टी और चक्कर आने जैसी परेशानियां हो सकती हैं. यदि कोई व्यक्ति 40डिग्री सेल्सियस के तापमान में कुछ घंटों तक रहता है तो उसमें हीट वेव के लक्षण दिखने लगते हैं. जो समय से इलाज न मिलने पर मौत का कारण भी बन सकती है.

इस साल हीट वेव या लू का खतरा ज्यादा क्यों है ?

आइएमडी की 2024 में लू के बड़े खतरे की चेतावनी ऐसे समय में आई है जब संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने हाल ही में चेताया था कि एशिया और भारत सहित दुनियाभर में पिछले साल गर्मी के रिकॉर्ड टूटने के बाद 2024में असामान्य उच्च तापमान देखा जाएगा.

उसके बाद, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कि भारत में कई चरम मौसमी घटनाओं में ‘तेजी’ देखी जा रही हैं. उन्होंने कहा, “जैसा कि आने वाले तीन महीनों में अत्यधिक गर्मी का अनुमान है, राज्य सरकारों सहित सभी हितधारकों ने विस्तृत तैयारी की है...”

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रविचंद्रन ने भी पिछले साल 26अप्रैल को ‘हीट ऐंड कोल्ड वेव्स इन इंडियाः प्रोसेसेज ऐंड प्रेडिक्टैबिलिटी’ नामक एक अध्ययन पेश किया था जिसमें उन्होंने लिखा है कि भारत में हीट वेव (लू) मुख्य रूप से दो क्षेत्रों में होती हैं - मध्य और उत्तर-पश्चिमी भारत और तटीय आंध्र प्रदेश.गौरतलब है कि 2023 के बाद 2024 भी अल नीनो के प्रभाव में है और इस मौसमी प्रक्रिया से प्रभावित वर्षों में अधिक लू चलती है.

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क्या होता है अल नीनो ?

अल नीनो दक्षिण अमेरिका के पेरू तट पर बहने वाली गर्म महासागरीय धारा है. असल में, सामान्य मौसमी परिस्थितियों में, प्रशांत महासागर में विषुवत रेखा के साथ-साथ व्यापारिक (स्थायी) पवन पश्चिम दिशा में बहती हैं. लेकिन, अल नीनो वर्षों में—जो 9से लेकर 12महीनों तक रहता है, या कई बार कई वर्षों तक बना रहता है—अल नीनो महासागरीय धारा का गर्म जल पीछे चला जाता है और दक्षिणी प्रशांत का जल अपेक्षया गर्म हो जाता है.

इस मौसमी परिस्थिति से विश्व के अलग-अलग हिस्सों में मौसम पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है. लेकिन, भारत और भारतीय उपमहाद्वीपीय इलाके में मॉनसूनी पवनों के कमजोर होने से सूखे जैसी परिस्थियां बनती हैं.

गौरतलब है कि 1961से 2021के बीच ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत में गर्मी का प्रकोप लगभग 2.5दिन बढ़ गया. पेपर में सुझाव दिया गया है कि मध्य और उत्तर-पश्चिमी भारत में बढ़ती हीटवेव की आवृत्ति को देखते हुए, 12-18दिनों तक दो हीटवेव और हीटवेव में बढ़ोतरी होगी.

कितना खतरनाक है हीट वेव ?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 1998-2017 तक, लू के कारण 166,000 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें यूरोप में 2003 की लू के दौरान मरने वाले 70,000 से अधिक लोग शामिल हैं.

इसी आंकड़े के मुताबिक, 2000 और 2016 के बीच, लू की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या में लगभग 12.5 करोड़ की वृद्धि हुई.ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन का असर भारतीय उपमहाद्वीप पर भी देखने को मिला है. भारत में मार्च से मई, 2022 तक 280 हीट वेव वाले दिन दर्ज किए गए, जो पिछले 12 वर्षों में सबसे अधिक रहा. 2022 में पांच राज्यों यानी राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और हरियाणा में हीट वेव का हिस्सा 54 फीसद था.

भारत में 2014 से 2023 तक का दशक अब तक का सबसे गर्म दशक रहा, जब वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 425पीपीएम की नई ऊंचाई पर पहुंच गया.पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के 2020 के आकलन के अनुसार, देश में 1950 के बाद से प्रति दशक 0.15 डिग्री सेल्सियस की महत्वपूर्ण औसत तापमान वृद्धि देखी गई है.

अन-नीनो प्रभाव का अपडेट

अल नीनो के बारे में ताजा अपडेट है कि यह मौसमी परिघटना अब खत्म हो गई है. इस बारे में बयान देते हुए ऑस्ट्रेलियाई मौसम अधिकारियों ने मंगलवार को कहा कि अल नीनो मौसम की घटना समाप्त हो गई है, उन्होंने यह भी कहा कि वे अनिश्चित थे कि इस साल के अंत में ला नीना घटना बनेगी या नहीं, जैसा कि अन्य पूर्वानुमानकर्ताओं ने भविष्यवाणी की है.