प्रोफेसर डॉ. कबीरुल बशर
बांग्लादेश में डेंगू अब कोई नई बीमारी नहीं, बल्कि एक गहरा संकट बन गया है.हाल के वर्षों में, इसने मौसमी सीमाओं को तोड़ दिया है.साल भर का ख़तरा बन गया है.हालाँकि, मानसून और मानसून के बाद के समय में डेंगू का प्रसार चिंताजनक रूप से बढ़ जाता है.
बांग्लादेश स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के नवीनतम आँकड़े बताते हैं कि जनवरी 2025 से 5 अक्टूबर तक देश में 49,907 लोग डेंगू से संक्रमित हुए और 212 लोगों की जान चली गई.अकेले सितंबर में ही संक्रमित लोगों की संख्या 15,866 थी.हमारे शोध के आँकड़ों को इसमें जोड़ने पर यह स्पष्ट है कि अक्टूबर में डेंगू का संक्रमण अपने चरम पर पहुँच सकता है, क्योंकि एडीज़ मच्छरों का घनत्व अब डेंगू के प्रसार के अनुकूल स्तर पर है.
राजधानी ढाका इस बीमारी का सबसे बड़ा केंद्र बन गई है.ढाका उत्तर और दक्षिण नगर निगमों में सबसे ज़्यादा मरीज़ों की पहचान हुई है.हालाँकि, संक्रमण सिर्फ़ राजधानी तक ही सीमित नहीं है.चटगाँव, खुलना, बारीसाल, राजशाही, मयमनसिंह और सिलहट समेत लगभग सभी संभागों में डेंगू फैल रहा है.
ग्रामीण इलाके भी अब सुरक्षित नहीं हैं.डेंगू को पहले शहरी बीमारी माना जाता था, लेकिन अब यह उपजिला स्तर तक फैल गया है.विश्लेषण से पता चलता है कि जहाँ दो-तिहाई संक्रमित लोग शहरी निवासी हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में भी संक्रमण तेज़ी से बढ़ रहा है, जिससे भविष्य में इस पर नियंत्रण और भी मुश्किल हो जाएगा.
सबसे चिंताजनक बात युवा और कामकाजी आबादी में डेंगू के मामलों और मृत्यु दर का उच्च स्तर है.संक्रमित लोगों की संख्या 16 से 30 वर्ष की आयु के लोगों में सबसे अधिक है.इसका मतलब है कि देश के छात्र और कार्यबल सबसे अधिक जोखिम में हैं.
एक ओर, परिवारों को असमय दुःख का सामना करना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर, शिक्षा और अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ रहा है.शैक्षणिक जीवन में व्यवधान के अलावा, काम से अनुपस्थिति बढ़ रही है और हर परिवार पर चिकित्सा खर्च वहन करने का दबाव बढ़ रहा है.
डेंगू के प्रकोप को समझने के लिए न केवल रोगियों की संख्या, बल्कि एडीज़ मच्छरों का घनत्व भी महत्वपूर्ण है.शोध से पता चलता है कि मानसून के कारण लार्वा युक्त पानी के बर्तनों की संख्या में खतरनाक रूप से वृद्धि हुई है.लार्वा घर के अंदर और बाहर छोटे गमलों, फूलों के गमलों, प्लास्टिक की बोतलों, निर्माणाधीन इमारतों में जमा पानी या ड्रमों जैसे स्रोतों से फैल रहे हैं.
इतना ही नहीं, प्रति कंटेनर लार्वा की संख्या में भी खतरनाक दर से वृद्धि हुई है, जिसका अर्थ है कि अब एक ही स्रोत से कई गुना ज़्यादा मच्छर पैदा हो रहे हैं.उच्च घनत्व का मतलब है कि संक्रमण की गति कई गुना बढ़ जाएगी.अगर अभी प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई, तो अक्टूबर तक कुछ ही हफ़्तों में मरीज़ों की संख्या दोगुनी या उससे भी ज़्यादा हो सकती है.
प्रश्न उठता है: बांग्लादेश बार-बार असफल क्यों क्यों होता है?पहला, मच्छर नियंत्रण कार्यक्रम प्रभावी नहीं हैं.नगर निगम अक्सर कागज़ी योजनाओं तक ही सीमित रहते हैं, जिनका वास्तविक प्रभाव बहुत कम होता है.विज्ञान-आधारित एकीकृत मच्छर प्रबंधन का स्पष्ट अभाव है.
दूसरी बात, जन जागरूकता अभी भी पर्याप्त नहीं है.कई परिवार रुके हुए पानी के प्रति सचेत नहीं हैं.एडीज़ मच्छर फूलों के गमलों, ड्रमों, कलशों या निर्माणाधीन इमारतों में जमा पानी में खुलेआम पनप रहे हैं.
तीसरा, समन्वय की कमी स्थिति को और जटिल बना रही है.स्वास्थ्य विभाग, स्थानीय सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों और जनता के बीच आवश्यक सहयोग और समन्वय का अभाव है.स्वास्थ्य व्यवस्था की कमज़ोरी भी डेंगू के ख़िलाफ़ लड़ाई में बाधा बन रही है.सरकारी अस्पतालों में नए मरीज़ों का दबाव हर दिन बढ़ रहा है, लेकिन बिस्तरों, डॉक्टरों और नर्सों की संख्या सीमित है.पर्याप्त रक्त, प्लाज़्मा या प्लेटलेट्स के बिना इलाज जटिल हो जाता है। नतीजतन, आम लोग अक्सर निजी अस्पतालों की ओर भागते हैं, जहाँ कई लोग खर्च वहन नहीं कर सकते.
यह संकट न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र पर, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर प्रभाव डाल रहा है.जब परिवार का कोई सदस्य प्रभावित होता है, तो पूरा परिवार चिकित्सा व्यय और उत्पादकता में कमी के कारण तबाह हो जाता है.उत्पादकता में कमी, काम के घंटों में कमी और चिकित्सा व्यय का बोझ देश की समग्र अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है.
इसलिए, अब तत्काल प्रभावी कदम उठाना आवश्यक है.मच्छर उन्मूलन गतिविधियों को समन्वित रूप से और अत्यंत महत्वपूर्ण रूप से चलाया जाना चाहिए.लार्वा के स्रोत को नष्ट किए बिना इस बीमारी पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता.
क्षेत्र स्तर पर स्वचालित प्रसार जाल या जैविक नियंत्रण जैसी शोध-आधारित तकनीकों का शीघ्र उपयोग ज़रूरी है.इसके अलावा, मीडिया, सोशल मीडिया, शैक्षणिक और धार्मिक संस्थानों का उपयोग जनता में जागरूकता पैदा करने के लिए किया जाना चाहिए.हर परिवार को यह समझना चाहिए कि एडीज़ मच्छरों के प्रजनन स्थलों को नष्ट करना उनकी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी भी है.
स्वास्थ्य व्यवस्था में आपातकालीन तैयारियों को भी बढ़ाया जाना चाहिए.अतिरिक्त बिस्तर, पर्याप्त दवाइयाँ, रक्त और प्रशिक्षित डॉक्टर सुनिश्चित करना आवश्यक है.ज़िला और उपजिला अस्पतालों में डेंगू उपचार सुविधाओं को मज़बूत किया जाना चाहिए ताकि मरीज़ों की ढाका में अनावश्यक भीड़ न लगे.
सबसे बड़ी बात यह है कि डेंगू को सिर्फ़ एक स्वास्थ्य समस्या के रूप में नहीं देखा जा सकता.यह अब एक राष्ट्रीय संकट बन चुका है.इस संकट से निपटने के लिए स्वास्थ्य, स्थानीय सरकार, शिक्षा, पर्यावरण, अनुसंधान संस्थानों और जनता के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है.अब समय आ गया है कि गैर-ज़िम्मेदाराना रवैया छोड़कर व्यावहारिक कदम उठाए जाएँ.
अक्टूबर हमारे लिए एक परीक्षा का महीना होने वाला है.अगर हम आज ही कड़े कदम नहीं उठाते, तो अक्टूबर में डेंगू की स्थिति एक भयानक मानवीय आपदा में बदल जाएगी.इसलिए अभी से कदम उठाना ज़रूरी है, वरना कल बहुत देर हो सकती है.
(प्रोफेसर डॉ. कबीरुल बशर: कीट विज्ञानी एवं जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ, प्राणि विज्ञान विभाग, जहांगीरनगर विश्वविद्यालय)