आवाज़ द वॉयस/ नई दिल्ली
जुबिन गर्ग, एक ऐसा नाम जिसे संगीत प्रेमियों ने सिर आंखों पर बिठाया, आज हमारे बीच नहीं हैं.लेकिन उनका संगीत, उनकी आवाज़और उनके गीतों का जादू अब भी लाखों दिलों में ज़िंदा है और यह जादू सीमाओं से परे जाकर भी दिलों को छू रहा है.हाल ही में पाकिस्तान के कराची में जो दृश्य सामने आया, उसने यह साबित कर दिया कि कला और संगीत की कोई सरहद नहीं होती.
19 सितंबर 2025 को सिंगापुर के लाज़रस आइलैंड में स्वीमिंग के दौरान ज़ुबिन गर्ग का अचानक निधन हो गया.शुरू में यह हार्ट अटैक और ड्राउनिंग का मामला माना गया, लेकिन बाद में असम पुलिस ने हत्या की आशंका के तहत जांच शुरू कर दी.
जैसे-जैसे यह खबर सामने आई, पूरे भारत में शोक की लहर दौड़ गई.असम, जो जुबिन का जन्मस्थान और उनकी आत्मा का घर था, वहां तो हाल ऐसा था मानो किसी ने परिवार का हिस्सा खो दिया हो.गुवाहाटी की सड़कों पर हजारों लोग उनके अंतिम दर्शन को उमड़े और असम सरकार ने उन्हें 21तोपों की सलामी देकर आख़िरी विदाई दी — जो राज्य के किसी भी कलाकार को दिया गया अब तक का सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है.
लेकिन इस ग़म की घड़ी में कराची से जो खबर आई, उसने इस दुख को एक अनोखे श्रद्धांजलि में बदल दिया.पाकिस्तान के मशहूर पॉप-रॉक बैंड 'ख़ुदगर्ज़' ने कराची में एक संगीत समारोह के दौरान जुबिन गर्ग को याद करते हुए उनका प्रसिद्ध गीत 'या अली' लाइव परफॉर्म किया.
जैसे ही बैंड ने यह गाना शुरू किया, पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, और हर चेहरा श्रद्धा, भावुकता और जुबिन की यादों से भीगा हुआ नज़र आया.सोशल मीडिया पर जब इस ट्रिब्यूट का वीडियो साझा किया गया, तो देखते ही देखते यह वायरल हो गया.वीडियो को अब तक 5लाख से ज़्यादा लोग देख चुके हैं.
'ख़ुदगर्ज़' बैंड ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा:"कराची से प्यार के साथ, जुबिन गर्ग... आप हमेशा हमारी प्लेलिस्ट का हिस्सा रहेंगे.शुक्रिया."
यह एक साधारण ट्रिब्यूट नहीं था.यह उस भावनात्मक पुल की तरह था, जो दो मुल्कों के बीच मौजूद तनाव, राजनैतिक दूरियों और सरहदों को पार कर, इंसानियत और कला को जोड़ता है.एक बैंड, एक शहरऔर सैकड़ों लोग जो जुबिन को कभी नहीं मिले, लेकिन उनके गीतों से इस कदर जुड़े थे कि उनकी मृत्यु का दुख साझा कर सके — यही संगीत की ताक़त है.
इस कॉन्सर्ट के दौरान जैसे ही 'या अली' के बोल गूंजे, दर्शक उनके साथ गाते और तालियां बजाते नज़र आए.कुछ की आंखें भीग गईं.एक सोशल मीडिया यूज़र ने लिखा,"काश जुबिन जानते कि उन्हें सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि बॉर्डर के उस पार भी कितना चाहा जाता था."
यह ट्रिब्यूट केवल एक गायक के लिए नहीं था; यह उस विरासत के लिए था जिसे उन्होंने शब्दों, सुरों और भावनाओं से रचा था.ज़ुबिन की आवाज़ ने कभी सीमाएं नहीं देखीं.उन्होंने हिंदी, असमिया, बंगालीऔर उड़िया जैसी भाषाओं में गाकर लाखों दिलों को छुआ.‘या अली’, ‘दिल तू ही बता’, और ‘भेजा कम’ जैसे हिट गानों ने उन्हें हर दिल अज़ीज़ बना दिया.
कराची में जो हुआ, वह यह दिखाता है कि सच्चा कलाकार सिर्फ अपने देश का नहीं होता,वो उन सबका होता है जो उसे सुनते हैं, महसूस करते हैं और उसकी भावनाओं में खुद को पाते हैं.
गौरतलब है कि पाकिस्तान में भारतीय कलाकारों को लेकर हमेशा मिश्रित प्रतिक्रियाएं रही हैं, लेकिन इसके बावजूद राहत फतेह अली खान, गुलाम अली, नुसरत फतेह अली खान और आतिफ असलम जैसे पाकिस्तानी गायकों को भारत में जो अपनापन मिला, उसने यह बार-बार सिद्ध किया है कि संगीत सबसे बड़ी सांस्कृतिक सेतु है.और अब जुबिन गर्ग को पाकिस्तान से जो स्नेह मिला है, वह उसी भावना को आगे बढ़ाता है.
एक सोशल मीडिया यूज़र ने इस वीडियो पर कमेंट किया,"संगीत ही असली धर्म है."और शायद इससे बेहतर श्रद्धांजलि जुबिन गर्ग के लिए नहीं हो सकती थी.'ख़ुदगर्ज़' बैंड अपने फ्यूज़न और रॉक स्टाइल के लिए जाना जाता है, लेकिन इस रात उन्होंने ज़ुबिन गर्ग के लिए जो किया, वह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन था.
एक ऐसी पुल जो कलाकार और सुनने वालों के दिलों को जोड़ती है.वीडियो में बैंड के एक सदस्य को गिटार बजाते और बाकी को जुनून के साथ गाते हुए देखा जा सकता है, जबकि कराची की भीड़ इस पल में पूरी तरह मगन नज़र आई.
यह ट्रिब्यूट हमें एक बार फिर यह याद दिलाता है कि सच्चा कलाकार कभी मरता नहीं.ज़ुबिन गर्ग हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी गूंज रही है.कराची की गलियों में, गुवाहाटी की सड़कों पर, और हर उस दिल में जो संगीत से प्रेम करता है.
उनकी अंतिम फिल्म ‘रॉई रॉई बिनाले’ जल्द रिलीज़ होने वाली है, जिसमें उनकी मूल आवाज़ सुनाई देगी.यह फिल्म उनके चाहने वालों के लिए एक और मौका होगी उन्हें महसूस करने का, उन्हें जीने का.जुबिन गर्ग एक आवाज़ नहीं, एक एहसास थे,जो अब सरहदों से परे एक युग बन चुके हैं.