सांप्रदायिकता के खिलाफ दो रैलियां

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 05-06-2022
सांप्रदायिकता के खिलाफ दो रैलियां
सांप्रदायिकता के खिलाफ दो रैलियां

 

प्रो. अख्तरुल वासे
 
रविवार (29 मई) को दिल्ली से देवबंद तक दो महत्वपूर्ण बैठकों में इस बात पर चर्चा हुई ‎कि मौजूदा हालात में मुसलमानों को क्या करना चाहिए? कट्टरपंथियों ‎और उपद्रवियों के प्रति ‎उनका क्या रवैया हो ? देवबंद सभा मौलाना सैयद ‎महमूद असद मदनी के नेतृत्व वाली जमीयत ‎उलेमा-ए-हिंद के पदाधिकारियों की दो दिवसीय बैठक थी.

इसकी सबसे खास बात यह थी ‎कि इसमें हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी, जो कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दूसरे गुट के ‎मुखिया हैं वह भी न सिर्फ मौजूद थे. उन्होंने दोनों गुटों की एकता और एकीकरण का जो ‎संकेत दिया वह इस बैठक में उपस्थित और अनुपस्थित प्रत्येक दिल की आवाज थी, जिसका ‎जोरदार नारों के साथ स्वागत किया गया.
 
जहां एक तरफ मौलाना सैयद ‎अरशद मदनी साहब ‎ने मुसलमानों को मौजूदा हालात में किस तरह से व्यवहार करना चाहिए, इस पर मार्गदर्शन ‎‎दिया, वहीं दूसरी तरफ मौलाना सैयद महमूद असद मदनी ने बड़ी हिम्मत और दूरदर्शिता से ‎कहा कि मुसलमान डर, ‎हताशा और भावनाओं से मुक्त रहकर अपना भविष्य को बेहतर बनाने की ‎सोचनी चाहिए.
 
मौलाना अरशद मदनी  ने बिल्कुल ठीक ही कहा कि हमारी लड़ाई ‎सांप्रदायिक ताकतों से है. उन्होंने कहा कि हमें निराश नहीं होना चाहिए. भारत में ‎अभी भी ‎न्यायप्रिय लोग मौजूद हैं. मौलाना महमूद मदनी ने साफ शब्दों में कहा कि हम देश के प्रति ‎अपनी ‎जिम्मेदारी जरूर निभाएंगे.
 
अगर इस देश की रक्षा के लिए हमारी जान भी चली जाए तो ‎‎यह हमारे लिए खुशी की बात होगी. जिन लागों को हमारी पहचान और देश से हमारी ‎मोहब्बत बर्दाश्त नहीं है तो वह कहीं और चले जाएं. मैं यह कहता हूं कि यह देश हमारा है ‎और हमारी सोच एवं विचार के अधिकांश लोग यहीं रहते हैं.
 
इस बैठक में कश्मीर से ‎कन्याकुमारी तक एवं पूर्व से पश्चिम तक हिंदुस्तान के हर इलाके से जमीयत के पदाधिकारी ‎‎शामिल हुए. इस बैठक में मुस्लिम पर्सनल लॉ, देशवासियों के साथ सद्भाव एवं उनकी ‎गलतफहमियों के लिए दीर्घकालिक नीति, ज्ञानवापी और मथुरा की ईदगाह पर बहुत सार्थक ‎तरीके से और देशप्रेम के संकल्प के साथ प्रस्ताव पारित हुए जिसमें कहा गया कि ‎अयोध्या विवाद के कारण पहले ही सामाजिक सद्भाव और ‎कानून-व्यवस्था को काफी नुकसान ‎पहुंचा है.

अब नए टकराव के द्वारा कुछ लोगों को बहुमत के वर्चस्व की नकारात्मक राजनीति ‎करने के नए अवसर न दिए जाएं.इस बैठक में पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का अपमान करने वालों के ‎खिलाफ सरकार से जल्द से जल्द ‎कानून बनाने की मांग की गई कि वह शीघ्र अतिशीघ्र ‎कोई ऐसा कानून बनाए जिससे प्रशासन की लाचारी और मजबूरी समाप्त हो.
 
इस तरह ‎‎शर्मनाक और अवर्णनीय हरकतों पर रोकथाम लगे एवं हर धर्म के नेताओं का सम्मान किया जाना ‎चाहिए. इस बैठक में हिंदी भाषा के हवाले से एक बहुत ही सकारात्मक प्रस्ताव भी पारित किया ‎गया जिसमें तमाम मुसलमानों खासतौर पर विद्वानों से अपील की गई है कि उर्दू के साथ हिंदी ‎और क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग करें और सबसे अहम बात यह कि सभी इमामों एवं उपदेशकों से ‎‎यह अपील की गई कि वह अपने उपदेश को हिंदी में भी दें, ताकि सब तक इस्लाम की सच्चाई ‎और परोपकार का संदेश पहुंच सके.
 
मुझे लगता है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद (मौलाना सैयद महमूद असद मदनी ग्रुप) की ‎इस बैठक ने उन सभी की ‎शिकायतों को दूर कर दिया होगा जो मुस्लिम पार्टियों और विद्वानों ‎से स्पष्ट भूमिका की मांग कर रहे हैं.
 
मौलाना ‎सैयद अरशद मदनी और मौलाना सैयद महमूद ‎असद मदनी ने देवबंद की इस सभा में अपने उत्साह, जोश और दृढ़ ‎संकल्प के साथ जो छाप ‎छोड़ी, वह आने वाले दिनों में बेहतर परिणाम देगी. मौलाना अरशद मदनी हों ‎या मौलाना महमूद ‎मदनी, दोनों अपने-अपने तरीके से जेलों में रह रहे निर्दोष और उत्पीड़ित लोगों को कानूनी मदद ‎देकर उनकी रिहाई सुनिश्चित कर रहे हैं वह अत्यंत प्रशंसनीय है.
 
इसी तरह राज्यसभा के पूर्व सदस्य मुहम्मद अदीब ने दिल्ली में ‎भारतीय मुस्लिम बौद्धिक ‎सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व नौकरशाह, पूर्व न्यायाधीश, ‎राजनीतिक ‎और सामाजिक हस्तियां इत्यादि शामिल थे.
 
इस मौके पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ‎और ‎वर्तमान सांसद डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने ठीक ही कहा कि यहां इकट्ठा हुए लोगों को न केवल ‎मुसलमानों की बल्कि पूरे ‎भारत की चिंता है. लोकसभा सांसद कुंवर दानिश अली ने झूठे मामलों ‎में मुस्लिम युवाओं की मदद के लिए लीगल फ्रेम बनाने की जरूरत पर बल दिया.
 
उन्होंने एक ‎‎ऐसा समूह बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया जो भारतीयों को एकजुट कर सके और ‎मुसलमानों का नेतृत्व कर सके. उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मिजोरम के पूर्व राज्यपाल ‎‎अजीज कुरैशी ने बड़ी निडरता से कहा जिसके लिए वह जाने जाते हैं कि कभी अजान, हिजाब ‎के मसले उठाए जाते हैं और हमें डराने की कोशिश की जाती है.
 
उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा ‎कि कोई भी सरकार या कोई ताकत हमें इस देश से अलग नहीं कर सकती. मौजूदा वक्त के ‎तहत हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी. पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने एक ‎गैर-राजनीतिक संगठन बनाने का आह्वान किया और कहा कि इसका गठन समय की ‎आवश्यकता है.
 
उन्होंने मतभेदों को हल करने का भी आह्वान ‎किया. उन्होंने कहा कि ‘‘अगर ‎हम टुकड़ों में बंटे रहेंगे तो कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे.’’ इस ‎अवसर पर बोलते हुए जनाब के. ‎रहमान खान ने कहा, ‘‘हमें अपने अनुभव से देश के ढांचे का निर्माण करने की जरूरत है.
 
हमें ‎‎विश्लेषण करने की जरूरत है कि हमारी पार्टियों की योजना क्यों विफल रही है? साथ ही ‎‎युवाओं और महिलाओं को ‎जोड़ने की जरूरत है.’’ मौलाना तौकीर रजा खान ने कहा कि यह ‎‎घर पर बैठने का समय नहीं है.
 
गांधी जी के रास्ते पर चल कर सत्याग्रह करना होगा जो ‎कि हमारा संवैधानिक अधिकार है. इस अवसर पर महिलाओं का ‎प्रतिनिधित्व पद्मश्री डॉ. सैयदा ‎सैयदैन हमीद और छात्र नेता सफूरा जरगर, समीना राणा, हुदा जर्रींवाला, सदफ ‎जाफरी और ‎डॉ. फरीदा बेगम ने किया. इनके अलावा मौजूदा लोकसभा सदस्य हसनैन मसूदी और ‎‎शफीकुर्रहमान बर्क के अलावा ‎पूर्व सांसद अजीज पाशा और अनवर अली ने ‎भी अपने विचार व्यक्त किए.

हालांकि ये दोनों सभाएं दो अलग-अलग शहरों में आयोजित की गईं, लेकिन उनके पीछे ‎का जो मकसद था वह एक ही था कि जिस तरह मुसलमानों, ‎उनके धर्म, उनके पैगंबर, उनकी ‎‎शरीयत, उनकी मस्जिदों, संस्थानों और दरगाहों को निशाना बनाया जा रहा है उसके खिलाफ ‎‎खुल कर आवाज उठाई जाए और संगठित होकर बचाव किया जाए.
 
आज सवाल ‎सिर्फ ‎मुसलमानों का नहीं है बल्कि हिंदुस्तान का है. वह जो मुसलमानों के खिलाफ हैं, वह न केवल ‎मुसलमानों के ‎खिलाफ हैं बल्कि महात्मा गांधी, भारत के संविधान और तिरंगे के भी खिलाफ हैं.
 
‎वे ईसाई, सिख, बौद्ध और ‎दलित जैसे अन्य अल्पसंख्यकों के भी खिलाफ हैं और सबसे बढ़कर वे ‎इस देश की एकता और सांप्रदायिक सद्भाव ‎के खिलाफ हैं और वे यह भूल रहे हैं कि अगर ‎भारत को आर्थिक रूप से विकसित करना है तो इसके लिए पहली और आवश्यक शर्त ‎शांति ‎व्यवस्था और सद्भावना है.
 
लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं.