पाकिस्तान में मीडिया विरोधी कानून की भरमार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 13-06-2024
There are many anti-media laws in Pakistan
There are many anti-media laws in Pakistan

 

mazharमज़हर अब्बास

ऐसा लगता है,"फ़ायरवॉल" के माध्यम से मीडिया को दीवार में चुनवाने की तैयारी है.मुझे नहीं पता कि निशाना मीडिया है या "डिजिटल पीटीआई".दोनों स्थिति में नुकसान मुस्लिम लीग (एन) और वर्तमान सरकार को होगा,जो मीडिया विरोधी कानून लाने में नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है.

 2016 में पिका लाए और अब उसकी अगली कड़ी में मीडिया अथॉरिटी, फिर मानहानि कानून के नाम पर पंजाब में मीडिया को नियंत्रित करने की तैयारी और अब भाई मलिक चीन की ओर से "फ़ायरवॉल" के ज़रिए सोशल मीडिया पर हमला.

अगर जनरल जिया और जनरल मुशर्रफ आजादी छीनने के लिए इतने सारे कानून नहीं बनाते तो निश्चित तौर पर "बधाइयां" बनतीं.अब सरकार ये सब अपनी मर्जी से कर रही है या प्रॉक्सी के तौर पर किसी की पुष्टि किए बिना कुछ नहीं कह सकती.

यहां पत्रकार मारे जा रहे हैं. दोष मीडिया पर है. सेंसरशिप है. निशाना सिर्फ मीडिया है.मीडिया में "मानहानि" के कानून को स्वीकार करता हूं जो कुछ जांचों के बाद 2002 में लाया गया था, लेकिन यह तब भी कहा जाता था और अब भी कहा जाता है.

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आज मैं कहता हूं कि यह सरकारों की मंशा को दर्शाता है. आप सुधरना नहीं चाहते. आप विरोधियों को निशाना बनाना चाहते हैं. जब भी मीडिया पर सेंसरशिप लगे तो समझ लीजिए कि मीडिया कुछ अच्छा कर रहा है.

अगर पत्रकार शहीद हो रहे हैं. लापता हो रहे हैं. यातना का शिकार हो रहे हैं तो जान लें कि मीडिया अच्छा काम कर रहा है.1857 से लेकर आज तक प्रेस को नियंत्रित करने के लिए काले कानून लाये गये. कल अंग्रेजों द्वारा लाये गये. आज काले अंग्रेजों और उनके गुलामों द्वारा लाये गये.

तो अल्लाह के नाम पर तुम्हें दीवार बनानी है, बनाओ. सेंसरशिप लगानी है, लगाओ. कल भी विरोध किया था, आज भी करेंगे. फर्क सिर्फ इतना है कि पीटीआई के जमाने में मुस्लिम लीग का नेतृत्व हमारे साथ बैठा था, आज पीटीआई है.

हमारे सभी पत्रकारिता संगठनों को एकजुट होने की जरूरत है.अपने मतभेद किनारे रखें. बुरी चीज़ें आ रही हैं.मत कहो तेरा जान मुहम्मद, मेरा नसरुल्लाह गदानी और तेरी पीएफयूजे और मेरी पीएफयूजे.

इस तरह कुछ पत्रकारों ने कुछ साल पहले अलग-अलग फोरम बनाए. उनमें से एक "फ्रीडम नेटवर्क" ने एक साल तक कड़ी मेहनत की है. खासकर सिंध प्रांत में.सिंधी मीडिया को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की गई है.

उर्दू, अंग्रेजी के बाद सिंधी मीडिया सबसे ज्यादा प्रभावी है. इस रिपोर्ट में न केवल तथ्य और घटनाएं शामिल हैं.पत्रकारिता और पत्रकारों के सामने आने वाली समस्याओं को कैसे हल किया जाए, इसके सुझाव भी शामिल हैं.लगभग 50 विशेषताओं वाली इस शोध रिपोर्ट को पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि पत्रकारों पर हमलों की मंशा क्या है.

वैसे तो पूरे पाकिस्तान में पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की स्थिति बहुत खराब है.मीडिया हाउस खुद कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं. इस डिजिटल मीडिया युग में इतने सारे शब्दों के साथ पत्रकारिता हो रही है.

हालाँकि, केंद्र और अन्य प्रांतों की तुलना में सिंध प्रांत पहला प्रांत है,जहाँ पत्रकारों की सुरक्षा के लिए 2021 में पत्रकार सुरक्षा आयोग का गठन किया गया था.केंद्र और प्रांतों में भी ऐसा ही आयोग तुरंत गठित करने की जरूरत है.

आज की चुनौती है "डिजिटल या सोशल मीडिया".यह सूचना और दुष्प्रचार के लिए सबसे प्रभावी मंच भी है.समाधान "एक्स" या पूर्व में "ट्विटर" अनावश्यक रूप से प्रतिबंधित नहीं है.यह कैसा प्रतिबंध है कि "एक्स" पर प्रतिबंध के बाद मैंने कभी वीपीएन का सहारा नहीं लिया, लेकिन कोई मेरी तस्वीर के साथ उर्दू में लगातार ट्वीट कर रहा है.

वैसे, मेरे बहुत सारे हमनाम हैं .कभी-कभी गवर्नर हाउस और चीफ मिनिस्टर हाउस और कभी-कभी कुछ विज्ञापन कंपनी के मित्र भी होते हैं."सर, आपका आवेदन आ गया है." और मुझे कहना पड़ता है, भाई, मैंने आवेदन नहीं किया.इस तरह एक आदमी फेसबुक पर मेरा नाम इस्तेमाल कर रहा है.

अगर वे "पत्रकारिता" करते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं.ये समस्या सिर्फ मेरे साथ ही नहीं बल्कि कई भरोसेमंद लोगों के साथ भी है. उदाहरण के लिए,अनवर मकसूद.ये चुनौतियाँ हैं. इनका समाधान मीडिया पर प्रतिबंध लगाना या उसे नियंत्रित करना नहीं है.

अब मैं इस बारे में क्या कह सकता हूं कि "मानहानि" का कानून वो लोग बना रहे हैं जो हर दिन लोगों को बदनाम करते हैं.सरकारी विज्ञापनों में रोज झूठ फैलाया जाता है. विज्ञापन को समाचार के रूप में प्रस्तुत कर दुष्प्रचार किया जाता है.

हमारे मित्र जो सोचते हैं कि मीडिया या पत्रकार अपनी जवाबदेही नहीं चाहते, वे ग़लत हैं.हम गवाहियां पेश कर रहे हैं. किसी भी हाल में हत्यारों को पकड़ना मुश्किल है. 2008के बाद से लगभग हर सरकार और सूचना मंत्री को ठोस प्रस्ताव दिये गये हैं.

2008में तत्कालीन सूचना मंत्री शेरी रहमान ने "मीडिया शिकायत आयोग" के लिए एक ठोस प्रस्ताव दिया था.आने वाले सूचना मंत्रियों से भी यही अनुरोध किया गया था.यहां तक ​​कि सुप्रीम कोर्ट ने हामिद मीर और अन्य के अनुरोध पर सूचना मंत्रालय से "गुप्त" फंड को समाप्त कर दिया.

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प्रेस परिषद भी एक जवाबदेही मंच है, जिसे प्रभावी बनाने की जरूरत है.PEMRA नियमों को बातचीत के माध्यम से इस हद तक सुधार दिया गया है कि अगले PEMRA अध्यक्ष की नियुक्ति संसदीय समिति की सिफारिशों पर की जाएगी.शिकायत परिषद के सदस्यों की नियुक्ति भी समिति द्वारा की जानी चाहिए.

"डिजिटल मीडिया" पर सभी मीडिया हितधारकों, डिजिटल मीडिया संगठनों को सबसे पहले इन रुझानों और प्रवृत्तियों की समीक्षा करनी चाहिए कि क्या फर्जी है और क्या तथ्य है.सूचना क्या है. गलत सूचना क्या है.

दुष्प्रचार क्या है.अगर कोई अपनी राय व्यक्त कर रहा है तो यह उसका अधिकार है. अगर वह फर्जी खबर फैला रहा है तो कार्रवाई करें और कानून के मुताबिक इसे साबित करें. लेकिन राजनीतिक बदले की भावना का संकेत न दें. चुनाव के लिए दीवार या दीवार की शृंखला न बनाएं.

याद रखें "प्रतिबंध" या सख्तियाँ कभी भी समस्या का समाधान नहीं करतीं. यह सत्तावादी सोच है.जब सोशल मीडिया नहीं था तब सेंसरशिप थी. चाहे वह प्रिंट मीडिया का युग हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का.सेंसरशिप का संबंध किसी नये माध्यम से नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति के डर से है. यह "डिजिटल जिन्न" अब बोतल में बंद होने को तैयार नहीं. इसे खतरे से ज्यादा चुनौती के रूप में लेना बेहतर है.

( लेखक पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हैं)