सुविधाओं से लाभान्वित होने लगी ग्रामीण महिलाएं

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 21-05-2024
Rural women started benefiting from facilities
Rural women started benefiting from facilities

 

domreज्योत्सना डामोर

दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण को लेकर समय समय पर आंदोलन होते रहे हैं. बात चाहे राजनीति में प्रतिनिधित्व की हो या फिर सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में उनकी भागीदारी की हो. इसका अब व्यापक प्रभाव भी देखने को मिलता है. वर्तमान में दुनिया की सभी सरकारें अब महिलाओं को केंद्र में रख कर नीति और योजनाएं तैयार करने लगी हैं.

भारत में भी महिलाओं के अधिकारों से जुड़े कई आंदोलनों ने इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभाई है. जिसका परिणाम है कि आज सभी सरकार और राजनीतिक दल अपने एजेंडे में भी महिलाओं से जुड़े मुद्दों को सर्वोपरि रखने लगे हैं. चाहे वह स्वास्थ्य का मुद्दा हो, सामाजिक स्थिति की बात हो या फिर रोज़गार के माध्यम से उनके सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता का मुद्दा हो, सरकार सभी विषयों को प्राथमिकता देने लगी है.

इसका प्रभाव केवल शहरों तक ही नहीं बल्कि देश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में भी नज़र आने लगा है. जहां पंचायत स्तर पर महिलाओं और किशोरियों को कई प्रकार की सुविधाएं मिलने लगी हैं. ग्रामीण महिलाएं अब अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने लगी हैं.

ऐसा ही राजस्थान का लोयरा गांव भी है. जहां न केवल महिलाओं को आंगनबाड़ी के माध्यम से पोषाहार जैसी सुविधाओं का लाभ मिल रहा है बल्कि स्कूली स्तर पर किशोरियों को छात्रवृत्ति और माहवारी के दौरान पैड्स उपलब्ध कराये जाते हैं.

राजस्थान के पर्यटन नगरी के रूप में विख्यात उदयपुर स्थित यह गांव जिला मुख्यालय से करीब 10 किमी की दूरी पर आबाद है. बड़गांव पंचायत समिति अंतर्गत इस गांव की आबादी लगभग ढाई हजार के आसपास है.


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अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति बहुल इस गांव में 450 मकान हैं. गांव में ज्यादातर गमेती और डांगी समुदाय के लोग निवास करते हैं. इसके अतिरिक्त ओबीसी समाज की भी यहां अच्छी आबादी है. बाकी सामान्य समुदाय के कुछ परिवार भी यहां आबाद हैं. गांव के अधिकतर पुरुष उदयपुर शहर में मजदूरी करने जाते हैं.

इनमें अधिकतर चिनाई कारीगर, बेलदार, मार्बल फिटिंग अथवा मार्बल घिसाई मजदूर के रूप में काम करते हैं जबकि महिलाएं शहर के बड़े घरों में घरेलू सहायिका और कुछ खेतों में मज़दूरी करती हैं.भले ही आर्थिक रूप से यह गांव सशक्त न हो, लेकिन जागरूकता के मामले में इस गांव में पहले की अपेक्षा सुधार हुआ है.

गांव की महिलाएं सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ उठाने लगी हैं. एक ओर जहां उन्हें मनरेगा के तहत काम मिलने लगा है तो वहीं आंगनबाड़ी के माध्यम से पूरक पोषाहार कार्यक्रम के तहत सुविधाएं उपलब्ध होने लगी हैं.

गांव की 34 वर्षीय गंगा देवी कहती हैं कि "रोजगार के मामले में महिलाओं की स्थिति में पहले की अपेक्षा सुधार हुआ है. गांव में मनरेगा के अंतर्गत जब भी काम होते हैं तो उसमें महिलाओं की भी भागीदारी होती है. लेकिन यह निरंतर रूप से नहीं मिल पाता है.

यही कारण है कि अधिकतर महिलाएं शहरों में बड़े घरों में साफ सफाई का काम करती हैं. कुछ महिलाएं खेतों में मजदूर के रूप में भी काम करती हैं ताकि वह घर की जरूरतों को पूरा कर सकें." वह कहती हैं कि महिलाएं रोज़गार के प्रति काफी गंभीर हैं.

यदि गांव में स्वयं सहायता समूह के अंतर्गत रोज़गार के अवसर उपलब्ध हो जाते हैं तो यह लोयरा गांव की महिलाओं के लिए वरदान साबित होगा. फिलहाल मनरेगा के तहत जो काम आते हैं, इसमें महिलाओं की समुचित भागीदारी होती है.

वहीं 35 वर्षीय प्रेमा बाई गांव में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र की सराहना करते हुए कहती हैं कि केंद्र से न केवल बच्चों को बल्कि गर्भवती महिलाओं को भी समय पर पूरक आहार उपलब्ध कराया जाता है. केंद्र की संचालिका और सहायिका समय पर सभी ज़रूरतमंद महिलाओं तक पोषाहार उपलब्ध कराने का प्रयास करती हैं.

इसके अतिरिक्त यह भी सुनिश्चित करती हैं कि गर्भवती महिलाओं का समय पर सभी टीकाकरण हो. वह बताती हैं कि आंगनबाड़ी के माध्यम से गांव की महिलाओं और किशोरियों को मुफ्त पैड्स उपलब्ध कराये जाते हैं. साथ ही समय समय पर उनके द्वारा इस दौरान स्वयं को कैसे स्वस्थ रखें, इस बात की जानकारी भी उपलब्ध कराई जाती है.

वह बताती हैं कि यह आंगनबाड़ी केंद्र किशोरियों के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हो रहा है. जहां उन्हें उन सभी बातों की जानकारी उपलब्ध हो रही है जो वह घर में भी किसी से पूछने में झिझक महसूस करती थी. वहीं 40 वर्षीय धूली बाई कहती हैं कि पहले गांव में महिलाओं को सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बारे में बहुत कम जानकारियां थी.

लेकिन अब आंगनबाड़ी केंद्र के माध्यम से महिलाएं न केवल उन योजनाओं के बारे में जानने लगी हैं बल्कि उनका लाभ भी उठाने लगी हैं. हालांकि अभी भी कुछ महिलाएं ऐसी हैं जिनके पास समुचित पहचान पत्र और दस्तावेज़ नहीं होने के कारण सुविधाओं का लाभ नहीं मिल सका है.

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गांव में शिक्षा विशेषकर बालिका शिक्षा की अगर बात करें तो इसमें भी पहले की अपेक्षा सुधार आने लगा है. गांव में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय की अधिकतर लड़कियां 12वीं तक शिक्षा प्राप्त करने लगी हैं.

वह सरकार द्वारा दिए जाने वाली प्रोत्साहन राशि और छात्रवृत्ति का भी समुचित लाभ उठा रही हैं. वहीं स्कूलों में उन्हें माहवारी से जुड़ी न केवल सभी जानकारियां उपलब्ध कराई जाती है बल्कि पैड्स भी उपलब्ध कराये जाते हैं.

लोयरा स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में 9वीं की छात्रा उमा बताती है कि जब वह सातवीं की छात्रा थी तो स्कूल की शिक्षिका द्वारा उसे माहवारी से जुड़े विषय और पैड्स के इस्तेमाल करने के तरीके के बारे में बताया था.

वह कहती है कि स्कूल में छात्राओं के लिए पैड्स उपलब्ध रहते हैं. उमा के साथ पढ़ने वाली 13 वर्षीय केतकी कहती है कि "हमें न केवल इन विषयों पर बल्कि सरकार द्वारा छात्राओं के हितों में चलाई जा रही कई अन्य योजनाओं के बारे में भी स्कूल की शिक्षिकाएं बताती रहती हैं."

वह बताती है कि उसके पिता एक दैनिक मज़दूर हैं. ऐसे में वह उसकी शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते हैं. लेकिन वह सरकार द्वारा मिलने वाली छात्रवृत्ति के कारण पढ़ने में सक्षम हो सकी है.ऐसा नहीं है कि सरकार महिलाओं और किशोरियों के हितों में योजनाएं नहीं बनाती है.

बात चाहे वृद्धावस्था पेंशन योजना हो, एकल नारी सम्मान योजना हो या फिर आई एम शक्ति उड़ान योजना हो. यह सभी महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से शुरू किये गए हैं. लेकिन जागरूकता के अभाव में महिलाएं इसका समुचित लाभ नहीं उठा पाती हैं.

ऐसे में लोयरा गांव की महिलाओं की जागरूकता और सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने की तत्परता अन्य ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा. (चरखा फीचर)