जमीयत-ए-अहले हदीस और जम्मू-कश्मीर के ग्रैंड मुफ्ती की ईद-उल-अजहा सादगी से मनाने की अपील

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 18-06-2024
Jamiat-e-Ahle Hadith and Grand Mufti of Jammu and Kashmir appeal to celebrate Eid-ul-Azha with simplicity
Jamiat-e-Ahle Hadith and Grand Mufti of Jammu and Kashmir appeal to celebrate Eid-ul-Azha with simplicity

 

 एहसान फाजिली-मोहम्मद अकरम/श्रीनगर-नई दिल्ली

जमीयत-ए-अहले हदीस ने मुसलमानों से ईद अल-अजहा की नमाज ईदगाह या मस्जिद के बाहर सड़कों पर नहीं अदा करने की अपील की है. उधर,जम्मू-कश्मीर के ग्रैंड मुफ्ती मुफ्ती नासिर-उल-इस्लाम ने लोगों से ईद-उल-अजहा सादगी से मनाने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि त्यौहार पर भारी खर्च कर के इसे जटिल न बनाएं. इससे गरीबों के लिए चीजें मुश्किल हो जाएंगी.

उन्होंने कश्मीर के मुस्लिम बहुसंख्यकों से त्यौहार को इस्लाम की सही भावना के अनुरूप मनाने और इसे विविधता में एकता का अवसर बनाने का आग्रह किया. ईद-उल-अजहा का पर्व ईद-उल-फितर के दो महीने, 10 दिन बाद इस्लामी कैलेंडर के आखिरी महीने जुल हज के 10वें दिन मनाया जाता है.

आवाज-द वॉयस से बात करते हुए ग्रैंड मुफ्ती ने कहा, ईद को सादगी से मनाया जाए. इस अवसर पर गरीबों की मदद करना सुनिश्चित करें. उन्होंने कुर्बानी के पशुओं के गोश्त को परंपराओं के अनुसार तीन भागों में बांटने की बात दोहराई. एक तिहाई जरूरतमंदों के लिए, एक तिहाई रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए और एक तिहाई निजी उपभोग के लिए रखा जाए.

 जम्मू-कश्मीर में ईद-उल-अजहा के ढाई दिनों के दौरान मुख्य रूप से भेड़ और बकरियों की कुर्बानी की जाती है.ग्रैंड मुफ्ती ने इस्लाम की भावना और पैगंबर इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल के अल्लाह पर विश्वास का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया.

ग्रैंड मुफ्ती नासिर-उल-इस्लाम ने लोगों से ऐसी चीजों से प्रोत्साहित न करने की अपील की जो इस्लाम के अनुरूप न हों. उन्होंने सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल से बचने की सलाह दी. कहा कि इससे कई तरह की गलतफहमियां पैदा होती है. विभिन्न वर्गों के लोग परेशान होते हैं तथा धर्म से दूर होते हैं.

मुफ्ती नसीर-उल-इस्लाम ने कुर्बानी के रूप में खाए जाने वाले भेड़ या बकरे की कीमतों पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता पर भी जोर दिया.उन्हांेने कहा कि रिपोर्टों में पशुओं की दरों में विसंगतियां होने की बात सामने आई है.

उन्होंने कहा कि कोई निश्चित मूल्य नहीं होने के कारण कुछ लोग पशुओं की ऊंची कीमत लगा रहे हैं, जो उन लोगों के लिए निराशाजनक है जो इसे वहन नहीं कर सकते.ग्रैंड मुफ्ती ने टिप्पणी की, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जल निकायों के पास कुर्बानी के जानवरों को वध करने से बचना चाहिए.

लोग खाल, सिर और पैर सहित अन्य अपशिष्ट पदार्थ जल निकायों के आसपास छोड़ दिए जाते हैं, जिससे प्रदूषण होता है. उन्होंने इस उद्देश्य के लिए खुली भूमि का चयन करने की अपील की, जहां अपशिष्ट पदार्थ को प्राकृतिक रूप से सड़ने के लिए मिट्टी के नीचे दबाया जा सके.

उन्होंने कहा कि सरकारी विभागों की मदद से खाल, सिर और पैर का उचित निपटान भी किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने  पर्यावरण को बचाने पर जोर दिया था.
ग्रैंड मुफ्ती ने बकरीद पर सरकार से विभिन्न तरीकों से पर्यावरण प्रदूषण की प्रथा को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय करने की मांग की.

साथ ही जल निकायों के पास के क्षेत्रों का उपयोग सैलानियों द्वारा खुले में पेशाब और शौच के लिए करने से रोकने पर भी बल दिया. उन्होंने कहा, परिणाम यह है कि हम पीने के पानी को प्रदूषित कर रहे हैं.

उन्होंने लोगों से ईद-उल-अजहा के दिनों में कुर्बानी के जानवरों के अपशिष्ट के निपटान के लिए एनएलसीओ स्वयंसेवकों की सहायता से एसएमसी और जम्मू-कश्मीर झील संरक्षण एवं प्रबंधन प्राधिकरण के साथ समन्वय करने का आग्रह किया.

इस बीच, श्रीनगर जिला प्रशासन ने श्रीनगर नगर निगम (एसएमसी) को शहर के हर वार्ड में खालों के संग्रह केंद्रों का प्रचार करने और ऊन के संग्रह के लिए पर्याप्त वाहनों की तैनाती करने का निर्देश दिया है.

जमीयत ए अहले हदीस की अपील सड़कों पर ईद की नमाज न अदा करें

जमीयत अहल ए हदीस हिन्द के अध्यक्ष मौलाना असगर अली इमाम मेहदी ने कहा है कि कुर्बानी करना हर सामर्थ्य मुसलमान पर फर्ज है. ईद अल-अजहा के मौके पर हमें दिखावे से बचना चाहिए.

इस मौके पर इस्लामी आचरण और उसके बताए निर्देशों को सामने रखें. सरकार के निर्देशों का पालन करें. यथासंभव ईद की नमाज ईदगाह या मस्जिद के बाहर सड़कों पर न अदा करें. प्रतिबंधित जानवरों की कुर्बानी से बचें और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखें.

इस्लामी और मानवीय भाईचारा और प्रेम बनाए रखें और हर उस काम को करने से बचें जिससे असामाजिक तत्वों को सामाजिक ताने बाना बिगाड़ने का मौका मिले.
 
कुर्बानी के अवशेष और कचरे को दफन या कूड़ेदान में डालें
 
उन्होंने आगे कहा कि इस्लाम में सफाई ईमान का आधा हिस्सा बताया गया है.  इसके लिए समाज के जिम्मेदारों को आगे बढ़ना चाहिए. इस बात का ध्यान रखें कि कुर्बानी के अवशेष और कचरे को सड़कों, गलियों और नालियों में न फेंके. इसके बजाय, इसे मिट्टी में दफन करें या कूड़ेदान में डाल दें.इस दौरान अगर कोई असामाजिक तत्व माहौल बिगाड़ने की कोशिश करें तो स्थानीय प्रशासन को जानकारी दें. कानून को अपने हाथ में न लें.
 
हजरत इब्राहिम (स.अ.व) के जीवन से लें सीख

 दूसरी तरफ अबुल कलाम आजाद इस्लामिक एजुकेशनल सेंटर के मौलाना अब्दुल्लाह सई सनाबली ने कहा कि कुर्बानी देने का रिवाज सभी धर्मों में है. उसकी शक्ल अलग अलग है. कुर्बानी के माध्यम से हमें हजरत इब्राहिम (सल्लल्लाहो वाले वसल्लम) के जीवन से सीखना चाहिए कि कैसे अल्लाह के हुक्म का पालन करने के लिए माता-पिता, घर, जमीन और संपत्ति छोड़ देते हैं.
 
कुर्बानी का कोई विकल्प नहीं

मौलाना ने आगे कहा कि आजकल कई लोग कुर्बानी के बारे में कहते हैं कि इसके बजाय दान करो या किसी गरीब से शादी करो. ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि कुर्बानी का कोई विकल्प नहीं. हमें भी यह इबादत उसी तरह करनी चाहिए जिस तरह मोहम्मद (स.अ.व) ने की थी.
 
बच्ची और औरत भी कुर्बानी कर सकती हैं
 
कुर्बानी खुद अपने हाथ से करें. एक बुद्धिमान बच्चा भी कुर्बानी कर सकता है. बच्ची और औरत भी कुर्बानी कर सकती है. इसका वक्त ईद उल अजहा की नमाज अदा करने के बाद से शुरू होता है.

कोई शख्स नमाज से पहले कुर्बानी देता है तो वह जायज नहीं. पूरे परिवार की तरफ से एक जानवर की कुर्बानी करना काफी है. किसी के पास धन-संपत्ति है तो जितनी चाहे कुर्बानी कर सकता है.