सिर्फ हॉर्न ही नहीं, खराब पहियों और इंजनों का शोर भी होता है.
हम इंसान हर तरह से और अपने हर काम से शोर मचाते हैं. और यातायात के शोर से बहरापन, चिड़चिड़ापन और सड़क पर हिंसक वारदातें अधिक होती हैं.
अपने कारखानों से लेकर, लाउडस्पीकर पर गलाफाड़ भाषण, गाने वगैरह के लिए चिचियाने तक, हर समय हम शोर करते हैं और उसका असर इंसानी बर्ताव के साथ-साथ दूसरे जानवरों पर भी पड़ता है.
खास तौर पर, इसका असर परिंदों की जिंदगी पर भी पड़ रहा है. पर्यावरण पर आधारित वेबसाइट डाउन टू अर्थ में छपी रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है, “बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से पक्षियों का जीवन बेहद प्रभावित हो रहा है.उनमें प्रजनन की शक्ति घट रही है और साथ ही उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आ रहा है.”
इस रिपोर्ट में एक अध्ययन का हवाला दिया गया है. यह अध्ययन जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर ऑर्निथोलॉजी के शोधार्थियों ने किया है. उन्होंने जेबरा फिंच नाम के पक्षी पर अध्ययन किया और पाया कि ट्रैफिक के शोर से उनके रक्त में सामान्य ग्लकोकार्टिकोइड प्रोफाइल में कमी हुई और पक्षियों के बच्चों का आकार भी सामान्य चूजों से छोटा था. अध्ययन में दावा किया गया है कि ट्रैफिक के शोर की वजह से पक्षियों के गाने-चहचहाने पर भी फर्क पड़ता है.
यह अध्ययन कंजर्वेशन फिजियोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
सिर्फ परिदों की ही बात नहीं है. समुद्री और जलीय जीवों पर भी इंसानों के शोर-गुल का काफी असर पड़ रहा है. भौतिकी का सामान्य नियम बताता है कि ध्वनि की रफ्तार हवा की तुलना में पानी में काफी अधिक होती है और ध्वनि तरंगें पानी में काफी दूर तक यात्रा भी कर सकती हैं. लेकिन, इसकी वजह से समुद्री जीवन के लिए ध्वनि प्रदूषण खतरा बनकर दरपेश है.
वैसे, तो जलीय जीव का जीवन पानी के ध्वनि तरंगों के लिहाज से शिकार, भोजन, श्वसन और प्रजनन के लिए लाखों बरसों में अनुकूलित हुआ है. असल में, कई जलीय जीव, मसलन कई मछलियां और अन्य समुद्री जीव एक-दूसरे से बात करने के लिए ध्वनि तरंगों की मदद लेते हैं. इनके जरिए वह भोजन और प्रजनन के उपयुक्त स्थानों का पता लगाते हैं. इसके साथ ही ध्वनि की मदद से वह शिकारियों और आसन्न खतरों का अंदाजा भी लगाते हैं.
लेकिन, जरूरत से ज्यादा शोर और अधिक आयाम की तरंगों से उनकी खुद की आवाजें गुम हो गई हैं. इससे एक जीव दूसरे जीव तक अपने संदेश नहीं भेज पाते हैं.
वैज्ञानिक पत्रिका साइंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, इंसानों के कारण समुद्र में ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और प्राकृतिक आवाजें गुम होती जा रही हैं. जिसका असर छोटी झींगा से लेकर व्हेल तक की जिंदगी पर पड़ रहा है.
एक अन्य अध्ययन क्वींस यूनिवर्सिटी बेलफास्ट ने किया है जो ध्वनि प्रदूषण के कारण स्थलीय वन्यजीवों पर पड़ने वाली चिंता को सामने लाता है. अगर वन्य जीव, अपनी प्रजाति (या अन्य प्रजातियों के) दूसरे जीवों की आवाज न सुन पाएं तो उनकी जिंदगी पर खतरा आ सकता है. मसलन, सुंदरबन के जंगलों में बाघ के निकलने पर एक चिड़िया शोर करती है और उसे सुनकर हिरन और बाकी के जीव सतर्क हो जाते हैं. लेकिन हिरन अगर चिड़िया का शोर न सुन पाए तो उसके जीवन पर खतरा होगा.
इसका अर्थ है कि ध्वनि प्रदूषण के कारण इन जीवों का अस्तित्व दांव पर ही लगा है. इसलिए बेवजह शोर न मचाइए, और फिजूल में हॉर्न तो बिल्कुल न बजाइए. खाली सड़क पर तो कत्तई नहीं.
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