मुस्लिमों को श्रमशक्ति में हिस्सेदारी बढ़ानी होगी

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 06-08-2021
कामकाजी मुसलमानों में से 41 फीसद खेती करता है
कामकाजी मुसलमानों में से 41 फीसद खेती करता है

 

देशहित । मंजीत ठाकुर    

तकरीबन हर सियासी पार्टी अपने चुनावी घोषणापत्र में अल्पसंख्यकों (पढ़ें, मुसलमानों) की आर्थिक स्थिति सुधारने की बात करती है. लेकिन, सचाई यह है कि मुसलमानों की तादाद देश के कार्यबल में या श्रमशक्ति में महज 33 फीसद है.

वैसे भी, भारत में आबादी के मुकाबले कामकाजी बल की हिस्सेदारी दुनिया में सबसे कम है. और इसमें भी महिलाओं और मुसलमानों का प्रतिशत सबसे कम है. भारत में कुल आबादी में कामकाजी (करने योग्य और इच्छुक) लोग महज 40 फीसद हैं.

नमूना पंजीकरण प्रणाली की रिपोर्ट बताती है, भारत की करीब दो तिहाई आबादी 15 से 59 साल के बीच की है. आज की तारीख में जब दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के सामने घटती हुई कामकाजी आबादी की चुनौती दरपेश है, भारत में दुनिया के किसी भी देश की तुलना में अधिक कामकाजी उम्र के लोग हैं.

कामकाजी उम्र की आबादी में इसका हिस्सा इस दशक के अंत तक लगभग चरम पर पहुंच जाएगा, जो अभी के 55.8 फीसद से 2031 में 58.8 फीसद हो जाएगा.

2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2021-31 के दौरान कामकाजी उम्र की आबादी सालाना 97 लाख की दर से और 2031-41 के दौरान सालाना 42 लाख की दर से बढ़ेगी. कार्यबल में अधिक लोगों का अर्थ है अधिक लोग कमाएंगे, और खर्च करेंगे.

लेकिन भारत की श्रम भागीदारी दर अब भी 50 फीसद से कम है, जो विकसित देशों के ठीक उलट है. मसलन, अमेरिका में श्रम भागीदारी दर 61.6 फीसद है, ब्रिटेन में यह 78.7 फीसद और यूरोपीय संघ में 56.5 फीसद है.

आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के आंकड़े बताते हैं कि हिंदुओं की कुल आबादी में से 41 फीसद और कुल आबादी में 33 फीसद मुसलमान ही कार्यबल का हिस्सा हैं. मुस्लिम महिलाओं की स्थिति और भी खराब है, जहां 15 फीसद मुस्लिम महिलाएं ही कामकाजी हैं. जबकि हिंदू महिलाओं की स्थिति मुस्लिम महिलाओं से थोड़ी बेहतर है और 23 फीसद हिंदू स्त्रियां कामकाजी हैं.

एनएसएसओ श्रमबल सर्वे 2017-2018 के आंकड़े चौंकातै हैं. इनमें से एक बात तो यह भी है कि 15 साल से अधिक उम्र की हर 4 में 3 महिला न तो कामकाजी है और न ही काम की तलाश में है.  वहीं, कामकाजी आयु 30 से 50 के बीच की आयु की हर 3 में से 2 महिलाएं कार्यबल का हिस्सा नहीं है.

हालांकि, आबादी का अनुपात 2011 के जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही लिया गया है लेकिन देश की 48.2 करोड़ कामकाजी लोगों की ताकत में कितने लोग असल में कामकाजी हैं. असल में, इन आंकड़ों में 2001 के जनगणना के आंकड़ों की तुलना में बेहद मामूली बदलाव आया है.

असल में, मुस्लिम समुदाय के कामकाजी बल में कम हिस्सेदारी की एक वजह मुस्लिम महिलाओं का कामकाजी नहीं होना है. क्योंकि मुस्लिम महिलाओं की 15 फीसद के बरअक्स, 27 फीसद हिंदू, 31 फीसद ईसाई और 33 फीसद बौद्ध महिलाएं कामकाजी हैं. 


वैसे, दिलचस्प बात यह है कि देश में 55 फीसद कार्यबल कृषि में लगा है, चाहे वह किसान हों या खेतिहर मजदूर. पर आंकड़ों के हिसाब से 41 फीसद मुस्लिम कामकाजी लोग खेती के काम में लगे हैं जो सिखो में 47 फीसद और बौद्धों में 54 फीसद है.

जहां तक मुस्लिमों के कामकाज का सवाल है वह घरेलू उद्योगों में अधिक लगा हुआ है. जिसे आमतौर पर दस्तकारी कहते हैं. ऐसे में, मुसलमानों को समग्र रूप से कामकाजी बनाने के लिए सबसे पहला जोर तालीम पर देना होगा. और वह तालीम, बिला शक, वोकेशनल होनी चाहिए. साथ ही, मुस्लिम महिलाओं के लिए रोजगार के मौके बढ़ाने होंगे.

(मंजीत ठाकुर आवाज- द वॉयस के डिप्टी एडिटर हैं)