भारतीय मुसलमानों का विरोध: करुणा, देशभक्ति और एकजुटता का असाधारण उदाहरण

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 30-04-2025
Indian Muslims protest: An extraordinary example of compassion, patriotism and solidarity
Indian Muslims protest: An extraordinary example of compassion, patriotism and solidarity

 

atir आतिर ख़ान,

प्रधान संपादक, आवाज़ द वाॅयस

पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद देशभर में भारतीय मुसलमानों द्वारा दिखाया गया जनआक्रोश एक ऐतिहासिक और विचारोत्तेजक घटना बनकर सामने आया है. यह विरोध प्रदर्शन न केवल स्वतःस्फूर्त थे, बल्कि इनमें आध्यात्मिक भावनाओं, मानवीय संवेदनाओं और गहन देशभक्ति की झलक साफ़ देखी गई.

धर्म, वर्ग और क्षेत्रीय सीमाओं से परे, इन प्रदर्शनों ने जो व्यापकता और भावनात्मक गहराई दिखाई, वह सामाजिक वैज्ञानिकों और राजनीतिक विश्लेषकों के लिए अध्ययन का विषय बन चुकी है.

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हमले से कुछ ही दिन पहले तक भारतीय मुसलमान वक्फ़ संशोधन अधिनियम का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे, लेकिन पहलगाम की हृदयविदारक घटना ने जैसे पूरे समुदाय की आत्मा को झकझोर दिया.

नतीजा यह हुआ कि प्रदर्शनों का मूल स्वरूप बदल गया—अब ये आतंकवाद के खिलाफ़ और ऐसे कृत्यों को समर्थन देने वाले पाकिस्तान के प्रति रोष में बदल गए.

इस विरोध की सबसे उल्लेखनीय बात इसका अप्रत्याशित पैमाना और व्यापकता थी. इन प्रदर्शनों में न कोई राजनीतिक संगठन आगे था, न कोई धार्मिक नेतृत्व—फिर भी देशभर में जगह-जगह मुसलमानों ने स्वतः आगे आकर आतंकवाद की मुखर निंदा की.

दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, गुड़गांव, पंजाब, कर्नाटक, खरगोन, हरदा से लेकर महाराष्ट्र के लगभग 25 गाँवों और असम के विभिन्न इलाकों तक मुस्लिम समुदाय सड़कों पर उतरा.

गुवाहाटी की बुर्हा जामे मस्जिद में लोगों ने तख्तियाँ और बैनर लेकर आतंकवाद के खिलाफ़ आवाज़ उठाई और मृतकों के लिए सामूहिक दुआ की.

यह आंदोलन न सिर्फ़ सामूहिक पीड़ा की अभिव्यक्ति था, बल्कि इसने उस पुराने मिथक को भी चुनौती दी कि भारतीय मुसलमान केवल ‘उम्मा’ यानी वैश्विक मुस्लिम समुदाय से जुड़े रहते हैं और राष्ट्रीय संकटों में तटस्थ रहते हैं.

इसके उलट, इन प्रदर्शनों में एक गहरी भारतीय आत्मा और साझा नागरिकता का भाव देखा गया.कश्मीर घाटी से जो दृश्य सामने आए, वे विशेष रूप से प्रेरक थे. वहाँ मुस्लिम धर्मगुरु, युवा और महिलाएँ तक, किसी भी खतरे की परवाह किए बिना आतंकवाद के खिलाफ खुलकर सामने आए.

इस आंदोलन की ताकत सोशल मीडिया से भी मिली। पीड़ितों के वीडियो, बचे हुए लोगों की आपबीती, और आम मुसलमानों की प्रतिक्रियाएँ सोशल मीडिया के ज़रिए देशभर में फैल गईं. इससे इस भावना को और अधिक बल मिला कि आतंकवाद मानवता के खिलाफ अपराध है, न कि किसी धर्म का प्रतिनिधि.

देशभर की मस्जिदों में शुक्रवार की नमाज़ के दौरान इमामों ने इस घटना की घोर निंदा की.लाखों नमाज़ियों के बीच, इमामों ने खुतबा (उपदेश) में आतंकवाद के खिलाफ़ संदेश दिया. यह इस बात का प्रमाण है कि इस्लाम की मूल भावना हिंसा को नहीं, बल्कि शांति, करुणा और न्याय को महत्व देती है.

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यह समझना ज़रूरी है कि हर धर्म में कुछ चरमपंथी तत्व हो सकते हैं, लेकिन वे पूरे धर्म के प्रतिनिधि नहीं होते. भारतीय मुसलमान, बाकी भारतीयों की तरह, शांति में विश्वास रखने वाले, विवेकशील और मानवीय मूल्यों को मानने वाले लोग हैं.

इन राष्ट्रव्यापी प्रदर्शनों ने एक सशक्त और ज़रूरी संदेश दिया है—भारतीय मुसलमानों को गलत न समझा जाए। वे सिर्फ़ एक धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि एक समावेशी भारतीय पहचान के भी वाहक हैं. आतंकवाद के खिलाफ़ उनका यह आत्मस्फूर्त विरोध, उनके अंदर मौजूद मानवता, देशभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी का जीवंत प्रमाण है.

उन्होंने सिर्फ़ मुसलमानों के तौर पर नहीं, बल्कि भारतीय नागरिकों के रूप में खड़े होकर शोक, संवेदना और न्याय की मांग की है—शांतिपूर्ण, गरिमामय और प्रभावशाली ढंग से.