भारत-चीन : रिश्तों की पिघलेगी बर्फ?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 18-09-2022
भारत-चीन : रिश्तों की पिघलेगी बर्फ?
भारत-चीन : रिश्तों की पिघलेगी बर्फ?

 

(यह लेख चीन की जिनपिंग सरकार का नजरिया दर्शाता है, क्योंकि इसे चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग द्वारा आईएएनएस के मंच से जारी किया गया है. )

बीजिंग. यह संयोग है या कूटनीतिक शिष्टाचार का तकाजा, जिस समय समरकंद शहर शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक की तैयारी को अंतिम रूप दे रहा था, इस संगठन के दो प्रमुख देश चीन और भारत सीमा विवाद पर सहमति के बिंदु तलाश रहे थे. पूर्वी लद्दाख के पास दोनों देशों के बीच जारी सीमा विवाद फिलहाल टलता नजर आ रहा है. दोनों देश 12 सितंबर तक अपने -अपने सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमत हो गए हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि करीब तीन साल बाद भारत और चीन का शिखर नेतृत्व एक साथ बैठने जा रहा है. दोनों नेताओं ने साथ बैठकर द्विपक्षीय मसलों पर चर्चा की. चीन के राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री इसके पहले ब्राजील में नवंबर 2019 में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में मुलाकात हुई थी.

भारत और चीन में एक सहमति रही है. संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच को छोड़ दिया जाए, तो तकरीबन हर वैश्विक मंच पर दोनों देश निजी मुद्दों को उठाने से बचते हैं. लेकिन निजी बातचीत में ऐसे मुद्दे उठ सकते हैं. और इन्हें उठना भी चाहिए. इसके जरिए कोशिश होनी चाहिए कि दोनों देशों के बीच कारोबार बढ़े और दोनों देशों के लोग नजदीक आएं. वैसे यहां यह भी ध्यान देना चाहिए कि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर पहले बैंकाक और बाद में दिल्ली में हुए कार्यक्रमों में साफ तौर पर कह चुके हैं कि अगर इक्कीसवीं सदी को एशिया की सदी होना है, तो दोनों देशों को करीब आना होगा और वैश्विक स्तर पर कुछ मतभेदों को भुलाना चाहिए.

कूटनीति की दुनिया में कोई भी बदलाव एक दिन में नहीं होता है. कूटनीति की दुनिया में बदलाव की पीठिका तैयार की जाती है. उसके लिए माहौल बनाया जाता है. पहले फिर संकेतों में बात संदेश दिए जाते हैं. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर का पहले एशिया की सदी के लिए भारत और चीन को एक साथ आने का विचार देना और फिर पूर्वी लद्दाख इलाके से चीन के सेनाओं की वापसी पर सहमति बनना, कूटनीतिक संदेश ही है. ऐसा लगता है कि अब दोनों देश मानने लगे हैं कि भारत और चीन मान चुके हैं कि आपसी रिश्तों की बर्फ को पिघलाए बिना गरीबी से जारी संघर्ष को खत्म नहीं किया जा सकता.

यह संयोग ही है कि जिस समय शंघाई सहयोग संगठन की अरसे बाद प्रत्यक्ष बैठक होने जा रही है, उसके ठीक पहले भारत पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है. चीन दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था वाला देश अरसे से है. आर्थिक स्तर पर भारत की मजबूत होती स्थिति का भी इस शिखर सम्मेलन पर असर पड़ना स्वाभाविक है. इस शिखर बैठक के बाद भारत को शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता मिल जाएगी. जाहिर है कि भारत की कम से कम इस संगठन के संदर्भ में भी बढ़ जाएगी. जाहिर है कि इस संदर्भ में भी इस बैठक में चर्चाएं होंगी और भारत की ओर से अपने उद्देश्य भी पेश किए जा सकते हैं. ये कुछ वजहें हैं, जिनकी वजह से इस शिखर बैठक पर नजदीकी नजर रखने की जरूरत है.

दूसरा नजरिया

पत्रकार राकेश चौरासिया के दृष्टिकोंण से, चीन सरकार के प्रचार तंत्र द्वारा लिखे गए उपरोक्त लेख से तो चीन सरकार दर्शाना चाहती है कि भारत और चीन के रिश्ते गुण-शक्कर हो गए हैं. मगर यह हकीकत नहीं है. कटु सत्य यह है कि 1962 में ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के दौर में चीन ने भारत की पीठ में छुरा घोंपा. भारत को अपने अचानक हमले से हतप्रभ कर दिया. चीन के बारे में मशहूर है कि चीन का ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे चीन ने ठगा नहीं. जिस रूस के साथ चीन आजकल गलबहियां कर रहा है. उसी शक्तिशाली रूस, तब सोवियत संघ, के व्लादीवोस्तक पर चीन ने कब्जे की नियत से हमला कर दिया था. और बदले में रूस ने तब चीन पर परमाणु हमला करने का इरादा कर लिया था. आज भी चीन का एक वर्ग व्लादीवोस्तक हड़पने की बात करता है. चीन की दमनकारी कर्ज नीति के कारण श्रीलंका तबाह हो चुका है और उसके ‘कथित सदाबहार दोस्त’ पाकिस्तान की आर्थिक तबाही का नंबर लग चुका है. पाक पीएम शहबाज शरीफ ने मौजूदा हालत के बारे में वकीलों के एक कार्यक्रम में कहा है कि पाकिस्तान 72 सालों से कटोरा हाथ में लेकर घूम रहा है. किसी मित्र देश को फोन करो, तो वो ये समझते हैं कि लो भीख मांगने आ गए. नेपाल के कई इलाकों की जमीनें भी चीन हड़प चुका है. चीन की ताईवान के साथ तनातनी जग-जाहिर है. जापान, फिलीपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया आदि चीन के कई पड़ोसी मुल्क चीन से बुरी तरह नाराज चल रहे हैं, क्योंकि चीन इन देशों के द्वीपों को हड़पना चाहता है. भारत जब भी संयुक्त राष्ट्र में ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी’ घोषित करवाने के लिए प्रस्ताव लाता है, तो चीन आतंकवादियों का समर्थन करते हुए प्रस्ताव को वीटो करके रद्द करवा देता है. पूरी दुनिया इस समय चीन से खफा चल रही है, क्योंकि चीन के चेहरे से कोरोना के संदेहों की कालिख अभी हटी नहीं है. हाल में गलवान में चीन ने एक कायराना हमला करके 20 भारतीय सैनिकों को मारा, जिसके पलटवार में भारत को चीन के 60 सैनिकों को मौत के घाट उतारना पड़ा. विडंबना यह है कि चीन ने इन 60 सैनिकों की मौत को अभी तक स्वीकार नहीं किया है. ऐसा करने से चीन की सैनिक जमात में बगावत की आशंका है. भारत की मोदी सरकार ने एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले जिस तरह आंखे तरेरीं, उसी का नतीजा है कि चीन को पूर्वी लद्दाख के एक बिंदु से आनन-फानन में अपने सैनिक पीछे हटाने पड़े. लव्वोलुआव यह है कि भारत और भारतीय, विदेशी आक्रांताओं से इतने जले हैं कि छाछ भी फूंक-फूंक कर पीते हैं. चीन की चिकनी-चुपड़ी बातें भारत के गले तब तक नहीं उतरतीं, जब तक ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी’ घोषित करवाने के भारतीय प्रस्तावों को वीटो करने की आतंकपरस्ती से चीन बाज नहीं आता है. चीन गुजरे दौर में भारत के समर्थन के बाद ही संयुक्त राष्ट्र का ‘स्थायी सदस्य’ बना था, अब उसे भी भारत का समर्थन करना चाहिए, अन्यथा भारत के लिए चीन का कोई भी बयान ‘घड़ियाली आंसू’ ही माना जाएगा.