साकिब सलीम
"पाखंड का दूसरा नाम है पश्चिमी देश !"
हाल ही में पहलगाम, कश्मीर (22 अप्रैल 2025) में हिंदू पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 7 मई को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर हमला किया. यह कार्रवाई अमेरिका, रूस या इज़राइल की तरह आतंकवाद के खिलाफ की गई प्रतिक्रिया की तरह थी, हालांकि छोटे पैमाने पर.
दुनिया अब तक अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान और इराक पर किए गए हमलों को नहीं भूली है, जिन्हें आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के रूप में अंजाम दिया गया था. लेकिन जब भारत अपने नागरिकों पर भविष्य में होने वाले आतंकी हमलों को रोकने के लिए कदम उठा रहा था, तो पश्चिमी देश आतंकवादियों का समर्थन करते नज़र आए.
9 मई को, जब "ऑपरेशन सिंदूर" (आतंकवाद के खिलाफ भारतीय सैन्य कार्रवाई) जारी था और पाकिस्तान सेना भारतीय नागरिकों पर बमबारी कर रही थी, उसी समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान को **2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की आर्थिक सहायता देने का फैसला किया.
दिलचस्प बात यह है कि IMF द्वारा दी गई इस सहायता में 1.4 बिलियन डॉलर अतिरिक्त थे जो Resilience and Sustainability Facility (RSF) के तहत दिए गए थे, जिसका उद्देश्य आपदा तैयारी में सुधार करना बताया गया.
सीधे शब्दों में कहें तो IMF ने पाकिस्तान को एक संभावित सैन्य हमले से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए सहायता दी — वो भी तब जब भारत के साथ उसका संघर्ष जारी था.
स्वाभाविक रूप से भारत ने IMF के इस कदम का विरोध किया. लेकिन पश्चिमी देशों ने भारत की आवाज़ को अनसुना कर दिया और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमज़ोर किया. इस तथ्य के बावजूद कि भारतीय सेना द्वारा निशाना बनाए गए कई आतंकवादी अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों द्वारा वांछित हैं.
तो क्या IMF और पश्चिमी देशों का यह कदम नया था? क्या यह सिर्फ एक संयोग था कि जब भारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में जुटा था, तब पाकिस्तान को मदद दी गई ? IMF के इतिहास पर एक सतही नजर डालें तो साफ़ हो जाता है कि पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक सहायता का सीधा संबंध भारत पर हमलों से है.
1958 से अब तक, IMF ने पाकिस्तान को 24 बार से अधिक ऋण दिया है.इन ऋणों और भारत पर हमलों के बीच का संबंध काफी स्पष्ट है.
16 मार्च 1965 को IMF ने पाकिस्तान को उस समय तक की सबसे बड़ी रकम उधार दी, जिसकी अवधि 15 मार्च 1966 तक थी.
उसी समय पाकिस्तान ने गुजरात में सीमा चौकियों पर दावा करना शुरू कर दिया था. फरवरी में बातचीत विफल रही और 24 अप्रैल को पाकिस्तान ने अमेरिकी पैटन टैंकों के साथ ऑपरेशन डेजर्ट हॉक चलाया और कच्छ के रण में घुसपैठ की.
1965 के बाद पाकिस्तान ने सीधे सैन्य हस्तक्षेप की जगह आतंकवाद को हथियार बनाना शुरू किया. 1968 में IMF ने फिर से ऋण दिया और यह वही दौर था जब मक़बूल भट्ट जैसे आतंकवादियों को बढ़ावा मिला और 1971 में गंगा अपहरण जैसी घटनाएं हुईं.
1971 में भारत ने पाकिस्तान को निर्णायक सैन्य पराजय दी और बांग्लादेश का निर्माण हुआ. लेकिन 18 मई 1972 को IMF ने पाकिस्तान को ऋण देकर उसे फिर से उबरने का मौका दिया.
1988 से 1991 के बीच IMF ने पाकिस्तान को दो ऋण दिए. इसी दौरान कश्मीर में आतंकवाद चरम पर पहुंचा, जिसमें हिंदुओं की हत्या, अपहरण और सरकारी अधिकारियों की हत्या शामिल थी.
1997 में पाकिस्तान को फिर IMF से ऋण मिला और 1999 में कारगिल युद्ध हुआ.
2001 में संसद पर आतंकी हमला, और उसी साल 6 दिसंबर को पाकिस्तान को IMF का ऋण.
26 नवंबर 2008, मुंबई पर पाकिस्तान से आए आतंकियों ने हमला किया और 24 नवंबर को IMF ने पाकिस्तान को 7.2 अरब डॉलर का ऋण दिया.
IMF द्वारा दी गई आर्थिक मदद के बावजूद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और जन-जीवन की स्थिति में सुधार क्यों नहीं हुआ ? क्यों हर आर्थिक मदद के बाद वहां से संचालित आतंकवादी संगठन और मजबूत हो जाते हैं? क्या IMF को इन तथ्यों की जानकारी नहीं है? या यह सिर्फ एक "संजोग" नहीं, बल्कि एक सोची-समझी "रणनीति" है?
एक आतंक को बढ़ावा देने वाले देश को दी गई कोई भी आर्थिक सहायता दुनिया की शांति के लिए खतरा बन सकती है.