क्या वाक़ई नेहरू चाहते थे बाबरी का पुनर्निर्माण?

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 06-12-2025
Did Nehru really want the Babri Masjid to be rebuilt?
Did Nehru really want the Babri Masjid to be rebuilt?

 

sसाकिब सलीम 

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान के बाद एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू बाबरी मस्जिद (अयोध्या में) को सरकारी पैसे से दोबारा बनवाना चाहते थे, लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल ने इसका कड़ा विरोध किया और इस काम के लिए सरकारी पैसे का इस्तेमाल नहीं होने दिया. इस दावे के तुरंत बाद विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस, इसे झूठ बताकर हमलावर हो गए.

कांग्रेस सांसद मणिक्कम टैगोर जैसे नेताओं ने तर्क दिया कि नेहरू हमेशा इस सिद्धांत पर अडिग रहे थे कि सरकारी पैसा किसी भी धार्मिक उद्देश्य,चाहे वह मंदिर हो, चर्च हो या मस्जिद—के लिए खर्च नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उनका ध्यान आईआईटी, आईआईएम, विश्वविद्यालयों और बाँधों जैसी धर्मनिरपेक्ष परियोजनाओं पर था. इस राजनीतिक शोरगुल के बीच, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इतिहास क्या कहता है और क्या राजनाथ सिंह का दावा पूरी तरह से झूठा है.

एक इतिहासकार के रूप में, तथ्यों को देखने पर यह कहा जा सकता है कि उनका दावा पूरी तरह ग़लत नहीं है. यह पूरा घटनाक्रम सरदार वल्लभभाई पटेल की बेटी, निजी सचिव और बाद में सांसद बनीं मणिबेन पटेल की डायरी में दर्ज है, जिसे पी. एन. चोपड़ा ने प्रकाशित किया है. चोपड़ा डायरी के परिचय में लिखते हैं कि मणिबेन ने 8 जून 1936 से लेकर सरदार पटेल के निधन (15 दिसंबर 1950) तक पूरी सावधानी से डायरी का रखरखाव किया था, जिसमें सरदार के भाषणों, पत्रों और आगंतुकों से हुई बातचीत को तारीख़ के अनुसार दर्ज किया गया था.

चोपड़ा ने अपनी रिकॉर्डिंग में यह भी लिखा है कि नेहरू ने बाबरी मस्जिद का सवाल उठाया था, लेकिन सरदार पटेल ने स्पष्ट कर दिया था कि सरकार मस्जिद बनाने के लिए कोई पैसा खर्च नहीं कर सकती. उन्होंने नेहरू को बताया था कि सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण का मामला इससे बिल्कुल अलग है, क्योंकि उसके लिए एक ट्रस्ट बनाया गया था, जिसके माध्यम से लगभग 30 लाख रुपये चंदे के रूप में जुटाए गए थे.

पटेल ने स्पष्ट किया कि सोमनाथ ट्रस्ट के चेयरमैन जामनगर के जामसाहब और सदस्य मुंशी थे, और उसमें कोई सरकारी पैसा इस्तेमाल नहीं हो रहा था, जिससे नेहरू चुप हो गए थे. राजनाथ सिंह की टिप्पणी का स्रोत यही ऐतिहासिक रिकॉर्ड प्रतीत होता है.

 

मणिबेन पटेल की डायरी में 20 सितंबर 1950 की प्रविष्टि इस पूरे घटनाक्रम को और स्पष्ट करती है. उन्होंने लिखा है कि जब बाबरी मस्जिद का ज़िक्र आया, तो पंडितजी (नेहरू) ने कहा कि उन्होंने विधानसभा को समझा दिया है, और इस पर लंबा बयान भी छपा था. बापू (सरदार पटेल) ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार मस्जिद बनाने के लिए पैसा नहीं दे सकती. पटेल ने नेहरू को सोमनाथ का उदाहरण दिया और बताया कि जूनागढ़ को भारत में विलय से पहले ही सोमनाथ के लिए ज़मीन प्राप्त की गई थी और एक ट्रस्ट बनाकर 30 लाख रुपये का चंदा जमा किया गया था.

मणिबेन की डायरी के अनुसार, नेहरू ने मुंशी को एक चिट लिखकर यह सवाल भी उठाया था कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य सोमनाथ पर पैसा कैसे खर्च कर सकता है. इस पर पटेल ने मुंशी के माध्यम से नेहरू को जवाब भेजा कि यह एक ट्रस्ट है जिसमें सरकारी पैसा इस्तेमाल नहीं हो रहा है, जिसके बाद प्रधानमंत्री (नेहरू) चुप हो गए थे.

डायरी की प्रविष्टि से यह पता चलता है कि असल में जवाहरलाल नेहरू ने यह सवाल उठाया था कि सरकार सोमनाथ जैसे मंदिर का निर्माण कैसे कर सकती है, लेकिन सरदार पटेल ने उन्हें यह बताकर रोका कि वह पहल सरकार बनने से पहले की गई थी और उसमें केवल सार्वजनिक चंदे का उपयोग हुआ था.

पटेल ने नेहरू को साफ कहा कि सरकार धार्मिक निर्माण पर कोई पैसा खर्च नहीं कर सकती, इसलिए बाबरी मस्जिद के लिए भी सरकारी पैसा आवंटित नहीं किया जा सकता. मणिबेन पटेल द्वारा घटना को ग़लत रिपोर्ट करने का कोई कारण नहीं दिखता है, और पी. एन. चोपड़ा की रिकॉर्डिंग भी इससे मेल खाती है, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि राजनाथ सिंह ने ऐतिहासिक स्रोतों के आधार पर ही अपनी टिप्पणी की है. इस प्रकार, यह राजनीतिक बहस कानून के ढांचे और ज़मीनी हकीकत दोनों को अलग-अलग समझने की ज़रूरत को उजागर करती है.