ढाई चाल : जब सितारे राजनीति में आते हैं

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
 क्रिकेटर रवींद्र जडेजा
क्रिकेटर रवींद्र जडेजा

 

हरजिंदर

सितारे एक बार फिर चर्चा में हैं.कुछ दिन पहले जब भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात चुनावों के लिए उम्मीदवारों की सूची घोषित की तो उसमें रिवाबा जडेजा का भी नाम था.उन्हें उत्तर जामनगर सीट से टिकट दिया गया था.वैसे यह सीट अभी भी भाजपा के ही पास थी लेकिन वर्तमान विधायक की जगह रिवाबा को प्राथमिकता दी गई.

रिवाबा की प्रसिद्धि सिर्फ इतनी है कि वे मशहूर क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी हैं.बेशक उनके परिवार के राजनीतिक संबंधों के बारे में बहुत कुछ खोज-खोज कर बताया गया,लेकिन क्रिकेट के सितारे से संबंध उनकी सबसे बड़ी अहर्ता बताई गई.

यह बात तकरीबन दस दिन पुरानी हो गई है और अब इसे लेकर होने वाली चर्चा भी अब बदल गई है.यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने गुजरात में ऐसा क्यों किया? गुजरात की राजनीति के लिए तो ये दोनों खुद ही सुपर स्टार हैं तो फिर उन्हें एक स्टार की जरूरत क्यों पड़ गई ?

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ऐसा नहीं है कि अगर कोई नेता सचमुच में सुपर स्टार है तो फिर वह बाकी तरह के सितारों से परहेज करने लगता है.भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ही इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। लोकप्रियता के मामले मे नरेंद्र मोदी की तुलना अक्सर इंदिरा गांधी से की जाती है.इंदिरा गांधी ने नरगिस को राज्यसभा का सदस्य बनाया था.

उनकी मृत्यु के बाद उनके पति और अभिनेता सुनील दत्त को टिकट दिया.वे जीते भी और बड़े राजनीतिज्ञ भी बने.यहां हम दक्षिण भारत की बात नहीं कर रहे हैं वहां राजनीति और फिल्मी दुनिया का बहुत पुराना नाता है.

राजीव गांधी के राजनीति में आगमन के बाद तो राजनीति में यह सिलसिला काफी तेजी से बढ़ा.भाजपा ने ही दूरदर्शन के रामायण धारावाहिक में सीता की भूमिका निभाने वाले दीपिका चिखालिया और रावण की भूमिका निभाने वाले अरविंद त्रिवेदी को गुजरात से लोकसभा का टिकट दिया और वे जीते भी.

हालांकि ये दोनों ही राजनीति में कोई बड़ी भूमिका नहीं निभा पाए.लेकिन बड़ी भूमिका निभाई शत्रुघन सिन्हा और हेमा मालिनी ने.राजनीति में कदम रखने वाले ऐसे सितारे बहुत सारे हैं, यहां उन सब का नाम लेने का कोई खास अर्थ नहीं है.

फिलहाल हम यहां बात करेंगे नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दौर की। कम से कम इन दोनों के हाथ पार्टी की कमान आने के बाद ऐसे उम्मीदवार आमतौर पर सामने नहीं आए.स्मृति ईरानी समेत ऐसे जितने भी नाम आज सुनाई देते हैं वे सब साल 2014में यह दौर शुरू होने से पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके थे.


मोदी और शाह ने अभी तक सितारों के बजाए उन लोगों पर भरोसा किया जो चुनाव जीत सकें।  तो फिर इस बार क्या हुआ ? यह मानने का कोई कारण नहीं है कि भाजपा को गुजरात में खतरा दिखने लगा है.हालांकि उनके आलोचक इसकी ऐसी ही व्याख्या कर रहे हैं.

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इस समय जो भाजपा है वह एक एक सीट और एक एक उम्मीदवार का पूरा गणित आंकने के बाद ही किसी को टिकट देती है.उत्तरी जामनगर की सीट का ऐसा क्या गणित था कि टिकट रिवाबा जडेजा को देनी पड़ी? रिवाबा की हार-जीत से अलग यह पहेली लंबे समय तक राजनीति की समीक्षा करने वालों को परेशान करती रहेगी.

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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