ढाई - चाल : राजनीति बदल सकता है बिहार का प्रयोग

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 29-01-2023
ढाई - चाल : राजनीति बदल सकता है बिहार का प्रयोग
ढाई - चाल : राजनीति बदल सकता है बिहार का प्रयोग

 

harjinderहरजिंदर

इस गिनती से पूरा गणित बदल जाएगा. बिहार में चल रही जाति जनगणना भारतीय राजनीति खासकर भारत की मुस्लिम राजनीति का रुख बदल सकती है. इस जाति जनगणना की खासियत यही है कि इसमें सिर्फ हिंदू जातियों को ही नहीं गिना जा रहा है ,बल्कि मुस्लिम और ईसाई जातियों को भी गिना जा रहा है.

वैसे तो 2011 में पूरे देश में ही एक जाति जनगणना हुई थी, लेकिन यह देश में हर दशक में होने वाली जनगणना से अलग थी. इसके साथ एक शर्त यह भी जोड़ दी गई थी कि इसके आंकड़ें सार्वजनिक नहीं किए जाएंगे.
 
बिहार मे जो जाति जनगणना चल रही है उसके साथ ऐसा नहीं है. उसके आंकड़ें सार्वजनिक किए जाएंगे. पिछड़ों और दलितों के सशक्तीकरण की राजनीति करने वालों ने इससे काफी उम्मीद बांधी है. साथ ही पसमांदा समाज के नेता भी यह मान रहे हैं कि इसके आंकड़े आने के बाद मुस्लिम राजनीति भी पहले जैसी नहीं रहेगी.
 
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देश में जातियों की आखिरी गणना 1931 में हुई थी. आजादी के बाद से अभी तक देश में जितनी भी नीतियां बनती हैं और विभिन्न जातियों के सशक्तीकरण के लिए जो सरकारी धन का वितरण होता है वह उन्हीं 1931 के आंकड़ों के आधार पर होता है.
 
इसके बाद 1941 में भी ऐसी जनगणना होनी थी. जनगणना से पहले हिंदू महासभा ने अपील जारी की थी कि लोग जाति के कालम में सिर्फ हिंदू ही दर्ज कराएं अपनी जाति नहीं. इसी तरह की अपील मुस्लिम लीग ने भी जारी की थी. उसका कहना था कि मुसलमानों को जाति नहीं दर्ज करानी चाहिए, क्योंकि इस्लाम में जात-पात या ऊंच-नीच नहीं होती.
 
इसके पहले कि यह जनगणना शुरू होती दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया और जनगणना के काम को टाल दिया गया. फिर अगली जनगणना 1951 में ही हुई. भारत तब आजाद हो चुका था और यह तय किया गया कि जनगणना के फार्म में जाति का कालम नहीं होगा.
 
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यानी एक तरह से देखें तो देश कि किसी हिस्से में 92 साल बाद एक ऐसी जाति जनगणना हो रही है जिसके आंकड़ें सार्वजनिक किए जाएंगे.बिहार के इस प्रयोग से कुछ वैसे ही बदलाव की उम्मीद बांधी जा रही है जैसा बदलाव 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें स्वीकार होने के बाद भारतीय राजनीति में आया था.

इसने उत्तर भारत की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया. मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, रामबिलास पासवान और नीतीश कुमार जैसे नेताओं का आगे आना इसी का नतीजा था.  माना जा रहा है कि इस जनगणना के पूरे होने के बाद मुस्लिम राजनीति में भी एक नया नेतृत्व आगे आ सकता है.
 
आल इंडिया पसमांदा महाज के नेता और पूर्व सांसद अली अनवर इससे एक दूसरी उम्मीद बांध रहे हैं. उनका कहना है कि ऐसी कोशिशों से समाज में जो सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण हो रहा है उसमें न सिर्फ कमी आएगी.उसे खत्म भी किया जा सकेगा.
 
राजनीति का तो पता नहीं, लेकिन ऐसे आंकड़ें शासन प्रशासन पर नई तरह के दबाव बना सकते हैं. इससे जातियों की ताकत के अनुसार ही विभिन्न योजनाओं के लिए धन के आवंटन के दबाव बनेंगे.
 
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लेकिन अभी यह साफ नहीं है कि जिस तरह दलितों, जनजातियों और पिछड़ों को नौकरियों और शिक्षा संस्थाओं में आरक्षण मिलता है वैसा क्या इस पूरी कवायद से पसमांदा समुदाय को भी मिल पाएगा. लेकिन एक बात तय है कि बिहार के बाद अब अन्य राज्यों से भी इसी तरह की जाति जनगणना की मांग उठेगी. उत्तर प्रदेश में तो यह मांग उठने भी लगी है.
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )