मंजीत ठाकुर
आज से कोई बीस साल पहले, मैं डीडी न्यूज की तरफ से पहली बार भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव को कवर करने गोवा गया था. भारत की प्रतिष्ठा को सिनेमा के क्षेत्र में स्थापित करने के लिए गोवा में फिल्मोत्सव को स्थायी करने का फैसला उस वक्त तक अधिक पुराना नहीं हुआ था (उस वक्त तक, भारत का अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव देश के विभिन्न शहरों में आयोजित होता था) और इसे कान्स फिल्मोत्सव की तर्ज पर तैयार करने की योजना थी.
ऐसे में, यह समारोह कवर करना डीडी के लिहाज से बेहद चुनौतीपूर्ण था. और तब मेरी पहली मुलाकात हुई थी सिनेमा कवर करने वाले कुछ दिग्गज पत्रकारों से. उन्हीं में से एक मिलनसार, हंसमुख, जिंदादिल पत्रकार थे, अजित राय.
कान्स में रिपोर्टिंग के दौरान अजित राय
अजित राय को मौजूदा वक्त में सांस्कृतिक पत्रकारिता की पंक्ति में सबसे आगे खड़ा मुखर पत्रकार कहना गलत नहीं होगा. सिनेमा हो या रंगमंच उनकी शख्सियत की धाक जमी रहती थी.
नए और युवा पत्रकारों को, जिनके लिए सिनेमा का अर्थ महज बॉलीवुड की रंग-रंगीली खबरे होती थीं, अजित राय (और उन जैसे कुछ अन्य पुराने पत्रकारों ने) ने सिनेमा का गहरा अर्थ समझाया.
विश्व सिनेमा में बेशक, मेरा परिचय एफटीआइआइ में गहरा हो चुका था लेकिन अजित राय ने ईरानी, तुर्की, रूसी, क्यूबाई, अर्जेंटीना आदि के सिनेमा पर चर्चाएं करके हमारा क्षितिज विस्तृत किया.
गोवा में नारियल कुंजो में समुद्री लहरों की आवाजों के बीच, कला अकादेमी की कैंटीन के पास विस्तृत लॉन में ऐसी कई चर्चाएं हुआ करती थीं. जहां अजित राय, वहीं मंडली जम जाती.
अभी इसी महीने की शुरुआत में उनकी किताब ‘बॉलीवुड ऐंड हिंदुजा’ज’ का विमोचन अक्षय कुमार ने लंदन में किया था. लेकिन, यह उनकी यह यात्रा अचानक रुक-सी गई लगती है, क्योंकि दिल्ली आते तो मुझसे उन्होंने अपनी कतार में लिखी जा रही कई किताबों का जिक्र किया था.
अजित राय दिल्ली आते तो फोन पर पूछते, मिलें? और खुद ही मेरी व्यस्तताओं को समझकर मेरे दफ्तर के पास चाय की टपरी पर आते. मिलकर लगता ही नहीं कि यह व्यक्ति सऊदी अरब के युवराज के बुलावे पर चार्टड विमान से वहां के रेड सी फिल्म फेस्टिवल में ज्यूरी बनकर गया हो, या रूस के फिल्मोत्सव में यह प्रबंधन में मदद कर रहा हो, या मिस्र की राजधानी काहिरा में आयोजित अल गूना फिल्म महोत्सव में उनकी उपस्थिति हो.
लेकिन उनका पसंदीदा स्थान तो कान्स ही था. हमारी साइट https://www.hindi.awazthevoice.in के लिए वह नियमित तौर पर कान्स डायरी लिखा करते थे.लेकिन तमाम अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सवों के साथ उनकी असली अभिरुचि भारत के देहातों में फिल्म जागरूकता और सजगता बढ़ाने वाली थी.
आजमगढ़ फिल्म महोत्सव, रायपुर फिल्म महोत्सव और हरियाणा अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों की शुरुआत में उनकी महत्वपूर्ण और केंद्रीय भूमिका थी.जिस साल, 2012 में बॉलीवुड भारतीय फिल्म उद्योग के शताब्दी वर्ष का जश्न मना रहा था, तब अजित राय ने अक्तूबर के महीनों में किसानों पर आधारित फिल्म महोत्सव का आयोजन किया था.
अजित राय महज मुंबइया फिल्मोद्योग से सिर्फ दुखी रहने वाले गंभीर समीक्षक या बड़े सितारों के साथ सेल्फी लेने वाले फिल्मी पत्रकार नहीं थे. कई मुलाकातों में वह आह भरते, कि दुर्भाग्य से अब हमारे पास अच्छे फ़िल्म समीक्षक नहीं हैं.
उनका कहना था हिंदी में अच्छे सिनेमा का आंदोलन खत्म हो चुका है और हिंदी समाज और अकादमिक जगत ने सिनेमा को एक गंभीर माध्यम मानना बंद कर दिया है.
अजित राय हिंदी साहित्य और रंगमंच की प्रगतिशीलता और देश-काल से रचना के रिश्ते से होते हुए सिनेमा तक पहुँचे, लेकिन हिन्दी सिनेमा की भावुक अराजकता और विश्व सिनेमा की आजादख्याली और आधुनिकता को उन्होंने खुले दिल से अपनाया.
हिन्दी की सिने पत्रकारिता में वह उन कुछेक लोगों में से एक थे जो सिनेमा पर लिखते हुए राजनैतिक एजेंडा नहीं सेट करते थे. उन्होंने रूढ़ियों और वर्जनाओं में बंधे हिंदीभाषी समाज को विश्व सिनेमा का समांतर व्याकरण और उसकी स्वतंत्र निगाह से परिचित कराया.
असल में राय सिनेमा के समाज पर प्रभाव की तुलना पश्चिमी देशों से करते थे और उनका तर्क था कि इटली, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में सिनेमा पर गंभीर चर्चा होती है, जबकि हिंदी सिनेमा के बारे में कुछ नहीं किया जा रहा है.
वह कई बार कहते, बॉलीवुड वास्तव में भारतीय सिनेमा का प्रतिनिधि नहीं है. अच्छे फ़िल्म समारोहों और आंदोलनों के अभाव में हम अच्छी फ़िल्मों की उम्मीद नहीं कर सकते.
अजित राय ने क्या हासिल किया यह कहना आसान नहीं होगा. चाहे हंस जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका में सांस्कृतिक रिपोर्टिंग करना, रेतघड़ी जैसा स्तंभ लिखना, भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की मीडिया समिति के सदस्य से लेकर भारत के एक प्रमुख फिल्म समीक्षक होने की रुतबा हासिल करना, सांस्कृतिक पत्रकार, जिन्हें साहित्य, रंगमंच, सिनेमा और बौद्धिक विमर्श पर लगभग सभी प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्रों, प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लिखने छपने का व्यापक और व्यापक अनुभव हो... अजित राय सिर्फ यही नहीं थे.
उनके लगभग 3,000 प्रकाशित लेख, रिपोर्ट, समीक्षाएं, साक्षात्कार और आवरण कथाएँ सांस्कृतिक पत्रकारिता में उन्हें अग्रणी पत्रकार के रूप में स्थापित करने के लिए शायद काफी हैं.
वे जनसत्ता और द इंडियन एक्सप्रेस से भी जुड़े रहे और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘रंग प्रसंग’ के अतिथि संपादक भी रहे.दूरदर्शन में जब त्रिपुरारि शरण महानिदेशक बने तो उन्होंने एक पत्रिका दृश्यांतर की शुरुआत की थी और इसके संपादक तथा सर्वेसर्वा अजित राय ही थे.
हिंदुस्तानी सिनेमा, खासकर हिंदी सिनेमा को विश्व भर में लोकप्रिय बनाने के लिए पिछले सात दशकों से हिंदुजा बंधुओं के योगदान पर उन्होंने एक शानदार किताब लिखी थीः बॉलीवुड की बुनियाद.
एक फिल्म अवार्ड शो में अजित राय
अब उनकी किताबों में उनके अनुभव, उनकी यात्राओं का हासिल इकट्ठा होना शुरू ही हुआ था. बिहार के गयाजी से शुरुआत करके कांस समेत दुनियाभर के विभिन्न हिस्सों तक की उनकी यात्रा का हासिल अभी आना बाकी था कि अजित राय ने अचानक अलविदा कह दिया. ज्ञान और अनुभव का ऐसे अचानक जाना शून्य पैदा करता है.
(लेखक आवाज द वाॅयस के सोशल मीडिया संपादक हैं)