फ्रांस में चल रहा एक विमर्श और हम

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 17-09-2023
A discussion going on in France and we
A discussion going on in France and we

 

harjinderहरजिंदर

कर्नाटक में यह विवाद फिलहाल दब गया है, लेकिन बाकी राज्यों से मुस्लिम लड़कियों के हिजाब या स्कार्फ पहनने को लेकर चलने वाले विवाद की खबरें रह-रह कर आती ही रहती हैं.  पिछले ही दिनों मध्यप्रदेश के दमोह से ऐसी ही एक खबर आई थी जहां स्कार्फ स्कूल की ड्रेस का ही हिस्सा था. दबाव पड़ा तो स्कूल को ड्रेस से स्कार्फ को हटाना पड़ा.

कुछ समय बाद ही कईं राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं . आशंका  है कि ऐसे मुद्दे फिर उछल सकते हैं. भारत में जिस समय हम इस विवाद में उलझे हुए हैं ठीक इसी समय फ्रांस में जो बहस चल रही है उस पर ध्यान देना भी जरूरी है.
 
फ्रांस ने स्कूलों में हिजाब और अबाया पहनने पर पूरी तरह रोक लगा दी है. वैसे यह मसला वहां कईं साल से चल रहा है, लेकिन अब यह फैसला हो गया है कि अगले शिक्षा सत्र के बच्चों को स्कूलों में किसी भी तरह के धार्मिक चिन्ह पहनने की इजाजत नहीं होगी.
 
यह पाबंदी सिर्फ हिजाब और अबाया पर ही नहीं है. यहूदी बच्चे अपने धार्मिक चिन्ह नहीं पहन सकेंगे, सिख छात्रों के पगड़ी पहनने पर रोक रहेगी. जो इसाई बच्चे हैं उन्हें भी कोई धार्मिक चिन्ह पहनने पर बख्शा नहीं जाएगा.
 
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सिखों की संख्या वहां बहुत कम है, इसलिए इस पर ज्यादा चर्चा नहीं हो रही, लेकिन मुस्लिम आबादी वहां दस फीसदी है इसलिए इस पर काफी हंगामा हो रहा है.फ्रांस में लाईसिटे की नीति अपनाए जाने पर इन दिनों काफी जोर दिया जा रहा है.
 
लाईसिटे  फ्रेंच भाषा का शब्द है. जिसका अर्थ लगभग धर्मनिरपेक्षता जैसा ही होता है. यह माना जाता है कि कईं मायनों में फ्रांस की धर्मनिरपेक्षता बाकी दुनिया से अलग तरह से सोचती है.
 
आमतौर पर पूरी दुनिया में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ होता है कि सरकार किसी धर्म की रीति-नीति के हिसाब से नहीं चलेगी, लेकिन फ्रांस में लाइसिटे की नीति कहती है कि धर्म सार्वजनिक स्थानों पर नहीं दिखाई देगा.
 
यानी आपका धर्म आपका निजी मसला है. उसे अपने घर व इबाबत की जगह तक ही सीमित रखिये. इसे सार्वजनिक स्थानों पर अपने साथ न ले जाइए. हालांकि फिलहाल कानून शिक्षा संस्थानों के लिए ही बने हैं.
 
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विरोध के बावजूद इस नीति को वहां काफी समर्थन भी मिल रहा है. तकरीबन सभी प्रमुख राजनीतिक दल इसके समर्थन में खड़े हैं. दक्षिणपंथी और वे संगठन जो इस्लाम फोबिया या इस्लाम का खौफ खड़ा करने के लिए जाने जाते हैं वे तो पूरे हो-हल्ले के साथ इसके पक्ष में हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां ने कहा है कि यह ऐसा मसला है जिस पर कोई समझौता नहीं होगा.
 
लेकिन कईं समाजशास्त्री इसके दूसरे पक्ष की ओर ध्यान दिला रहे हैं. उनका तर्क है कि बहुत से मुस्लिम परिवार ऐसे हैं जो अपने परिवार की बेटियों को स्कार्फ पहन कर स्कूल भेजने में सहज महसूस करते हैं. पाबंदी अगर सख्त हुई तो कुछ परिवार अपनी बेटियों को स्कूल भेजने से ही मना कर सकते हैं. इसका नतीजा शैक्षणिक असमानता बढ़ने में होगा.
 
एक सोच यह भी है कि यह फैसला आखिर में प्लूयरलिज़्म यानी अनेकतावाद के खिलाफ जाता है. कोशिश एक ऐसा समाज बनाने की होनी चाहिए जो अलग तरह के दिखने वाले लोगों को न सिर्फ बर्दाश्त करें, बल्कि सहजता से स्वीकार भी कर ले. लेकिन वहां लाइसिटे की नीति के तहत जो हो रहा है वह समाज में नफरत को बढ़ा भी सकता है.
 
हजारों किलोमीटर दूर यूरोप में चलने वाली इस बहस से चाहें तो हम भी काफी कुछ सीख सकते हैं, बशर्ते कोई सीखना चाहे.  
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )