मुफ्ती शमाइल नदवी V/S जावेद अख्तर : जब दिल्ली में टकराएंगे 'खुदा का वजूद' और 'नास्तिकता' के तर्क

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 18-12-2025
Mufti Shamail Nadvi vs. Javed Akhtar: When arguments about 'the existence of God' and 'atheism' will clash in Delhi.
Mufti Shamail Nadvi vs. Javed Akhtar: When arguments about 'the existence of God' and 'atheism' will clash in Delhi.

 

मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली

भारत की राजधानी दिल्ली आगामी 20 दिसंबर को एक ऐसी ऐतिहासिक और बौद्धिक बहस की गवाह बनने जा रही है, जिसकी गूंज न केवल देश के शैक्षणिक और धार्मिक हलकों में, बल्कि पूरी दुनिया के डिजिटल पटल पर सुनाई देगी। यह बहस किसी राजनीतिक मुद्दे या चुनावी समीकरण पर नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व के सबसे बुनियादी सवाल पर है,'क्या खुदा का वजूद है?'

इस वैचारिक महासंग्राम के केंद्र में दो दिग्गज शख्सियतें हैं। एक तरफ हैं आधुनिक इस्लामिक स्कॉलर और कोलकाता की प्रसिद्ध कोबी बागान मस्जिद के खतीब मुफ्ती शमाइल नदवी, और दूसरी तरफ हैं विश्व विख्यात शायर, पटकथा लेखक और मुखर नास्तिक विचारक जावेद अख्तर। इस हाई-प्रोफाइल डिबेट का संचालन देश के जाने-माने पत्रकार सौरभ द्विवेदी करेंगे, जो इस चर्चा को तार्किक और निष्पक्ष दिशा देने की जिम्मेदारी संभालेंगे।

कौन हैं मुफ्ती शमाइल नदवी?

मुफ्ती शमाइल अहमद अब्दुल्ला नदवी केवल एक पारंपरिक मौलाना नहीं हैं, बल्कि वे उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो प्राचीन इस्लामिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान और तकनीक के साथ जोड़ती है। वे प्रतिष्ठित इस्लामिक विश्वविद्यालय दारुल उलूम नदवतुल उलमा के स्नातक हैं। उन्होंने न केवल तफ़सीर और उलूमुल कुरान (कुरान की व्याख्या और विज्ञान) में पोस्ट-ग्रेजुएशन किया है, बल्कि 'तदरीब अलल इफ्ता' (मुफ्ती का प्रशिक्षण) में विशेषज्ञता हासिल कर धार्मिक व्यवस्थाओं की गहरी समझ विकसित की है।

2021 में उन्होंने 'मरकज़ अल-वहीयन' नामक एक ऑनलाइन संस्थान की स्थापना की, जो आज दुनिया भर के मुस्लिम युवाओं को डिजिटल माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहा है। इसके साथ ही, 2024में उन्होंने 'वहीयन फाउंडेशन' की नींव रखी, जो शिक्षा और लोक कल्याण के क्षेत्र में सक्रिय है।

सोशल मीडिया और आधुनिक इस्लाम का चेहरा

मुफ्ती शमाइल नदवी सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता और समकालीन समस्याओं पर इस्लामिक दृष्टिकोण रखने के लिए जाने जाते हैं। वे अक्सर उन सवालों के जवाब देते हैं जो आज की युवा पीढ़ी को परेशान करते हैं। चाहे वह संगीत सुनने की मर्यादा हो, निकाह के बाद रुखसती का समय हो या पश्चिमी विचारधाराओं के प्रभाव में इस्लाम की छवि,मुफ्ती नदवी ने हमेशा तर्कों के साथ बात रखी है। उनका मुख्य उद्देश्य पश्चिमी विचारधाराओं का बौद्धिक मुकाबला करना और इस्लाम को एक व्यावहारिक 'वे ऑफ लाइफ' के रूप में प्रस्तुत करना है।

चुनौती की पृष्ठभूमि: कोलकाता से दिल्ली तक का सफर

जावेद अख्तर और मुफ्ती नदवी के बीच इस टकराव की नींव इसी साल अगस्त में पड़ी थी। जावेद अख्तर कोलकाता में 'ईश्वर के अस्तित्व' को नकारने वाले एक कार्यक्रम में शामिल होने वाले थे। स्थानीय मुस्लिम समुदाय और मुफ्ती नदवी ने इसका पुरजोर विरोध किया। मुफ्ती नदवी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जावेद अख्तर को खुले मंच पर बहस की चुनौती दी।

हालाँकि उस समय कोलकाता का कार्यक्रम रद्द हो गया, लेकिन मुफ्ती नदवी पीछे नहीं हटे। सितंबर के पहले सप्ताह में उन्होंने जावेद अख्तर को ईमेल के जरिए औपचारिक चुनौती भेजी। मात्र चार दिनों के भीतर जावेद अख्तर का जवाब आया कि वे डिबेट के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्होंने पाँच प्रमुख शर्तें रखीं।

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शर्तें और वैचारिक मतभेद

जावेद अख्तर की शर्तों में कुछ बिंदु बेहद संवेदनशील थे। उन्होंने माँग की थी कि मुफ्ती को ज़मीयत उलेमा-ए-हिंद और कट्टरपंथ की आलोचना करनी होगी। इसके अलावा डिबेट किसी तीसरे शहर (दिल्ली) में करने, श्रोताओं की संख्या सीमित रखने और पूरी चर्चा की रिकॉर्डिंग की शर्तें भी शामिल थीं।

मुफ्ती नदवी ने स्पष्ट रुख अपनाते हुए ज़मीयत उलेमा-ए-हिंद की आलोचना करने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि इस संगठन का देश की आज़ादी और मुस्लिम समाज के उत्थान में ऐतिहासिक योगदान है। कई दौर की बातचीत और शर्तों पर समझौते के बाद आखिरकार दोनों पक्ष 20दिसंबर की तारीख पर सहमत हुए।

क्या होगा इस डिबेट का स्वरूप?

मुफ्ती नदवी के संगठन ने एक आधिकारिक बयान जारी कर स्पष्ट किया है कि यह कोई 'धार्मिक युद्ध' नहीं, बल्कि एक 'दोस्ताना वैचारिक विमर्श' है। इसका उद्देश्य सत्य की खोज और तर्कों के माध्यम से एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझना है। इस चर्चा में दर्शकों के रूप में केवल चुनिंदा बुद्धिजीवी, इस्लामिक जानकार और शोध छात्र ही शामिल होंगे, ताकि माहौल शांत और अकादमिक बना रहे।

बौद्धिक जगत में सरगर्मी

इस संभावित बहस ने न केवल आम लोगों बल्कि अन्य विद्वानों को भी सक्रिय कर दिया है। प्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर डॉ. मुफ्ती यासिर नदीम वजीदी ने एक वीडियो जारी कर बताया कि एक समय जावेद अख्तर उनके साथ भी बहस को तैयार हुए थे, लेकिन बाद में पीछे हट गए थे। ऐसे में मुफ्ती नदवी की इस पहल को बहुत साहसिक माना जा रहा है।

 

क्यों महत्वपूर्ण है यह बहस?

आज के दौर में जब धार्मिक और नास्तिक विचारधाराओं के बीच संवाद की कमी होती जा रही है, ऐसी चर्चाएँ समाज में तार्किकता को बढ़ावा देती हैं। जावेद अख्तर जहाँ अपने अनुभव और नास्तिक दर्शन के आधार पर तर्क रखेंगे, वहीं मुफ्ती शमाइल नदवी 'दारुल उलूम' की रवायत और कुरान के विज्ञान के आधार पर खुदा के वजूद को साबित करने की कोशिश करेंगे।

यह देखना दिलचस्प होगा कि जब 'अदब और शायरी' का तर्क 'अकीदे और इल्म' के तर्क से टकराएगा, तो इस वैचारिक मंथन से क्या अमृत निकलता है। पूरी दुनिया की निगाहें 20 दिसंबर को दिल्ली पर टिकी हैं, जहाँ सदियों पुराने सवाल का उत्तर आधुनिक संदर्भों में खोजने का प्रयास किया जाएगा।