ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
सबाहत आफरीन ने एक सीक्रेट सुपरस्टार बनकर अपने सपनों को साकार किया. यूपी स्थित सिद्धार्थनगर जिले के छोटे से गांव में पली-बढ़ी आफरीन के पिता एडवोकेट थे और मां हाउस वाइफ. कभी कभी इंसान के विचार उसके लक्ष्य इतने ताक़तवर हो जाते हैं कि कोई भी समाज परम्परा का नाम लेकर उसके क़दमो को रोक नहीं सकता. कुछ ऐसा ही हुआ सबाहत आफरीन के साथ. उनका परिवार पढ़ा-लिखा संपन्न घराना होने के बावजूद औरतों का बाहर निकलना और अपनी अलग पहचान बनाने को लेकर उदार नहीं था. परिवार पर रुढ़िवादी समाज का असर हमेशा बना रहा. घर की औरतें हमेशा पर्दे में रहतीं थीं.
सबाहत आफरीन 10वीं क्लास से पर्दे में रहने लगी, 12वी के बाद सबाहत आफरीन को-एड कॉलेज होने की वजह से कभी क्लास अटेंड नहीं कर पायीं और मजबूरी में प्राइवेट exams देकर अपनी शिक्षा पूरी की. एमए करने के दौरान शादी हो गयी. ससुराल राजनीतिक और आर्थिक रूप से संपन्न था, घर में हर सुख सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद सबाहत को गहने और कीमती साड़ियाँ पहन कर गुडिया की तरह सजे रहना पसंद नहीं आया. और इसी बेचैनी के बीच सबाहत ने लिखने को अपना मक़सद बना लिया.
“मेरी अम्मी को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था. मुझ पर भी उनका असर हुआ. मैं बचपन से कविताएं-कहानियां लिखती. अम्मी-अब्बू हमेशा उत्साह बढ़ाते. यह अलग बात है कि मेरी रचनाएं कभी छपने के लिए नहीं भेजी जातीं. क्यूंकि वो समय ऐसा था हमारे घर में अखबारों में बेटियों की फोटो छपना अच्छी बात नहीं मानी जाती थी. ससुराल में मुझे थोड़ा प्रोग्रेसिव माहौल मिला. मेरे ससुरजी यानी पापा जानते थे कि मैं लिखती हूं, इसलिए वे मुझे डायरी और पेन गिफ्ट में दिया करते. पति ने भी सपोर्ट किया.
शादी के बाद मैंने चुपके-चुपके फेसबुक पर अकाउंट बनाया, लेकिन डीपी में अपनी फोटो नहीं लगा सकती थी. फेसबुक पर ही कहानियां लिखनी शुरू कीं, तो पोस्ट वायरल होने लगी. किसी ने कहा कि नीलेश मिसरा को अपनी कहानियां भेजो. उनकी किस्सागोई बहुत पॉपुलर थी. मैंने उन्हें अपनी कहानी ईमेल की, जो उन्हें पसंद आई. फिर मैं उनकी मंडली का हिस्सा बन गई.”
2017में आई आमिर खान की फिल्म 'सीक्रेट सुपरस्टार' की इंसिया मलिक की तरह अपनी पहचान छिपाकर दुनिया को अपने हुनर से रूबरू कराया. जिसके बाद सबाहत आफरीन ने देशभर की पत्रिकाओं से लेकर कई सारे ऐप्स के लिए ऑडियो सीरीज लिखी, कहानियां और किताबें लिखना शुरू किया. अपनी दोनों नन्ही बेटियों को गांव की गलियों से निकाला और लखनऊ जैसे बड़े शहर का खुला आसमान दिया. कभी उनका विरोध करने वाले भी आज सम्मान करते हैं उन पर फख्र करते हैं.
हाल ही में उनका पहला कहानी संग्रह ‘मुझे जुगनुओं के देश जाना है’(रुझान पब्लिकेशन्स, राजस्थान) से आया है. सबाहत जुगनुओं के इस देश में कल्पना करती है कि औरतें भी मर्दों जैसी आजादी का लुत्फ उठा रही हैं, उनके दिलों के दरवाजों पर पहरे नहीं लगाये जा सकते, उन्हें भी तलाक के बाद दूसरा निकाह करने की छूट है, एक बार शौहर के घर से लौट आने के बाद उन्हें यह फैसला करने का हक होना चाहिए कि वह वापस जाए या न जाए.
सबाहत की इन कहानियों में आपको मुस्लिम माहौल, मुस्लिम खान-पान, मुस्लिम पहरावा सब दिखाई देगा, लेकिन यह भी दिखाई देगा कि औरत की स्थिति दोनों तरफ यकसां हैं. सबाहत आफरीन औरत की बंद मुट्ठियों के जुगनुओं को आजाद करना चाहती हैं. सबाहत को जब 30हजार रुपए का पहला पेमेंट मिला, तब उनके फैसलों को हिम्मत मिली. आर्थिक रूप से मज़बूत होना स्त्री की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. आज उनकी हर कहानी के साथ फोटो सोशल मीडिया पर शेयर की जाती है.
सबाहत के पास बेपनाह किस्से हैं. ये किस्से उन्होंने अपने आसपास देखे-सुने होंगे. इन किस्सों ने उनके भीतर दर्ज होकर कोई और रूप चाहा होगा. यही वजह है कि ये किस्से कहानी के रूप में सामने आए. ऐसा भी नहीं है कि ये किस्से पाठक पहली बार सुन रहा हो. हम सब इस तरह के किस्से आए दिन अपने चारों तरफ घटित होते देखते हैं. सबाहत ने ऐसे ही एक किस्से को दिलकश कहानी में ढाला है. ‘खूबसूरत औरतें’ कहानी इस वाक्य से शुरू होती है-अच्छी सूरतें भी अजाब की मानिंद होती हैं, जिधर गईं उधर लोगों की नजरें टिक गईं. कहानी की नायिका आलिया बेहद खूबसूरत है.
सबाहत की सभी कहानियों के केंद्र में स्त्री है. स्त्री के सुख-दुख, उसके ख़्वाब, उन्हें पूरा करने की हसरत और सामाजिक बंदिशें रवायतें हैं. अपनी कहानियों में सबाहत इन बंदिशों और रवायतों को तोड़ती दिखाई देती हैं. उनकी कहानियों के स्त्री पात्रों का विरोध भी बेहद चुप्पी वाला विरोध है. केवल ‘खूबसूरत औरतें’ कहानी की आलिया को छोड़कर. लेकिन विरोध तो है ही और कुछ कहानियों में यह विरोध कारगर होता दिखाई भी देता है.
सबाहत किस्से सुनाती हैं तो वह बेहद भावुक हो जाती हैं. उनकी दिली ख्वाहिश है कि स्त्रियों के लिए भी एक ऐसी दुनिया बने या हो जहां वे अपनी ख्वाहिशों को पूरा कर सकें,सपनो को साकार कर सकें. प्रगतिशील सोच उनके व्यवहार में भी दिखाई देती है और उनकी कहानियों में भी.सबाहत कहतीं हैं कि मैं कभी अकेले बाजार तक नहीं गई थी. लेकिन, कहानियों के ज़रिये जब लोग मुझे मेरे नाम से जानने लगे, तो इस बात ने मुझे कॉन्फिडेंस से भर दिया कि मैं बेटियों के साथ बड़े शहर में रह सकती हूं. फिर मैं लखनऊ पहुंची. फ्लैट लिया और बेटियों का अच्छे स्कूल में दाखिला कराया. आज मेरी बेटियां पढ़ रही हैं, हम तीनों के लिए ज़िन्दगी थोड़ी आसान हो गयी है.