विश्व जल दिवस : इस्लाम में पानी की क्या है अहमियत ?

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] • 1 Years ago
इस्लाम में पानी की क्या अहमियत ?
इस्लाम में पानी की क्या अहमियत ?

 

फ़िरदौस ख़ान

इस्लाम एक ऐसा दीन है, जो इंसान को मुकम्मल ज़िन्दगी गुज़ारने का हुक्म देता है. एक ऐसी ज़िन्दगी जिसमें सिर्फ़ अपने बारे में ही नहीं सोचना है, बल्कि अल्लाह की तमाम मख़लूक़ के बारे में सोचना है और उनका ख़्याल भी रखना है. अल्लाह ने कायनात की तमाम चीज़ें इंसानों व ज़मीन पर रहने वाले जानवरों, आसमान में उड़ने वाले परिन्दों और पानी में रहने वाले जीवों के फ़ायदे के लिए ही बनाई हैं. इनमें पानी अल्लाह की एक ऐसी नेअमत है, जिसके बिना ज़िन्दगी का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता.

क़ुरआन करीम में बार-बार पानी की अहमियत बयान की गई है. अल्लाह तआला फ़रमाता है- “बेशक आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ में और रात दिन के आने जाने में और जहाज़ों और कश्तियों में जो समन्दर और दरिया में लोगों को नफ़ा पहुंचाने वाली चीज़ें लेकर चलती हैं और बारिश के पानी में जिसे अल्लाह आसमान से बरसाता है.

फिर उसके ज़रिये मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा यानी बंजर ज़मीन को शादाब करता है. वह ज़मीन जिसमें उसने हर क़िस्म के जानवर फैला दिए हैं. और हवाओं के रुख़ बदलने में और बादलों में जो आसमानों और ज़मीन के दरम्यान अल्लाह के हुक्म के ताबे हैं. इसमें उस क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं, जो अक़्ल से काम लेती है.”   (क़ुरआन 2:164)

“अल्लाह ही है, जिसने आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ की. और आसमान से पानी बरसाया. फिर उसके ज़रिये तुम्हारे खाने के लिए फल उगाए. और उसने जहाज़ों और कश्तियों को तुम्हारे क़ाबू में किया, ताकि वे उसके हुक्म से समन्दर व दरिया में चलें और उसने समन्दर व दरिया को भी तुम्हारे काम में लगा दिया.”(क़ुरआन 14: 32)

“और अल्लाह ही है, जो अपनी रहमत से हवाओं को ख़ुशख़बरी बनाकर भेजता है, यहां तक कि जब वे पानी से भरे हुए भारी बादलों को उड़ाए फिरती हैं, तो हम उन्हें बंजर ज़मीन वाले शहर की तरफ़ ले जाते हैं. फिर हम उससे पानी बरसाते हैं. फिर हम उस पानी के ज़रिये ज़मीन से हर क़िस्म के फल उगाते हैं.” (क़ुरआन 7: 57)

“और वह अल्लाह ही है, जिसने आसमान से पानी बरसाया. फिर हमने उसके ज़रिये हर चीज़ के कोये निकाले. फिर हमने उससे हरी भरी शाख़ें निकालीं, जिससे हम गुथे हुए दाने निकालते हैं और खजूर के शगूफ़े से लटके हुए गुच्छे और अंगूर और ज़ैतून और अनार के बाग़ उगाए, जिनके फल आपस में मिलते जुलते हैं, लेकिन उनका ज़ायक़ा जुदा है. तुम दरख़्त के फल की तरफ़ देखो जब वे पकते हैं.”(क़ुरआन 6: 99)

“वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे लिए आसमान से पानी बरसाया. इसमें से तुम सब पीते हो और इससे शजर व चारागाहें भी शादाब होती हैं, जिनमें तुम अपने चौपायों को चराते हो. अल्लाह इसी पानी से तुम्हारे लिए खेती और जै़तून और खजूर और अंगूर उगाता है और हर क़िस्म के फल उगाता है. बेशक इसमें ग़ौर व फ़िक्र करने वाली क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.”(क़ुरआन 16: 10-11)

“और तुम बंजर ज़मीन को देखते हो. फिर जब हम पानी बरसा देते हैं, तो वह शादाब होकर लहलहाने और उभरने लगती है. और उसमें हर क़िस्म की ख़ु़शनुमा चीज़ें उगने लगती हैं.”(क़ुरआन 22: 5)

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पानी का बेजा इस्तेमाल 

लेकिन इंसान ये समझता है कि तमाम चीज़ों पर सिर्फ़ उसी का हक़ है और वे उनका बेजा इस्तेमाल करता है. वे परिन्दों, जानवरों और पानी में रहने वाले जीवों के बारे में नहीं सोचता. बस वे सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने में बारे में ही सोचता है. उसे इस बात का भी अहसास नहीं है कि आख़िरत में उसे तमाम सवालों का जवाब देना है. समन्दरों, नदियों और तालाबों में गंदगी होने की वजह से इसमें रहने वाले जीव बेमौत मर रहे हैं, लेकिन इंसानों की इसकी परवाह नहीं है.

क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “बस दुनियावी ज़िन्दगी की मिसाल उस पानी की मानिन्द है, जिसे हमने आसमान से बरसाया. फिर उससे ज़मीन ख़ूब सब्ज़ व घनी हो गई, जिसमें से इंसान और चौपाये खाते हैं. यहां तक कि जब ज़मीन की रौनक़ और हुस्न अपने शबाब पर आ गया और वह ख़ूब आरास्ता हो गई और उसके बाशिन्दों ने गुमान कर लिया कि अब हम उस पर पूरी क़ुदरत रखते हैं.

फिर रात या दिन में हमारा अज़ाब का हुक्म आ गया, तो हमने उसे यूं जड़ से कटा हुआ बना दिया, गोया वह कल यहां तक थी ही नहीं. इसी तरह हम उन लोगों के लिए अपनी निशानियां वाज़ेह तौर पर बयान करते हैं, जो ग़ौर व फ़िक्र किया करते हैं.”(क़ुरआन 10:24)

क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उनसे दुनियावी ज़िन्दगी की मिसाल भी बयान करो, जो उस पानी की तरह है, जिसे हमने आसमान से बरसाया, तो उससे ज़मीन शादाब होकर सरसब्ज़ हो गई. फिर वह ख़ुश्क होकर रेज़ा-रेज़ा हो गई, जिसे हवायें उड़ाए फिरती हैं. और अल्लाह हर चीज़ पर कामिल क़ुदरत रखने वाला है.(क़ुरआन 18: 45)

जहां एक तरफ़ करोड़ों लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं, वहीं इतने ही लोग ज़रूरत से ज़्यादा पानी का इस्तेमाल करके इसे बर्बाद करने पर आमादा हैं. अत्यधिक दोहन की वजह से भूजल स्तर बहुत नीचे चला गया है. क़ुदरत बार-बार इंसान को ख़बरदार करती है, लेकिन इंसान अपनी फ़ितरत से बाज़ ही नहीं आता.

क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “वह अल्लाह ही है, जो कभी तुम्हें डराने और कभी उम्मीद दिलाने के लिए बर्क़ यानी बिजली की चमक दिखाता है और पानी से भरे घने बादलों को उठाता है.”(क़ुरआन 13:12)

क़ुरआन में जो फ़रमाया गया है, आज बिल्कुल ऐसा ही तो हो रहा है, पानी कम बरस रहा है और ज़मीन बंजर होने लगी है. भू-जल स्तर बहुत नीचे जाने की वजह से जल संकट पैदा हो गया है.क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “और हम एक अंदाज़े के मुताबिक़ आसमान से पानी बरसाते हैं. फिर उसे ज़मीन में ठहरा देते हैं. और बेशक हम उसे ले जाने पर भी क़ादिर हैं.“(क़ुरआन 23: 18)

“या बाग़ों का पानी ख़ुश्क हो जाए. फिर तू उसे तलाश भी न कर सके.”(क़ुरआन 18: 41)

क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि भला बताओ कि अगर तुम्हारा पानी ज़मीन में बहुत नीचे उतर जाए, तो कौन है जो तुम्हारे लिए ज़मीन पर पानी के चश्मे बहाएगा?(क़ुरआन 67: 30)

हमें किसी भी चीज़ का सिर्फ़ इतना ही इस्तेमाल करना चाहिए, जितनी हमें उसकी ज़रूरत है, तो शायद कुछ और लोगों को उस चीज़ से महरूम न होना पड़े. पानी की मिसाल लें. बहुत से लोग ज़रूरत से ज़्यादा पानी का इस्तेमाल करते हैं. जो काम एक मग पानी से हो सकता है,

उसके लिए कई बाल्टी पानी बहा दिया जाता है. ऐसे में एक तरफ़ पानी फ़ुज़ूल में बह रहा है और दूसरी तरफ़ लोग पीने के पानी तक के लिए तरस रहे हैं. फ़ुज़ूल में पानी बहाते वक़्त एक बार उन लोगों के बारे में भी सोच लेना चाहिए, जिन्हें पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसना पड़ता है और वे मीलों चलकर पानी लाते हैं. आज भी दुनियाभर में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें पीने के लिए साफ़ पानी नसीब नहीं होता. याद रखें कि अल्लाह फ़ुज़ूल ख़र्च करने वालों को पसंद नहीं करता.

क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “खाओ और पियो और फ़ुज़ूल ख़र्च मत करो. बेशक अल्लाह फ़ुज़ूल ख़र्च करने वालों को पसंद नहीं करता.”(क़ुरआन 7: 31)

ग़ौरतलब है कि ज़मीन का दो तिहाई हिस्सा पानी से घिरा हुआ है, लेकिन इसमें से पीने लायक़ पानी बहुत कम यानी सिर्फ़ ढाई फ़ीसद है. इस पानी का भी दो तिहाई हिस्सा बर्फ़ के रूप में है. दुनियाभर में जितना पानी है, उसका महज़ 0.08फ़ीसद हिस्सा ही इंसानों के लिए मुहैया है.

इंसानों की ख़ामियों की वजह से ये पानी भी लगातार दूषित होता जा रहा है. कारख़ानों और नालों की गंदगी नदियों के पानी को ज़हरीला बना रही है. पहाड़ों में मुसलसल खनन होने और जंगलों को काटने की वजह से बारिश पर असर पड़ रहा है.

जब हम पानी पैदा नहीं कर सकते, तो फिर हमें इसे बर्बाद करने का क्या हक़ है? क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “और हम बादलों से लबरेज़ हवाएं भेजते हैं. फिर हम आसमान से पानी बरसाते हैं. फिर हम वह पानी तुम्हें पिलाते हैं. और तुम उसके ख़ज़ाने रखने वाले नहीं हो.”(क़ुरआन 15: 22)

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जल स्त्रोत

अल्लाह ने नदियां और झरने जारी किए और समन्दर, तालाब व कुएं बनाए. क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “भला वह कौन है, जिसने ज़मीन को लोगों के ठहरने की जगह बनाया और उसके दरम्यान नहरें जारी कीं और उसके लिए भारी पहाड़ बनाए. और खारे और मीठे पानी के दो समन्दरों के दरम्यान हदे फ़ासिल बनाई.”(क़ुरआन 27: 61)

“और वह अल्लाह ही है, जिसने दो समन्दरों को आपस में मिला दिया. एक समन्दर का पानी ख़ुशगवार व मीठा है और दूसरे का पानी खारा व कड़वा है. और दोनों के दरम्यान हदे फ़सील और एक मज़बूत ओट बना दी है.”(क़ुरआन 25: 53)

क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “ऐ इंसानो ! क्या तुमने नहीं देखा कि पहले अल्लाह आसमान से पानी बरसाता है. फिर उसे ज़मीन में चश्मे बनाकर जारी करता है. फिर उसके ज़रिये रंग बिरंगी यानी तरह-तरह की खेती उगाता है. फिर वह पकने के बाद ज़र्द हो जाती है. फिर अल्लाह उसे रेज़ा-रेज़ा करके भूसा बना देता है. बेशक अक़्लमंदों के लिए इसमें बड़ी नसीहत है.(क़ुरआन 39: 21)

क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “और वह वक़्त भी याद करो कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम के लिए पानी मांगा, तो हमने कहा कि तुम अपना असा पत्थर पर मारो. असा मारते ही उसमें से बारह चश्मे फूट पड़े. और सब लोगों ने अपना-अपना घाट पहचान लिया. और हमने कहा कि अल्लाह के दिए हुए रिज़्क़ में से ख़ूब खाओ और पियो और ज़मीन में फ़साद करते न फिरो.(क़ुरआन 2:60)

“फिर उसके बाद भी तुम्हारे दिल सख़्त हो गए. इतने सख़्त जैसे पत्थर हों या उससे भी ज़्यादा सख़्त हो चुके हैं. और बेशक पत्थरों में कुछ ऐसे भी हैं, जिनसे नहरें फूट निकलती हैं और बेशक उनमें से कुछ पत्थर ऐसे भी हैं, जिनमें शिगाफ़ पड़ जाती है, तो उनसे पानी निकल पड़ता है और बेशक उनमें से कुछ पत्थर ऐसे भी हैं, जो अल्लाह के ख़ौफ़ से गिर पड़ते हैं. और अल्लाह उन आमाल से ग़ाफ़िल नहीं, जो तुम किया करते हो.”(क़ुरआन 2:74)

पानी के ज़रिये तबाही 

अल्लाह पानी के ज़रिये ही ज़िन्दगी देता है और जब इंसान नाफ़रमानी करने लगता है, तो पानी के ज़रिये ही वह तबाह व बर्बाद भी हो जाता है. हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम का ख़ात्मा भी पानी के ज़रिये ही हुआ था.क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “फिर हमने मूसलाधार बारिश के साथ आसमान के दरवाज़े खोल दिए. और हमने ज़मीन से चश्मे जारी कर दिए. फिर ज़मीन और आसमान का पानी एक ही काम के लिए जमा हो गया, जो उनकी तबाही के लिए पहले से मुक़र्रर हो चुका था.

और हमने नूह अलैहिस्सलाम को एक कश्ती पर सवार किया, जो तख़्तों और मेख़ों से तैयार की गई थी. वह हमारी निगरानी में चल रही थी. ये सबकुछ उस एक शख़्स यानी नूह अलैहिस्सलाम का इंतक़ाम लेने के लिए किया गया, जिनसे कुफ़्र किया गया था. और बेशक हमने उस तूफ़ान को एक निशानी बना दिया. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.”(क़ुरआन 54: 11-14)

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हदीसों में पानी पर बयान

हदीसों में भी पानी का बेजा इस्तेमाल करने से बार-बार मना किया गया है. साथ ही इसे गन्दा न करने की भी ताकीद की गई है. अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हा का बयान है कि है कि अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- "तुममें से कोई ठहरे हुए या बहते पानी में पेशाब न करे और न उसमें नहाये. ”आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “वुज़ू में पानी फ़ुज़ूल ख़र्च न करो, चाहे तुम नदी के किनारे वुज़ू कर रहे हो.”

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जंग में भी फलदार दरख़्तों और जल स्रोतों को नुक़सान न पहुंचाने की ताकीद की. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “किसी का पानी कभी न रोको, क्योंकि ये गुनाह है.”इस्लाम में जानवरों को पानी पीने से रोकने के लिए भी सख़्ती से मना किया गया है.

एक हदीस के मुताबिक़ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “अगर तुम्हारे पास सिर्फ़ वुज़ू करने के लिए पानी है और तुम्हारे सामने एक प्यासा कुत्ता हो, तो वह पानी उसे पिला दो.” आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “अगर कोई शख़्स रेगिस्तान में कुआं खोदता है, तो उसे इसका हक़ हरगिज़ नहीं कि वह उस कुएं से किसी जानवर को पानी पीने से रोक दे’’

हदीसों में पानी का ज़ख़ीरा करने और उसे बेचने से भी मना किया गया है. एक हदीस के मुताबिक़ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- ‘‘अल्लाह तआला क़यामत के दिन उन लोगों से सख़्ती से पेश आएगा, जो पानी को सड़कों पर बहा देते हैं और मुसाफ़िरों यानी ज़रूरतमंदों को तरसाते हैं.’’

आज कहीं सूखा पड़ रहा है, तो कहीं सैलाब से तबाही आ रही है. ये सब क्या है? ज़ाहिर है कि ये सब क़ुदरत के साथ छेड़छाड़ करने और नाफ़रमानी करने का ही नतीजा है. हमें ये समझना होगा कि पानी पर सबका हक़ है. अगर हम किफ़ायत से पानी का इस्तेमाल करें, तो उस बचे हुए पानी से किसी और का गला तर हो सकता है. बेशक पानी की हर बूंद क़ीमती है, इसलिए पानी फ़ुज़ूल न बहायें. ज़रा उन लोगों के बारे में सोचें, जिन्हें पीने तक के लिए साफ़ पानी मयस्सर नहीं है.

(लेखिका आलिमा हैं और उन्होंने फहम अल क़ुरआन लिखा है)