मुकुंद मिश्र / लखनऊ
बदन को झुलसा देने वाली गर्मी का मौसम शायद ही किसी को रास आता हो. लेकिन यह तपिश ही इस मौसम को खास बना देती है फलों के शौकीनों के लिए. हलक सुखा देने और देह को पसीने से तरबतर कर देने वाले इसी मौसम का लोग महज इसलिए इंतजार करते हैं कि यह फलों के राजा यानि आम का भी मौसम है. हजारों आम की नस्लों के बीच दशहरी आम की मिठास के लिए लोगों की जुबान बेताब रहती है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे दशहरी गांव में जन्मी आम की यह खास नस्ल अपने स्वाद को लेकर दुनिया भर के स्वाद पर राज करती आ रही है.
दशहरी आम और इसकी दीवानगी का भी अपना एक इतिहास है और वह 200 से अधिक साल पुराना है.
लखनऊ शहर से सटे दशहरी गांव में 200 साल पुराना आम का पेड़ आज भी इस खास नस्ल के जन्म लेने और उसके दुनिया भर छा जाने की दास्तां को अपने अंदर जब्त किये हुए है.
दरअसल, यह वही पेड़ है, जिससे आम की यह बेमिसाल नस्ल पैदा हुई.
सैकड़ों साल पुराना यह आम का पेड़ ही नहीं, बल्कि मलीहाबाद और पूरे उत्तर प्रदेश के साथ पूरे देश के लोगों का सिर गर्व से तना हुआ है.
गांव के लोग इस पेड़ को लेकर एक मशहूर कहावत को बड़े ही फख्र के साथ बताते हैं.
मैंगो ग्रोवर असोसिएशन के अध्यक्ष इंसराम अली बताते हैं कि कहा जाता है कि मलीहाबाद तहसील के खालिसपुर गांव का रहने वाला एक पठान कारोबार के लिए सबसे अच्छी किस्म के आमों को ले जा रहा था.
वह पठान बेतहाशा गर्मी और रास्ते की थकान की वजह से एक साधु की झोपड़ी में आराम करने के लिए रुक गया.
साधु और आस-पास के लोगों ने पठान के छांव में आराम करने और पानी आदि का बंदोबस्त किया.
इसके बदले में पठान ने उन्हें आम दिये और साथ ही दावा किया कि यह सबसे अच्छी किस्म के आम हैं और इसकी मिठास कहीं और नहीं मिलेगी.
इसी दौरान पठान और साधु के बीच बहस हो गई. गुस्से में पठान ने अपने सबसे अच्छे पके आमों की टोकरी में से एक आम साधु को तोहफे में देने के बजाय जमीन पर फेंक दिया और वहां से आगे की ओर बढ़ गया.
कई दिनों बाद बरसात का मौसम और और फेंके गये आम का बीज एक पौधे में तब्दील होने लगा.
लोगों ने इस पौधे की देखभाल की और करीब 12 साल बाद उसमें बौर आए और फिर फल.
इन फलों को जब लोगों ने चखा, तो उनके जेहन में पठान का वह दावा उभर आया, जिसमें उसने इसके बेजोड़ होने की बात कही थी.
विशालकाय है मदर ट्री
इस अनूठे स्वाद वाले आम की खबर जमीन के मालिक नवाब आसिफुद्दौला तक पहुंची.
वहीं क्षेत्रीय नवाब मोहम्मद अंसार अली ने इसे आम के पेड़ की खास देखभाल का हुक्म दिया और इसके बाद इससे और पेड़ों को तैयार करने का सिलसिला शुरू हुआ.
चूंकि जिस गांव में आम का पेड़ पैदा हुआ उसका नाम दशहरी था, इसलिए इस नस्ल का नाम ही दशहरी पड़ा गया.
करीब 10 मीटर लंबा, 21 मीटर का क्षेत्रफल और 3 मीटर की परिधि में दशहरी आम का यह मदर ट्री आज भी खड़ा है.
दशहरी आम के इस पहले पेड़ को पाल-पोसकर बड़ा करने का श्रेय नवाब मोहम्मद अंसार अली को जाता है. उनके परिवार के वंशज आज भी इस पेड़ के मालिक हैं.
200 साल पुराने इस पेड़ पर आने वाले आमों को सबसे पहले नवाब अंसार अली के परिवार को भेजा जाता है. दशहरी गांव मलीहाबाद क्षेत्र में आता है.
मलीहाबाद अब दशहरी आम के उत्पादन सबसे बड़ा क्षेत्र बन गया है.
मलीहाबाद के बुजुर्गों के मुताबिक, मिर्जा गालिब तक दशहरी आम के शौकीन थे.
मिर्जा गालिब कोलकाता से दिल्ली जाने के दौरान इस आम का स्वाद चखना नहीं भूलते थे.
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस पुराने दशहरी के मदर प्लांट को हेरिटेज ट्री घोषित किया जाएगा.
यही नहीं पर्यटकों को लुभाने के लिए काकोरी के इस दशहरी गांव को भी संवारे जाने की भी योजना तैयार की है. पर्यटन के लिहाज से भी इसे विकसित किये जाने का भी प्रस्ताव इसमें शामिल है.
दशहरी का यह मदर ट्री इतना पुराना होने के बावजूद आज भी फल देता है. इसकी डालें आज भी काफी मजबूत हैं.
दशहरी आम के शौकीन अक्सर उसके इतिहास को जानने के लिए यहां इस पेड़ को देखने आते हैं.
आमों की तरह-तरह की किस्मों को लेकर प्रयोग करने वाले पद्मश्री कलीम उल्ला खान बताते हैं कि अब तक बहुत सी आम की प्रजातियां बन चुकी हैं. इसमें सबसे बड़ा योगदान दशहरी के मदर प्लांट का है.
उन्होंने बताया कि दशहरी से क्रॉस करके मल्लिका, लंगड़ा, आम्रपाली सहित कई अन्य प्रजातियों को जन्म दिया गया है.
उन्होंने बताया कि सही मायने में सरकार को इस पेड़ को ऐतिहासिक पेड़ घोषित कर देना चाहिए.
दशहरी आम के लिए मलीहाबाद स्वर्ग है. वैसे देखा जाये तो उत्तर प्रदेश में आम की बागवानी वाली 14 बेल्ट हैं और मलीहाबाद इनमें सबसे खास है. यहां 30,000 हेक्टेयर के क्षेत्र में सिर्फ और सिर्फ आम की बागवानी की जाती है.
आम उत्पादन की बात करें? तो उत्तर प्रदेश भारत में आमों के उत्पादन के मामले में दूसरे नंबर पर है. पहले नंबर पर आंध्र प्रदेश का नाम दर्ज है.
लेकिन, मलीहाबाद का दशहरी आम अपने अनूठे स्वाद से सभी को पीछे छोड़ता आ रहा है. पाकिस्तान, नेपाल, मलेशिया, फिलीपींस, हांगकांग, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया तक दशहरी आमों को भेजा जाता है.
दुनिया भर में दशहरी की डिमांड को देखते हुए अब आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ में भी दशहरी आम की बागवानी की जाने लगी है.