शाहनवाज आलम / धनबाद ( झारखंड )
झारखंड प्रदेश की कोयला नगरी धनबाद शहर से करीब चार किलोमीटर दूर बसा मुस्लिम बाहुल्य इलाका ‘वासेपुर’ बहुत आगे निकल चुका है. कभी धनबाद की चौहद्दी तक सिमटा यह कस्बा अब किसी परिचय का मोहताज नहीं. लेकिन, एक बदनुमा दाग इसके साथ ऐसा जुड़ा कि धनबाद का यह इलाका देश-दुनिया में ‘ गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के नाम से चर्चित हो गया.
इसकी एक बड़ी वजह फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप के निर्देशन में वर्ष 2012 में बनी फिल्म ‘ गैंग्स ऑफ वासेपुर ’ भी है. फिल्म को रिलीज हुए करीब एक दशक हो चुका है. मगर इस एक दशक के बीच वासेपुर और यहां रहने वालों के जीवन में बहुत कुछ बदला है.
पढ़,लिखकर यहां के युवा देश-दुनिया में नाम कमा रहे हैं. आईएएस, आईपीएस की नौकरी में हैं. दो परिवारों के गैंगवार से इतर यहां के युवा विदेशों में अपने हुनर का जलवा दिखा रहे हैं. लेकिन नहीं बदली है तो ‘वासेपुर’ को लेकर लोगों की सोच.
परत-दर-परत
65 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक सैय्यद ऐन अशरफ बताते हंै, बीते एक दशक में वासेपुर के युवाओं में शिक्षा को लेकर ललक बढ़ी है. मां-बाप भी अब तालीम की अहमियत समझने लगे हैं. मटरगश्ती और बैठकबाजी खत्म हो चुकी है.
बोर्ड के रिजल्ट में अच्छे परिणाम आ रहे हैं. युवाओं में सरकारी नौकरी को लेकर संजीदगी बढ़ी है. हर वर्ष 40,50 युवा एसएससी, बैंकिंग और रेलवे की प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं. यह आंकड़ा और भी अधिक हो सकता है.
यूपीएससी में भी दो,चार बच्चे सफल होकर आईएएस, आईपीएस और आईआरएस तक बने हंै. हालांकि सेवानिवृत्त शिक्षक अशरफ को दुख है कि जिस तरह से युवाओं का रूझान शिक्षा के प्रति बढ़ा है. उस हिसाब से यहां स्कूल, कॉलेज नहीं हंैं. उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाना पड़ता है.
बता दें कि वासेपुर में तीन राजकीय स्कूल, एक अर्ध सरकारी स्कूल, करीब एक दर्जन प्राइवेट स्कूल हैं, जबकि उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज के नाम पर केवल अहसान आलम मेमोरियल कॉलेज है. जहां सिर्फ 12वीं तक पढ़ाई होती है.
आधी आबादी का सम्मान
वासेपुर की बदलती तस्वीर के बारे में पूछने पर पूर्व पार्षद नजमा खान फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का एक डायलॉग ‘ यहां परिंदा भी एक पर से उड़ता है और दूसरे से इज्जत बचाता है ’ का जिक्र कर कहती हैं. वासेपुर में लड़कियों की बहुत इज्जत है.
हर लड़की को बेटी की नजरों से देखा जाता है. आज तक वासेपुर में दुष्कर्म के मामले सामने नहीं आए. दहेज के नाम पर हत्याएं नहीं हुईं. बुजुर्गों को बेघर नहीं किया जाता है, लेकिन फिल्म ने ऐसी तस्वीर खींची कि लोग डरने लगे. एक दशक में फिल्म का प्रभाव धूमिल हुई है.
नजमा का दावा है कि अधिकांश घरों की बेटियां दसवीं,12वीं तक पढ़ने लगी हैं. बहुत सी बच्चियां मास्टर डिग्री तक हासिल कर रही हैं. लड़कियां बैंकों की नौकरी में सफल हुई हंै. यहां की लड़कियां दिल्ली,मुंबई में जॉब कर रही हैं. जो पहले घर की चैखट नहीं लांघती थीं. दीनी-तालीम के साथ प्रोफेशन कोर्स करके आगे बढ़ रही हैं.
विकास में अग्रसर
बुनियादी विकास के मुद्दे पर कहती हैं कि वासेपुर कई वार्ड में बंटा हुआ है. यहां पर धीरे,धीरे विकास का काम कराया जा रहा है. सभी जगहों पर सड़कों का निर्माण, पेयजल आपूर्ति, लाइटिंग और बिजली की सुचारू व्यवस्था की गई है.पहले यहां पर सड़कें नहीं थीं. बारिश में पानी जमा हो जाता था. अब यह तस्वीर बहुत हद तक बदल गई है.
वासेपुर के लोगों के खान-पान और रहन-सहन के स्तर में भी अंतर आया है. जमीन से जुड़े काम करने वाले 48 वर्षीय मोहम्मद साबिर बताते हंै, परिवारिक तौर पर न्यूक्लियर फैमिली का प्रचलन बढ़ा है. युवाओं के अंदर निवेश का तरीका भी बदला है.
जमीन खरीदने वालों में अधिकांश युवा हैं. घरों के निर्माण का तौर,तरीका भी वक्त के साथ बदला है. इंटीरियर डिजाइनिंग और कलरिंग को लेकर अधिक रूचि देखने को मिलती है, जबकि पहले केवल मजदूरों के हवाले करके घरों का निर्माण होता था.
अब यहां घरों की लाइटिंग, थ्री डी वॉलपेपर, झूमर, टाइल्स, मार्बल, सीसीटीवीए इंटीरियर डेकोरेशन और बढ़िया फर्नीचर सब अनिवार्य हो गया है. इसके कारण अब यहां पर फर्नीचर और डेकोरेशन से जुड़े उद्योग तेजी से बढ़े हैं. यह जीवन स्तर के बदलाव का बड़ा असर है.
कबाब से आगे भी है दुनिया
कभी कबाब और बिरयानी के छोटे होटल तक सीमित रहने वाले वासेपुर में अब कॉम्पलेक्स और स्ट्रीट फूड का प्रचलन बढ़ा है. आजाद नगर, आरा मोड़, मिल्लत कॉलोनी, कमर मखदूमी रोड- कुछ ऐसे स्थान हंैं, जहां फूड स्ट्रीट वेंडर लगने लगे हं. यहां पर चाइनीज, थाई और अलग-अलग मुगलई खाने भी मिलते हंै. शाम के समय लड़कों से अधिक लड़कियों की भीड़ यहां की बदलती तस्वीर को बयां करने के लिए काफी है.
हाल में यूएई से लौटे इमरान रजा बताते हैं, यहां के युवाओं में एक बदलाव दिखता है. जो युवा अधिक नहीं पढ़ सके, वह हाथ का हुनर सीखकर यूएई, साउदी, ओमान, कतर जैसे खाड़ी देशों में जाकर रेफ्रीजेरेटर तकनीशियन, एसी तकनीशियन, पलंबरए हैवी व्हीकल ड्राइवर, पेंटर जैसी नौकरियां कर रहे है. वहां से पैसे कमा कर घर वासेपुर भेज रहे हैं. इससे यहां परिवार की स्थिति में सुधार हुआ है.
जारी है गैंगवार
वासेपुर की पहचान को लेकर वरिष्ठ पत्रकार मोहन कुमार गोप कहते हैं, यहां दो परिवार के बीच की लड़ाई गैंगवार की वजह है. कोयले के खदान को लेकर शुरू हुआ वर्चस्व के साथ रेलवे के ठेके और लोहे के अवैध तस्करी के लिए यहां खून-खराबा होता रहा है, लेकिन दोनों परिवार की दूसरी पीढ़ी के बीच अब भी लड़ाई जारी है. पुलिसिया सख्ती और अधिकांश लोगों के जेल में होने के कारण इस पर काफी हद तक विराम लगा है.
जरूरी बातें
छोटे-छोटे मोहल्ले में फैले वासेपुर में करीब दो लाख की मुस्लिम आबादी रहती है. 1956 में महज 100 घरों को बसाने की नींव रखने वाले वासे साहब के नाम पर बसा यह कस्बा अब अपने बदलाव के दौर में है. यहां के लोग अब सामाजिक बदलाव के साथ आर्थिक तौर पर भी संपन्न हो रहे हैं. अब अगर अनुराग कश्यप यहां आएं तो इसकी बदलती तस्वीर को लेकर वह भी भौंचक हो जाएंगे.