एक ही छत के नीचे दो शादियां: बारिश में भीगी इंसानियत, पुणे में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द का अनोखा जश्न

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-05-2025
Two weddings under the same roof: Humanity drenched in rain, a unique celebration of Hindu-Muslim harmony in Pune
Two weddings under the same roof: Humanity drenched in rain, a unique celebration of Hindu-Muslim harmony in Pune

 

आवाज़ द वॉयस ब्यूरो / पुणे

पुणे शहर के वानवड़ी इलाके में जो कुछ हुआ, उसने यह साबित कर दिया कि जब दिलों में इंसानियत बसती हो, तो मज़हब की दीवारें खुद-ब-खुद ढह जाती हैं. मूसलधार बारिश में जहां एक शादी तबाह होने के कगार पर थी, वहीं बगल में चल रही दूसरी शादी ने अपने दरवाज़े खोलकर न सिर्फ एक परिवार को राहत दी, बल्कि पूरे समाज के सामने एक बेहतरीन मिसाल पेश की.

घटना पुणे के वानवड़ी स्थित स्टेट रिज़र्व पुलिस फोर्स परिसर के पास स्थित "अलंकरण गार्डन" की है. खुले लॉन में संस्कृती कवाडे और नरेंद्र गलांडे पाटिल की शादी पूरे धूमधाम से आयोजित की गई थी. विवाह का शुभ मुहूर्त शाम 6:56 बजे तय था. मेहमानों की चहल-पहल, रंगीन सजावट, और ढोल-ताशों की गूंज माहौल को विवाहोत्सव में बदल चुकी थी.

लेकिन जैसे ही बरात गेट पर पहुंची, आकाश में बादलों ने डेरा डाल दिया. पल भर में मूसलधार बारिश शुरू हो गई. लॉन पानी से लबालब हो गया. मेहमान इधर-उधर भागने लगे, स्टेज और मंडप की सजावट भीगकर बर्बाद हो गई. दोनों परिवारों की वर्षों की तैयारियां जैसे पानी में बह गईं.


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उसी परिसर में स्थित बंद हॉल "अलंकरण हॉल" में मुस्लिम दंपती मोहसिन और माहीन की रिसेप्शन पार्टी चल रही थी. बारिश के कहर और मुहूर्त के बीतते समय को देखते हुए संस्कृती के पिता चेतन कवाडे और अन्य परिजन हिम्मत जुटाकर फ़ारूक़ काज़ी के पास पहुंचे — जो मोहसिन के पिता हैं और एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी भी हैं.

उन्होंने विनम्रता से अपनी स्थिति समझाई और हॉल को कुछ देर के लिए विवाह के लिए उपयोग करने की अनुमति मांगी. इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास बन गया.

बिना एक पल की देर किए, काज़ी परिवार ने न सिर्फ अपनी रिसेप्शन पार्टी को रोक दिया, बल्कि हॉल पूरी तरह से हिंदू परिवार को सौंप दिया. उन्होंने अपने मेहमानों को कुछ देर रुकने को कहा और खुद रस्मों के लिए व्यवस्था करने में जुट गए. कुछ ही देर में उसी हॉल में संस्कृती और नरेंद्र की शादी हिंदू रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हो गई..

मोहसिन के पिता फ़ारूक़ काज़ी ने कहा,“कवाडे परिवार बहुत परेशान था. मैंने महसूस किया कि संस्कृती भी हमारी बेटी जैसी है. ऐसे वक्त में मज़हब नहीं, मदद की ज़रूरत होती है. हमने मंच खाली किया, क्योंकि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है.”

जब संस्कृती और नरेंद्र ने सात फेरे लिए, उसी स्थान पर कुछ देर पहले मुस्लिम रिसेप्शन की रंगत थी. दोनों धर्मों की रस्में, परंपराएं और खुशियां एक ही छत के नीचे मानो एक सुर में गूंज रही थीं. सबसे दिलचस्प बात यह रही कि दोनों नवविवाहित जोड़ों ने मिलकर फोटो भी खिंचवाए — एक साझा पहचान और प्रेम का प्रतीक.

संस्कृती की मां ने कहा,“मैंने अपनी बेटी की शादी के लिए सपनों से ज़्यादा तैयारी की थी. पर बारिश ने सब कुछ भीगा दिया — मेरे अरमान भी. लेकिन जब मोहसिन के पिता ने हमें जगह दी, लगा जैसे खुदा ने फरिश्ता भेजा हो.”

बारिश थमने के बाद, दोनों परिवारों के मेहमानों ने साथ बैठकर खाना खाया. एक ओर हलाल व्यंजन थे, तो दूसरी ओर शाकाहारी स्वाद. किसी ने कुछ नहीं पूछा, न टोका, न टटोला. उस रात सिर्फ एक ही भाषा बोली गई — मोहब्बत और सम्मान की.

संस्कृती के चाचा संजय कवाडे ने कहा,“आज हमें एहसास हुआ कि इंसानियत धर्म से बड़ी होती है. ये पल हमें ज़िंदगी भर याद रहेगा.”हॉल में मौजूद कई मेहमानों की आंखें नम थीं. 

एक मेहमान ने बताया,“लॉन में अफरा-तफरी थी. शादी रुक गई थी. लेकिन जैसे ही मुस्लिम परिवार ने हॉल दिया, लगा जैसे कोई चमत्कार हो गया हो. सबने मिलकर रस्में पूरी कराईं और फूलों की बारिश की.”

इस घटना ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि भारत की आत्मा आज भी गंगा-जमुनी तहज़ीब में बसती है. जहां धर्म का इस्तेमाल बांटने के लिए किया जाता है, वहीं पुणे की इस घटना ने दिखा दिया कि जब ज़रूरत पड़े, तो मज़हब नहीं, मोहब्बत बोलती है.

चेतन कवाडे ने भावुक होकर कहा,“मैं इस मेहरबानी को कभी नहीं भूलूंगा. काज़ी परिवार ने हमें जो सम्मान और मंच दिया, वह हमारे लिए ताउम्र आभार का विषय रहेगा.”

यह सिर्फ एक शादी नहीं थी, यह वह पल था जब दो परिवारों ने, दो मज़हबों ने और दो संस्कृतियों ने एक-दूसरे का हाथ थामा — एक ऐसी साझी विरासत को जीते हुए, जिसकी जड़ें इस देश की मिट्टी में गहराई तक पैठी हैं.