कान फिल्म समारोह में इंपा की बड़ी सफलता, अभय सिन्हा को मिला अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-05-2025
IMPA's big success at Cannes Film Festival, Abhay Sinha gets international leadership, Mr Sinha right
IMPA's big success at Cannes Film Festival, Abhay Sinha gets international leadership, Mr Sinha right

 

ajit कान, फ्रांस से अजित राय

78 वें कान फिल्म समारोह में दुनिया भर के फिल्म निर्माताओं की सबसे बड़ी संस्था इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फिल्म प्रोड्यूसर एसोसिएशन की वार्षिक आम सभा में इंपा प्रमुख अभय सिन्हा को आम सहमति से उपाध्यक्ष चुना गया. यह संस्था दुनिया के 30 देशों के फिल्म निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करती है. अभय सिन्हा को इस संस्था के ब्रुसेल्स  ( बेल्जियम) स्थित मुख्यालय ए एस बी एल का भी उपाध्यक्ष चुना गया.एफआईएपीए ने एक विज्ञप्ति में इसकी जानकारी दी. 

अभय सिन्हा भारतीय फिल्म निर्माताओं की सबसे बड़ी संस्था इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर एसोसिएशन ( इंपा) के अध्यक्ष हैं. वे भोजपुरी फिल्मों के मशहूर फिल्म निर्माता है. उन्होंने भोजपुरी और हिंदी में करीब 150 फिल्मों और पांच हजार टेलीविजन धारावाहिकों के एपिसोड का निर्माण किया है. 

उन्होंने आइफा अवार्ड की तरह हीं वैश्विक स्तर पर भोजपुरी सिनेमा को पहचान दिलाने के लिए इंटरनेशनल भोजपुरी फिल्म अवार्ड ( आईबीएफए) शुरू किया है जो हर साल दुनिया के किसी न किसी देश में आयोजित किया जाता है.

विश्व की इस महत्वपूर्ण संस्था का उपाध्यक्ष चुने जाने पर उन्होंने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय सिनेमा का सम्मान है. उन्होंने कहा कि कान फिल्म समारोह के फिल्म बाजार में इंपा ने लगातार दूसरे साल अपनी सक्रिय भागीदारी की और भारतीय फिल्म निर्माताओं को वैश्विक मंच प्रदान किया.

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उन्होंने कहा कि इस बार कान फिल्म फेस्टिवल के फिल्म बाजार में भारत के करीब चालीस  फिल्म निर्माताओं ने भागीदारी की और अपने सिनेमा को विश्व स्तर पर प्रदर्शित किया. 

इंपा के अध्यक्ष अभय सिन्हा  का कहना है कि यूनेस्को से मान्यता प्राप्त विश्व की सबसे बड़ी संस्था फेडरेशन इंटरनेशनल डि आर्ट फोटोग्राफिक ( फियाप )ने पिछले साल कान फिल्म समारोह में इंपा को सदस्यता आफर की थी और हमने स्वीकार कर लिया था.

भारत में फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ( एफएफआई) और राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम ( एन एफ डी सी) ही इसके सदस्य हैं लेकिन इन दोनों संस्थाओं ने कई सालों से फियाप को अपनी वार्षिक सदस्यता नहीं दी है. 

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फोटोग्राफिक आर्ट दुनिया भर के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों को अपने तय मानदंडों के आधार पर मान्यता प्रदान करती है. कान, बर्लिन, वेनिस, टोरंटो, बुशान सहित दुनिया भर में होने वाले सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह इसी संस्था से मान्यता प्राप्त करते हैं. 

भारत में इस संस्था ने केवल चार अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों को मान्यता दी है - गोवा, केरल, बंगलुरु और कोलकाता। इस संस्था की वार्षिक सदस्यता  25 हजार 170 यूरो है यानी करीब 25 लाख रुपए.

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उन्होंने कहा कि फियाप का सदस्य बन जाने के बाद आस्कर पुरस्कार में भारत से आफिशियल प्रविष्टि भेजने का काम भी इंपा को मिलना चाहिए.

  इंपा के सदस्य युवा फिल्मकार चंद्रकांत सिंह कहते हैं कि असली मुद्दा यहीं है कि कौन सी संस्था आस्कर पुरस्कार के लिए भारत से फिल्मों को भेजेगी.

इंपा के उपाध्यक्ष अतुल पटेल कहते हैं कि बड़े फिल्म निर्माता तो अपनी फिल्मों को विदेशों में प्रदर्शित करने में कामयाब हो जाते हैं पर भारत के हजारों छोटे छोटे फिल्म निर्माताओं के पास ऐसे अवसर नहीं होते.

कान फिल्म बाजार में इंपा की भागीदारी से यह संभव हुआ है.वे कहते हैं कि इंपा की स्थापना 1937 में हुई थी और इसके करीब 23 हजार सदस्य हैं जिनमें से दस हजार सदस्य अभी भी सक्रिय हैं. 

इंपा ने  इस साल कान फिल्म बाजार में पहली बार स्वतंत्र रुप से  अपना स्टाल लगाया जिसका उद्घाटन भारत के मशहूर अभिनेता अनुपम खेर ने किया. 

उन्होंने कहा कि कान फिल्म बाजार में इंपा के स्टाल का शुभारंभ करते हुए उन्हें गर्व और खुशी हो रही है. उम्मीद है कि इससे भारतीय फिल्म निर्माताओं को काफी लाभ होगा और भारत का सिनेमा दुनिया भर में पहुंचेगा.

इंपा के अध्यक्ष अभय सिन्हा कहते हैं कि हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा कंटेंट बेस्ड फिल्में कान फिल्म बाजार में बिजनेस करें जिससे भारत के छोटे फिल्म निर्माताओं को फायदा हो.

भारत के पास असंख्य कहानियां हैं जिसे दुनिया सुनना चाहती है. हम यदि कोशिश करें तो यूरोप अमेरिका में हमारी कंटेंट बेस्ड फिल्में अच्छा बिजनेस कर सकती हैं. अतुल पटेल जोड़ते हैं कि कान फिल्म बाजार में इंपा को अच्छी सफलता मिली है जिससे आने वाले समय हम और बेहतर बिजनेस कर सकते हैं.

आस्कर अवार्ड में भारत से आधिकारिक प्रविष्टि भेजने के सवाल पर अभय सिन्हा कहते हैं कि  हमें इस मामले में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि यह देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा मामला है.

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यहां यह बता दें कि फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा आस्कर अवार्ड के लिए भेजी जाने वाली फिल्मों का स्ट्राइक रेट बहुत खराब है. 

पिछले 97 सालों के आस्कर पुरस्कारों के इतिहास में दुर्भाग्य से केवल तीन भारतीय फिल्में ही अंतिम दौर तक पहुंच पाई  - महबूब खान की " मदर इंडिया "  (1957), मीरा नायर की " सलाम बांबे ' ( 1988) और आशुतोष गोवारिकर- आमिर खान की " लगान (2001)." पर अभी तक किसी भारतीय फीचर फिल्म को आस्कर अवार्ड नहीं मिल सका है.