ये सरदार जी 40 सालों से कर रहे मस्जिद की देखभाल

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 20-07-2021
सरदार बलजिंदर सिंह
सरदार बलजिंदर सिंह

 

आवाज-द वॉयस /अमृतसर

पंजाब के अमृतसर शहर में एक अनोखी मिसाल सामने आई है, जहां पिछले 40 सालों से एक सरदार जी मस्जिद का रख-रखाव कर रहे हैं.

बलजिंदर सिंह पेशे से सब्जी विक्रेता हैं, लेकिन वे मस्जिद के साथ-साथ गुरुद्वारे में भी ‘सेवा’ कर रहे हैं.

खैरुद्दीन मस्जिद को यहां जामा मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है. यह मस्जिद अमृतसर शहर की एक संकरी गली में स्थित है, जिसकी देखरेख में बलजिंदर सिंह अधिक से अधिक भाग लेते हैं.

बलजिंदर सिंह ने कहा कि वह सिख पैदा हुए हैं और स्वाभाविक रूप से धर्मनिरपेक्ष हैं.

वह हर शुक्रवार सुबह मस्जिद में अपनी ड्यूटी पूरी करने के लिए पहुंचते हैं और उपासकों के जूतों की सेवा करते हैं. नमाजी जब तक अंदर दबादत करते हैं, वे जूतों की देखभाल करते है.

एक साक्षात्कार में, सरदार बलजिंदर सिंह ने कहा कि मस्जिद में ‘सेवा’ करना वास्तव में सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव द्वारा सिखाए गए भाईचारे और सद्भाव के सार्वभौमिक संदेश का हिस्सा है.

सरदार बलजिंदर सिंह अपने क्षेत्र में ‘भा जी’ और ‘सरदार जी’ के नाम से जाने जाते हैं. उन्होंने खुद कहा कि वह 1980 से इस मस्जिद की देखरेख कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि उनके पूर्वज 90 साल से स्वर्ण मंदिर में सिलाई कर रहे हैं.

सिलाई की भावना असल में उनके खून में है. वे कभी-कभी किसी मंदिर में जाकर सिलाई करते हैं, वहां भी वे भक्तों के जूतों की सेवा करते हैं.

जब उनसे पूछा गया कि उन्हें सेवा से क्या मिला, तो उन्होंने कहा कि उन्हें मन की शांति मिली है.

उन्होंने कहा, “बदले में मुझे लोगों की दुआएं मिली हैं.”

वे पिछले चार दशकों में केवल एक बार शुक्रवार को मस्जिद के सेवा में शामिल नहीं हो पाए थे.

 

यदि वे किसी आवश्यक कार्य के कारण कभी सेवा नहीं कर रहे हैं, तो उनके स्थान पर उनका पुत्र सेवा करता है. उनके दो बेटे हैं- बलदेव सिंह जो एक रिटेल स्टोर चलाते हैं, जबकि दूसरा बेटा वरिंदर सिंह मलेशिया में रहता है.

 

जामिया मस्जिद के इमाम मौलाना हामिद हुसैन ने उनके बारे में कहा कि उन्होंने ऐसा निस्वार्थ सेवक अपने जीवन में कभी नहीं देखा, इंसानियत की भावना उनमें उड़ रही है, इसलिए उन्हें सिलाई करनी चाहिए.

 

उन्होंने कहा कि यह वास्तव में मुस्लिम-सिख एकता का एक अनूठा उदाहरण है, जहां एक सरदार मस्जिद में आने वाले उपासकों के जूतों की देखभाल कर रहा है ताकि पूजा करने वाले शांति से प्रार्थना कर सकें.