-फ़िरदौस ख़ान
देश में राष्ट्रीय स्तर पर सूफ़ी सर्किट की स्थापना करने की क़वायद चल रही है. इस सर्किट में सूफ़िज़्म के सभी सिलसिलों के सूफ़ियों की दरगाहों को शामिल किया जाएगा. इससे जहां मज़हबी पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, वहीं सूफ़ियों का प्रेम, सद्भाव व भाईचारे का संदेश भी दुनिया के कोने-कोने तक तेज़ी से पहुंचेगा.
ग़ौरतलब है कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर की दरगाहों के प्रमुखों को अपने आवास पर आमंत्रित किया था. उन्होंने सूफ़ियों के प्रतिनिधिमंडल से सूफ़ी सर्किट की स्थापना के बारे में प्रस्ताव मांगा था. उन्होंने अजमेर के ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चढ़ाने के लिए एक चादर भी उन्हें सौंपी थी.
यह चादर उर्स के दौरान दरगाह पर चढ़ाई गई. इस मौक़े पर प्रधानमंत्री का संदेश भी पढ़ा गया था, जिसमें उन्होंने कहा था-“भारत के संतों, पीरों और फ़क़ीरों ने अपने आदर्शों व विचारों से जन-जन को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है.
लोगों में अमन शांति सद्भावना और भाईचारे का संदेश देते हुए उन्होंने हमारी सांस्कृतिक एकता को सशक्त किया. ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने हमारी संस्कृति परम्परा को और समृद्ध किया. ग़रीब नवाज़ के मानवता से जुड़े संदेशों और लोक कल्याण की भावना ने दुनियाभर के लोगों को प्रभावित किया है.”
क़ाबिले ग़ौर यह भी है कि बिहार और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों की सरकारें अपने सूबों में धार्मिक महत्त्व की विरासतों के संरक्षण व धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए धार्मिक सर्किट स्थापित कर रही हैं. इसके तहत सूफ़ी सर्किट भी स्थापित किए जा रहे हैं.
केंद्र सरकार भी अन्य धर्मों के धार्मिक सर्किट्स के साथ-साथ सूफ़ी सर्किट की भी स्थापना करना चाहती है. इसके लिए देशभर की दरगाहों की फ़ेहरिस्त बनाई जा रही है. ख़ास बात यह भी है कि पर्यटन विभाग भी दरगाहों की जानकारी अपनी वेबसाइट्स पर अपलोड कर रहा है.
हज़रत बल दरगाह
देश के शीर्ष राज्य जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में हज़रत बल दरगाह है. मान्यता है कि इसमें अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दाढ़ी का एक बाल रखा हुआ है. ख़ास मौक़ों पर इसे ज़ायरीनों को दिखाने के लिए रखा जाता है.
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया
देश की राजधानी दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह है. उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मे हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया अपने वालिद के इंतक़ाल के बाद दिल्ली आ गए थे. वे पाकिस्तान के पाकपट्टन के शेख़ फ़रीदुद्दीन गंजशक्कर यानी बाबा फ़रीद के मुरीदो-ख़लीफ़ा हैं.
उनके मुरीदो-ख़लीफ़ा शेख़ नसीरुद्दीन मुहम्मद चिराग़-ए-देहली हैं. हज़रत अमीर ख़ुसरो उनके प्यारे मुरीद हैं, जिनकी दरगाह भी उनके मज़ार के क़रीब में ही है.
ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती
राजस्थान के अजमेर में ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह की दरगाह है. ख़्वाजा अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादों में से हैं. ख़्वाजा की वजह से अजमेर को अजमेर शरीफ़ भी कहा जाता है.
सूफ़ीवाद का चिश्तिया तरीक़ा हज़रत अबू इसहाक़ शामी ने ईरान के शहर चश्त में शुरू किया था. इसलिए इस तरीक़े या सिलसिले का नाम चिश्तिया पड़ गया. जब ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह हिन्दुस्तान आए, तो उन्होंने इसे दूर-दूर तक फैला दिया.
हिन्दुस्तान के अलावा पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी चिश्तिया सिलसिला ख़ूब फलफूल रहा है. दरअसल यह सिलसिला भी दूसरे सिलसिलों की तरह ही दुनियाभर में फैला हुआ है. यहां भी दुनियाभर से ज़ायरीन आते हैं.
सैयद हाजी अली शाह बुख़ारी
महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई में सैयद हाजी अली शाह बुख़ारी रहमतुल्ला अलैह की दरगाह है. हाजी अली भी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादों में से हैं. यह दरगाह मुम्बई के वर्ली तट के क़रीब एक टापू पर बनी मस्जिद के अन्दर है.
सफ़ेद रंग की यह मस्जिद बहुत ही ख़ूबसूरत लगती है. मुख्य सड़क से दरगाह तक जाने के लिए एक पुल बना हुआ है. इसके दोनों तरफ़ समन्दर है. शाम के वक़्त समन्दर का पानी ऊपर आने लगता है और यह पुल पानी में डूब जाता है. सुबह होते ही पानी उतरने लगता है. यहां भी हिन्दुस्तान के कोने-कोने के अलावा दुनियाभर से ज़ायरीन आते हैं.
शेख़ शराफ़ुद्दीन बू अली क़लंदर
हरियाणा के पानीपत शहर में शेख़ शराफ़ुद्दीन बू अली क़लंदर का मज़ार है. यह मज़ार एक मक़बरे के अन्दर है, जो साढ़े सात सौ साल से भी ज़्यादा पुराना है. कहा जाता है कि शेख़ शराफ़ुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने लम्बे अरसे तक पानी में खड़े होकर इबादत की थी.
जब उनकी इबादत क़ुबूल हुई, तो उन्हें बू अली का ख़िताब मिला. दुनिया में अब तक सिर्फ़ साढ़े तीन क़लन्दर हुए हैं. शेख़ शराफ़ुद्दीन बू अली क़लंदर, लाल शाहबाज़ क़लंदर और शम्स अली कलंदर. हज़रत राबिया बसरी भी क़लंदर हैं, लेकिन औरत होने की वजह से उन्हें आधा क़लंदर माना जाता है.
बू अली क़लंदर रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार के क़रीब ही उनके मुरीद हज़रत मुबारक अली शाह का भी मज़ार है. यहां भी दूर-दूर से ज़ायरीन आते हैं.
हज़रत बदीउद्दीन शाह ज़िन्दा क़ुतबुल मदार
उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले के गांव मकनपुर में हज़रत बदीउद्दीन शाह ज़िन्दा क़ुतबुल मदार का मज़ार है.इनके बारे में कहा जाता है कि ये योगी दुर्वेश थे और अकसर योग के ज़रिये महीनों साधना में रहते थे. एक बार वह योग समाधि में ऐसे लीन हुए कि लम्बे अरसे से तक उठे नहीं.
उनके मुरीदों ने समझा कि उनका विसाल हो गया है. उन्होंने हज़रत बदीउद्दीन शाह को दफ़न कर दिया. दफ़न होने के बाद उन्होंने सांस ली. उनके मुरीद यह देखकर हैरान रह गए कि वे ज़िन्दा हैं. वे क़ब्र खोदकर उन्हें निकालने वाले ही थे, तभी एक बुज़ुर्ग ने हज़रत बदीउद्दीन शाह से मुख़ातिब होकर कहा कि दम न मार यानी अब तुम ज़िन्दा ही दफ़न हो जाओ.
फिर उस क़ब्र को ऐसे ही छोड़ दिया गया. इसलिए उन्हें ज़िन्दा पीर भी कहा जाता है. आपकी उम्र मुबारक तक़रीबन छह सौ साल थी. इनके अलावा देशभर में और भी औलियाओं की मज़ारें हैं, जहां दूर दराज़ के इलाक़ों से ज़ायरीन आते हैं और सुकून हासिल करते हैं.
बहरहाल, सूफ़ी सर्किट बनने से इन दरगाहों पर आने वाले ज़ायरीनों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवाई जा सकेंगी. दूर दराज़ से आने वाले ज़ायरीनों के ठहरने की भी समुचित व्यवस्था हो सकेगी. चूंकि सूफ़ियों के अनुयायियों में सभी धर्मों के लोग शामिल हैं, इसलिए इससे धार्मिक पर्यटन को ख़ूब बढ़ावा मिलेगा.
इससे रोज़गार का भी सृजन होगा. सूफ़ी सर्किट के ज़रिये सरकार एक पंथ दो काज के मुहावरे को चरितार्थ करना चाहती है.
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)