बुलंदशहर का मधुसूदन गौशाला और बब्बन मियां

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 31-05-2025
Symbol of Ganga-Jamuni Tehzeeb: Madhusudan Gaushala and Babban Mian
Symbol of Ganga-Jamuni Tehzeeb: Madhusudan Gaushala and Babban Mian

 

madhuगौसेवा को केवल एक धार्मिक दायरे में बांधना उसकी महत्ता को सीमित करना होगा.यह कार्य प्रेम, करुणा और सह-अस्तित्व का प्रतीक है — और यही भावना बुलंदशहर के चांदियाना गांव के रहने वाले बब्बन मियां उर्फ़ ज़ुबैदुर्रहमान के जीवन का आधार है.एक मुसलमान होकर भी उन्होंने जिस श्रद्धा, सम्मान और समर्पण के साथ गायों की सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया, वह केवल गौसेवा नहीं, बल्कि भारत की साझा संस्कृति की जीवंत मिसाल है.

बब्बन मियां बताते हैं कि गायों के प्रति उनका जुड़ाव कोई अचानक उत्पन्न हुआ भाव नहीं है, बल्कि यह उन्हें अपनी मां से विरासत में मिला.उनकी मां स्वयं गायों से बेहद प्रेम करती थीं.उनकी देखभाल किया करती थीं.

जब उनका निधन हुआ, तो बब्बन मियां ने उनकी भावनाओं को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया.एक गौशाला की स्थापना की.इस गौशाला का नाम उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के नाम पर "मधुसूदन गौशाला" रखा — एक ऐसा नाम जो धार्मिक समरसता और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है.

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बब्बन मियां गर्व से बताते हैं, “गौसेवा उनके परिवार में कोई नया कार्य नहीं है, बल्कि यह परंपरा पिछले पचास वर्षों से चली आ रही है.”हालांकि उन्होंने स्वयं करीब दो दशक पहले गौशाला को संस्थागत रूप दिया, लेकिन उनके परिवार की सोच और कार्य सदियों पुरानी सांझी विरासत की उपज है.

उनकी मां की भावनाओं ने ही उन्हें "गोपालक" बना दिया — एक ऐसा परिचय जो आज उनके पूरे परिवार की पहचान बन चुका है.यह प्रेरक गौशाला बुलंदशहर जिले की स्याना तहसील के चांदियाना गांव में स्थित है, जो कि पठानों की 12ऐतिहासिक बस्तियों में से एक है.

इतिहास के अनुसार, शेरशाह सूरी के शासनकाल (16वीं सदी) में ईसा खान नियाज़ी के साथ कई पठान परिवार भारत आए थे और इस क्षेत्र में बस गए.चांदियाना गांव आज भी अपनी ऐतिहासिक विरासत और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है.

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जब बब्बन मियां से पूछा गया कि उन्होंने गौशाला का नाम 'मधुसूदन' क्यों रखा, तो उनका जवाब था, "भगवान कृष्ण न केवल गौपालक थे, बल्कि वे प्रेम, भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक भी हैं.यह नाम भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को दर्शाता है और एक बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर पेश करता है."

बब्बन मियां का कहना है कि उनके पास ज़मीनें हैं, आम के बाग हैं और दिल्ली में रियल एस्टेट का व्यापार भी है.पर जो आत्मसंतोष, सम्मान और आंतरिक सुख उन्हें गौसेवा से मिला है, वह किसी भी व्यवसायिक सफलता से कहीं अधिक मूल्यवान है.

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उन्होंने इस कार्य को कभी सरकारी सहायता या चंदे का मोहताज नहीं बनाया.उनका मानना है कि यह सेवा ही उनकी असली पूंजी है और अल्लाह ने उन्हें इस कार्य के लिए चुना है.

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एक कार्यक्रम में एक पहलवान को सम्मानित करते बब्बल मियां. उपर की तस्वीरों में गोशाला में गोसेवा करते और परिवार के साथ बब्बन मियां.

बब्बन मियां मानते हैं कि भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी गंगा-जमुनी तहज़ीब है, जहां विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और परंपराओं का संगम होता है.उनका कहना है, "हमारी यह सांस्कृतिक विरासत ही भारत की सुंदरता का आधार है.इसी पर गर्व करते हुए हम कहते हैं — 'सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा."

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आज मधुसूदन गौशाला न केवल बुलंदशहर, बल्कि पूरे उत्तर भारत में एक प्रेरक स्थल बन चुकी है.राजनेताओं, समाजसेवियों और फिल्मी हस्तियों से लेकर साधारण ग्रामीणों तक — हर कोई इस गौशाला की प्रशंसा करता है.

रज़ा मुराद, ‘भाभीजी घर पर हैं’ की टीम, पहलवान सोशल कुमार, बॉक्सर संग्राम सिंह जैसे कई प्रसिद्ध व्यक्ति यहां का दौरा कर चुके हैं.

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, मेनका गांधी और गायिका अनुराधा पौडवाल भी यहां एक कार्यक्रम में शरीक हो चुके हैं.

बब्बन मियां की यह कहानी केवल गौसेवा की नहीं, बल्कि उस सोच की भी है जो धर्मों की दीवारों को प्रेम और सेवा के माध्यम से मिटा देती है.

एक मुसलमान का गौसेवा के लिए समर्पण इस बात का उदाहरण है कि भारतीय समाज में भाईचारे और सहअस्तित्व की भावना कितनी गहराई से रची-बसी है.

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एक कार्यक्रम में राज्यापाल आरिफ मोहम्मद खान से सम्मान प्राप्त करते हुए बब्बन मियां.उपर की तस्वीर में बब्बन की मां

बब्बन मियां और उनकी मधुसूदन गौशाला केवल एक संस्थान नहीं, बल्कि एक आंदोलन है — जो भारत की मूल आत्मा, यानी गंगा-जमुनी तहज़ीब, को जीवित रखने का काम कर रही है.

यह कहानी बताती है कि प्रेम, सेवा और सांझी संस्कृति के मार्ग पर चलकर हम एक ऐसे भारत की रचना कर सकते हैं, जहां मज़हब की दीवारें नहीं, दिलों का मेल होता है. बब्बन मियां जैसे लोग ही आज के भारत की असली तस्वीर हैं — जहां इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है, और सेवा ही सबसे बड़ी इबादत.

प्रस्तुति: मंसूरूद्दीन फरीदी

 

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