मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
मिर्जा असदुल्लाह खां ग़ालिब एक ऐसे शायर हैं जिसे किसी जगह कैद करके नहीं रखा जा सकता . उनपर आरोप लगता है कि वह धार्मिक नहीं थे. मेरा मानना है कि वह धार्मिक थे. वह अपनी शायरी में अल्लाह से प्यार भी करते हैं. गिला शिकवा करते हैं .मासूमियत से सवाल भी करते हैं. उनकी शायरी को समझने के लिए एक बार नहीं हजार बार पढ़ना होगा.
उक्त बातें दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पूर्व वाइस चांसलर नजीब जंग ने दिल्ली इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इंस्टीट्यूट ऑफ इंडो पर्शियन स्टडीज द्वारा आयोजित फारसी काव्य परंपरा और गालिब की व्यक्तिगत प्रतिभा (Persian Poetic Tradition and Ghalib’s Individual Talent) में बोलते हुए बुधवार को कहीं.नजीब जंग ने मिर्जा गालिब के शेर
आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में
'ग़ालिब' सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है
पढ़ कर लोगों को समझाने की कोशिश की कि ग़ालिब की शायरी ज्यादातर फारसी भाषा में है. अगर कोई शख्स ग़ालिब की शायरी को समझना चाहता है तो फारसी को भी पढ़े. क्योंकि फारसी के बगैर उनकी शायरी को नहीं समझा जा सकता.
आह को भी चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तर
नजीब जंग ने कहा कि ग़ालिब बहुत जहींन शख्स थे. वह अपनी शायरी में महबूब से बात करने, उनके जुल्फ की बात को भी बड़ी आसानी के साथ कहते हैं. आज भी ऐसी शायरी हमारे नौजवानों को उनके प्रति स्नेह पैदा करता हैं. ग़ालिब के पैगाम को हमें समझना चाहिए.
काँटों की ज़ुबाँ सूख गई प्यास से या रब
इक आबला-पा वादी-ए-पुर-ख़ार में आवे
इंडो पर्शियन अध्यक्ष अख्तरुल हुसैन ने कहा कि ग़ालिब हमारे लिए अनमोल शायर ही नहीं, रत्न के बराबर हैं. वह फारसी के शायर थे. ग़ालिब बहुत चालाक थे. अपनी शायरी को लेकर कभी समझौता नहीं किया. उन्होंने पाँच हजार उर्दू गजलें 6400 कसीदे लिखे हैं.
उन्होंने शायरी के अनुवाद पर बोलते हुए कहा कि कविता को अनुवाद नहीं कर सकते. अगर कोई ऐसा करता है तो फिर शायरी का मजा खत्म हो जाएगा. लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रो अरशदुल कादरी ने कहा कि मुगल साम्राज्य ने भारत को तीन रत्न दिए हैं. जिसमें ताज महल, उर्दू भाषा और मिर्जा ग़ालिब शामिल हैं.
उन्होंने ग़ालिब के एक शेर पेश करते हुए कहा कि ग़ालिब के पास बहुत जानकारियां थी. जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रो. संजय कुमार पांडेय ने कहा कि ग़ालिब मुश्किल वक्त में लिख रहे थे. वह वक्त था जब शायर बादशाह ए वक्त के सामने कुछ बोलने की हिम्मत नहीं रखते थे.
ऐसे में मिर्जा गालिब बादशाह के सामने ही शायरी के अंदाज में बहुत कुछ कह जाते. इस अवसर पर कई विश्वविद्यालय के छात्र और छात्राएं मौजूद थे.