साहित्यकार पहले जीते फिर लिखते थे, अब हड़बड़ाहट में हो रहा है : नासिरा शर्मा

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 14-09-2021
‘ साहित्यकार पहले जीते फिर लिखते थे, अब सबहड़बड़ाहट में हो रहा है ’
‘ साहित्यकार पहले जीते फिर लिखते थे, अब सबहड़बड़ाहट में हो रहा है ’

 

हिंदी दिवस पर विशेष


 
rakshandaसुप्रसिद्ध लेखिका नासिरा शर्मा से आवाज द वाॅयस के लिए डा. रख़्शंदा रूही मेहदी की विशेष बातचीत-
 

 
 
आपके विचार में साहित्य के स्तर में गिरावट के क्या कारण हो सकते हैं ?

नासिरा शर्मा: साहित्य के स्तर में गिरावट तो मैं नहीं कहूंगी. बहुत पहले किसी ने कहा था कि ये पहले क्लास का फ़ोकस नहीं है. ये सैकेंडरी लेखन का, कला का फ़ोकस है. स्तर में परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण जो हुआ है, वह है सोशल मीडिया. यहां पाठक की प्रतिक्रिया फ़ौरन आती है. साहित्य को लेखक पहले जीते थे तब लिखते थे. अब सब हड़बड़ाहट में होता हुआ लगता है.
 
पिछले वक़्त में कोई एक लेखक शताब्दियों तक नामचीन रहता था , अब ऐसा क्यों नहीं है ?

नासिरा शर्माः इसकी कई वजहें हैं. पहले लोग बहुत अच्छे पाठक और लेखक होते थे. वे दूसरे के लिखे को पढ़ते थे और सराहते थे. प्रतिक्रिया देते थेे. उस पर लिखते भी थे. अब लेखक अपने समकालीनों को पढ़ते नहीं हैं. पढ़ने से यह होता  कि आपके अंदर की दुनिया को हल्की सी ठेस लगती है. अर्थात धक्का सा लगता है. इससे आपकी रचनात्मकता उभर कर आती है.  
 
समाज में फैले दुराचार मुख्यतः स्त्रियों के साथ अत्याचार को कम करने में साहित्य लेखन कितना सहायक है ?

नासिरा शर्माः साहित्य बिलकुल सहायक है. ज़माना तो बदला है. सरकारी तौर से भी मदद हुई है. औरतें पढ़ रही हैं तो वह अपने प्रति जागरूक हो रही हैं. साहित्य समाज का दर्पण है. महिला लेखक अपनी व्यथा को अब व्यक्त करती हैं. जो स्त्री की दशा में बदलाव लाने में अवश्य मददगार है.  
 
कहानी में पुराने वक़्त में नैतिक संदेश अवश्य दिया जाता था जो मनुष्य को जागरूक करता रहता था. अब ऐसी रचनाएं पढ़ने में नहीं आतीं. कई बातें इतनी गहराई से लिखी जाती हैं कि बहुत दूर तक आपका ज़हन खोल देती हैं.
कुछ का ख़्याल है उपदेश बुरी चीज़ है,ज़िंदगी न उपदेश से चलती और न संदेश से. पाठक की सोच पर निर्भर है कि वह किस तरह इसे लेता है, हां एक की ज़िंदगी के सवाल अलग हैं. ये सच है कि एक सुकून जो कहानी और उपन्यास को पढ़ कर मिलता है, वह अक्सर ग़ायब है. अब कभी वह ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाता है कभी झुंझलाहट का.    
 
पहले की तुलना में स्त्री लेखन पर विषेशांक बड़ी संख्या में निकलते हैं. क्यों ?

नासिरा शर्माः अच्छी बात है. स्त्री का योगदान हर क्षेत्र में है. उसकी प्रशंसा होनी चाहिए.
 
 फ़ैनिजि़्म की आप पक्षधर हैं ?

नासिरा शर्माः बिलकुल हूं क्यों नहीं हूं. अगर वह मज़लूम है तो मैं उसके साथ खड़ी हूं. मर्द भी अगर औरत का सताया हुआ है तो मैं उसके साथ हूं. मैं लेखक हूं.ं मैं खानों में नहीं बांट सकती. हां, मैं औरत के साथ हूं. औरत बरसों से बड़ी तकलीफ़ों से गुज़री है.
 
 सबसे पहले आपने कहानी, कविता या लेख क्या लिखा ?

नासिरा शर्माः ये याद करना तो मुश्किल है, लेकिन मैंने कविता नहीं लिखी.
 
आप एक प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठ पत्रकार भी हैं. कहानी लेखन और पत्रकारिता का एक साथ होना अचंभित नहीं करता ?

नासिरा शर्माः बिलकुल नहीं. अगर आप में इतना विवेक है. चेतना आपकी मुखर है, तो आप समझ जाते हैं कि हर एक चीज़ पे कहानी नहीं लिखी जाती. हर बात पे लेख नहीं लिखा जाता. और न पत्रकारिता हर विषय पर संभव है.  
 
साहित्य लेखन में परिवार का सहयोग आवश्यक है ?

नासिरा शर्माःबहुत ज़्यादा. जिनको सहयोग नहीं मिलता उनको अच्छे दोस्त मिल जाते हैं. साहित्य में कोई न कोई ऐसा मिले जो बहुत ईमानदारी से आपकी रचनाओं को सुने और अपनी राय दे. आपकी मर्ज़ी है आप उसे सुनें या न सुनें, लेकिन आपका दिमाग़ रोशन हो जाता है.
 
साहित्य की किस विधा में और किस विषय विशेष लिखना आपको सर्वाधिक पसंद है ?

नासिरा शर्माः हां रख्शंदा! पहले मेरा ये इरादा होता था कि एक साल मेरा उपन्यास आए. दूसरे साल मैं कहानी संग्रह दूंगी. ये सिलसिला कुछ देर चला. फिर ये हुआ कि ढेर लग गया कहानी संग्रहों का. फिर उपन्यासों का.
 
अपनी सबसे ज़्यादा पसंदीदा रचना का नाम और पसंद का कारण बताइए ?

नासिरा शर्माः इस सवाल का जवाब मैं नहीं दे पाउंगी. जब तक मैं लिखती हूं, मुझे सबसे प्यारी और अज़ीज़ वह रचना लगती है. जब वह पाठकों तक पहुंच जाती है तो मैं सोचती हूं मेरा काम हो गया. अब पाठक बताएंगे कि मेरी सबसे प्यारी रचना उनको कौन सी लगती है.  
 
अनुवाद का साहित्य में क्या योगदान हैं ?

नासिरा शर्माः अनुवाद एक बहुत बड़ा नेक काम है. दिलो-दिमाग़ इसमें बहुत विशाल चाहिए, क्योंकि आपको दूसरों की रचनाएं पसंद आएं. आप ईष्र्या की जगह दूसरों को पढ़ने के लिए दें और ये तभी होती है जब आपको चाहत आती है दिल में. शिकायतें भी रहती हैं कि अनुवादक को अच्छा पेमेंट नहीं मिलता, लेकिन पहले से काफ़ी बेहतर मिलने लगा है. अनुवादक की इज़्जत भी बहुत होने लगी है अब.
 
हिंदी दिवस के लिए नए उभरते हुए क़लमकारों को क्या संदेश देना चाहेंगी ?

नासिरा शर्माः संदेश तो मंैं क्या दूंगी, हां प्यार से यही कह सकती हूं कि हमने अपने बड़ों से बहुत सीखा और बड़ों को पढ़ा भी हमने. उनकी राय बहुत बड़ी होती है. उसमें ग़ुस्सा होने की कोई बात नहीं होती है. उसको ध्यान से आप लोग सुनें.
जब तक आप दूसरों को ध्यान दे कर पढ़ेंगे नहीं तब तक आप अपनी उत्तमता को नहीं पा सकेंगे. रचना की भाषा के लिए पहले से तय कर लीजिए कि अंग्रेज़ी के षब्दों का प्रयोग कितना करना है. केवल संवाद में या फिर पूरी कहानी में. अभी मैं एक कहानी का अनुवाद कर रही थी. मैं परेशान हो गई उसमें हिंदी के साथ अंग्रेज़ी के इतने सारे शब्दों का प्रयोग था कि कहानी की रवानी अवरुद्ध हो रही थी.
----
एक झलक

नासिरा शर्मा हिंदी महिला साहित्यकारों में एक विख्यात नाम है. उनका जन्म 22 अगस्त सन् 1948 में इलाहाबाद के एक साहित्यिक परिवार में हुआ. उनके पिता उर्दू के प्रोफेसर व श्रेष्ठ कवि थे. नासिरा जी खुद फारसी भाषा साहित्य में एमए हैं. हिंदी तथा उर्दू भाषा के अतिरिक्त अंग्रेजी, पश्तो और फारसी भाषा पर भी उनकी खासी पकड़ है.
 
पत्रकारिता के क्षेत्र में नासिरा शर्मा का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है. वो ईरान की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति, सभ्यता, कला और संस्कृति की विशेष जानकार  मानी जाती हैं. पाकिस्तानी, अफगानी तथा ईरानी राजनीतिज्ञों और बुद्धिजीवियों के साथ उनके साक्षात्कार बहुचर्चित रहे हैं. नासिरा शर्मा ने तीन वर्षों तक जामिया मिलिया इस्लामिया के हिंदी विभाग में अध्यापन कार्य भी किया.
 
नासिरा जी जब सातवीं कक्षा में थीं, उनकी पहली कहानी ‘राजा भैया’ आई थी. 1975 में कहानी ‘बुतखाना’ सारिका के नवलेखन अंक में तथा ‘तक़ाज़ा’ कहानी मनोरमा पत्रिका में प्रकाशित हुई थी.नासिरा जी ने हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. 
 
उनके कुल दस उपन्यास और 10 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. बाल साहित्य, निबंध लेखन, समीक्षा,अनुवाद और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेखनीय है. सन् 1985 में ‘मुजफ्फर अली के निर्देशन’ में ‘काली मोहनी’,’आया बसंत सखी, ‘सेमल का दरख़त’ नामक टेली फिल्मों की कथाएं नासिरा जी की लिखी हुई हैं.
 
उपलब्धियां

  • 1 पत्रकारश्री, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश 1980
  • 2 अर्पण सम्मान, हिंदी अकादमी, दिल्ली 1987-88
  • 3 गजानंद मुक्तिबोध नेशनल अवार्ड, भोपाल 1995
  • 4 महादेवी वर्मा पुरस्कार, बिहार राजभाषा 1997
  • 5 इंडोरशन एवार्ड्स चिल्डरेड लिटरेचर 1999
  • 6 कृति सम्मान, हिंदी अकादमी, दिल्ली 2000
  • 7 वाग्मणि सम्मान,लेखिका संघ जयपुर 2003
  • 8 इंदु शर्मा कथा सम्मान, यू.के 2008
  • 9 नई धारा रचना सम्मान 2009
  • 10 मीरा स्मृति सम्मान, इलाहाबाद 2009
  • 11 बाल साहित्य सम्मान, खतीमा 2010
  • 12 महात्मा गांधी सम्मान, हिंदी संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 2011
  • 13 स्पन्दन पुरस्कार 2013
  • 14 राही मासूम रजा सम्मान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 2014
  • 15 कथाक्रम सम्मान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 2014
  • 16 साहित्य अकादमी पुरस्कार (पारिजात के लिए) 2016
  • 17 व्यास सम्मान (कागज की नाव के लिए) 2019