लखनऊः यहां राम की भूमिका में सलमान तो लक्ष्मण के किरदार में नजर आते हैं अरबाज

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 11-10-2021
पांच दशक पुरानी मुस्लिम परिवार की रामलीला
पांच दशक पुरानी मुस्लिम परिवार की रामलीला

 

मुकुंद मिश्र/ लखनऊ

गंगा-जमुनी तहजीब का जिक्र हो और उसमें लखनऊ की बात न हो, ऐसा मुमकिन नहीं. मुगलों के समय से ही अवध की आबोहवा में यह रचने-बसने का यह सिलसिला शुरू हुआ. रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, जुबान और त्योहारों पर सांप्रदायिक सौहार्द की ऐसी वर्क चढ़ी की इसकी चमक आज भी मिसाल बनी हुई है. साझी संस्कृ़ति की इस छटा के रंग इस नवाबी शहर के बक्शी के तालाब में पिछले पांच दशक से आयोजित की जा रही रामलीला में भी देख सकते हैं. यह रामलीला हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. इस रामलीला में रामायण के ख़ास किरदारों को मुसलमान ही निभाते हैं.

बक्शी का तालाब की इस रामलीला की शुरूआत 1972  में एक मुस्लिम शख्स ने थी. बक्शी का तालाब के तत्कालीन प्रधान मैकू लाल यादव और मुजफ्फर हुसैन की दोस्ती की नींव पर इस रामलीला ने जन्म लिया. दोनों ने मिलकर इसके मंचन की शुरूआत की.

बक्शी का तालाब में इस साल भी रामलीला का मंचन चल रहा है. इसकी खासियत यह कि इसमें 60 प्रतिशत मुस्लिम कलाकार रामायण के विभिन्न किरदारों निभाते हैं. रामलीला के निर्देशन का जिम्मा खुद साबिर खान संभालते हैं. मोहम्मद साबिर खान बताते हैं कि वह करीब 15 साल से रामलीला में एक्टिंग कर रहे हैं. राजा जनक, रावण, कुम्भकर्ण और विश्वामित्र जैसे रामलीला के किरदारों को वे निभा भी चुके हैं. अब वे राजा दशरथ का किरदार निभाते हैं.

 साबिर जहां निर्देशन और राजा दशरथ का किरदार निभा रहे हैं तो वहीं उनके बेटे सलमान, अरबाज और मोहम्मद शेरखान भी इस रामलीला में पूरी शिद्दत के साथ साझी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. शेरखान सीता का किरदार निभा चुके हैं और उनकी किरदार अदायगी के लोग खासे कायल भी हुए. वहीं राम के किरदार में उनके बड़े बेटे सलमान और अरबाज लक्ष्मण के रूप मेँ मंच पर उतरते हैं. हालांकि इस बार सीता की भूमिका में सुशील कुमार मौर्य नजर आ रहे हैं. साबिर बताते हैं कि राम का किरदार निभाने वाले सलमान अभी 22 बरस के हैं तो वहीं अरबाज 20 के हैं. सलमान ख़ान कहते हैं, मैं राम की भूमिका पिछले कई सालों से कर रहा हूं. अब लोग मुझे राम के नाम से ही पुकारने लगे हैं. मैं राम बनता हूं तो रावण एक हिन्दू. रामलीला देखने वाले लोगों को ये कॉम्बिनेशन बहुत अच्छा लगता हैं.

वैसे तो साझी संस्कृति की मिसाल बनी इस रामलीला के मंचन को लेकर हिन्दू-मुस्लिमों दोनों में उत्साह दिखता रहा है, लेकिन कई दौर ऐसे भी आए जब इस पर संकट छाता नजर आया. बख्शी का तालाब के रहने वाले मंसूर अहमद बताते हैं  कि बख्शी का तालाब रमालीला कमेटी के सामने एक बड़ा संकट 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद आ गया था. वे बताते हैं,  रामलीला के मंचन पर भ्रम था. उस वक़्त लोगों का कहना था कि कमेटी के सदस्य ख़ुद आगे आएं और रामलीला करवाएं. मंसूर अहमद बताते हैं कि ऐसा ही हुआ और 1993 में रावण की भूमिका उन्होंने ख़ुद ही निभाई थी. वहीं कोरोना काल में भी पिछले साल इसका मंचन नहीं हो सका.

48 साल के नागेंद्र सिंह चौहान 1982 से बख्शी रामलीला से जुड़े हैं. उन्होंने बताया,  मुज़फ़्फ़र हुसैन जी ने बख्शी का तालाब में इसलिए भी रामलीला शुरू की क्योंकि वहां के लोगों को रामलीला देखने के लिए 25 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था". बख्शी का तालाब की रामलीला दशहरे के दिन से शुरू होती है और तीन दिनों चलती है. मंसूर ख़ान के मुताबिक, उनके पिताजी हिन्दू-मुस्लिम एकता की एक मिसाल पेश करना चाहते थे. ये रामलीलाल न सिर्फ लखनऊ बल्कि पूरे प्रदेश भर में मशहूर हैं. विदेशी भी अगर दशहरा के आस-पास लखनऊ आते हैं तो इस रामलाली को देखते हैं.