खुसरो फाउंडेशनः एक नई पहल

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 10-10-2021
खुसरो फाउंडेशनः एक नई पहल
खुसरो फाउंडेशनः एक नई पहल

 

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प्रो अख्तरुल वासे 

नई दिल्ली. भारत जिस नाजुक दौर से गुजर रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है. भारत धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का देश है और विविधता में एकता के लिए जाना जाता है. इस महान देश के इतिहास का हर युग परोपकार के उदाहरणों से भरा है, जो शक्ति और शांति भक्तों के गीतों का परिणाम है. 

मुझे नहीं पता कि भारत में किसे दिखाई पड़ गया कि सामाजिक निकटता दूरियों में बदल रही है. हालांकि इस देश के निवासियों की एक बड़ी संख्या अभी भी इस असहमति और अलगाव का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन भारी बहुमत भी अगर चुप रहता है, तो वे इसके अस्तित्व को गैर-अस्तित्व में बदल देते हैं.

अब ज्यादातर लोग अपनी जाति के इर्द-गिर्द तवाफ कर रहे हैं. दुख की घड़ी की जगह अकेलेपन के दो-तीन दर्द होते हैं और जो आदमी कभी रेगिस्तान और नदी की अंतरात्मा था, वह आज कैद का घोंसला है.

जख्मी व्यापारी, नफरत के सौदागर, आतंकवादी अपने मन में भारतीय समाज को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं.

इन परिस्थितियों में कोई भी आलस्य से नहीं बैठ सकता है और इसलिए एक बार फिर से उन सभी प्रतीकों को पुनर्जीवित करना आवश्यक है जो लोगों को ‘प्रेम गीत’ और ‘प्यार के ढाई अक्षर’ के साथ एक-दूसरे से जोड़ते हैं, जो मातृभूमि के अनुसार है. जो लोग वहां पैदा होते हैं और वहां रहते हैं, जो इसकी नदियों का पानी पीते हैं, जो अपनी भूख को उसके खेतों में बनाए गए भोजन से संतुष्ट करते हैं. उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि उनका धर्म, भाषा और क्षेत्र हो अलग सकता है, लेकिन उनका संबंध माँ और मिट्टी प्रभु की इच्छा का परिणाम है, जिसने इस दुनिया को बनाया और चलाया. और जिसमें भगवान प्रसन्न होते हैं, सभी प्रसन्न होते हैं, तो अच्छाई और अच्छाई होती है.

भारत में, इंटरकनेक्टर्स के नाम और कार्यों को गिनने में देर नहीं लगेगी. अगर कोई वार्ताकारों के नाम पूछे, तो वह उनके नाम होंगे. याद रखना और बताना बहुत मुश्किल होगा.

इन सबके बावजूद आज ये दूरियां, ये झड़पें और ये हिंसा बार-बार क्यों देखने को मिल रही हैं? इसका सीधा सा जवाब है कि हम भूल गए हैं कि हमें क्या याद रखना है. देवी-देवताओं, पैगम्बरों, संतों और संतों के त्याग, तपस्या, समर्पण और सेवा भाव को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है.

उनके संदेश और शिक्षाओं को एक बार फिर लोगों तक पहुंचाएं. यह वह विचार और चिंता है, जिसके तहत वहीद खेरा, जिनमें रकीम अल-हुरोफ, सिराजुद्दीन कुरैशी और रंजन मुखर्जी शामिल हैं. उन्होंने संयुक्त रूप से जनवरी 2021 में ‘खुसरो फाउंडेशन’ की स्थापना की. उनका नाम हजरत अमीर खुसरो के नाम पर रखा गया है, क्योंकि वे मध्यकालीन भारत के एक प्रिय, दयालु और सार्वभौमिक व्यक्ति हैं, जो सदियां बीतने के बावजूद हमेशा याद किए जाते रहे हैं.

वह एक सूफी और एक सैनिक दोनों थे, वे एक कवि और संगीतकार थे, वे एक इतिहासकार थे. उनके व्यक्तित्व की प्रतिभा ने उन्हें सर्वव्यापी पहलुओं के साथ इस तरह से संपन्न किया है कि मध्यकालीन भारतीय इतिहास में महान नामों के निशान मिट गए हैं, लेकिन मन में वे अभी जीवित हैं. चाहे खुशी के पल हों या निराशा और दुख के घंटे, खुसरो के नाम और शब्द उनके आकर्षण और सार्वभौमिकता के मामले में हमेशा हमारे साथ हैं और सबसे बढ़कर हजरत अमीर खुसरो सुल्तान अल-मसाइख हजरत निजामुद्दीन औलिया के प्रिय अनुयायियों में से एक हैं. और हजरत निजामुद्दीन औलिया उन बुजुर्गों में से एक हैं, जिन्होंने सुलह और शांति को आम बना दिया.

इस ‘तुर्की जाति’ की देशभक्ति न केवल आदर्श है, बल्कि ईर्ष्यापूर्ण भी है. भारत की यह धरती अदन की जन्नत, खुसरो के अनुसार यहां के लोग उसे हर रंग में प्रिय हैं, यहाँ के दरबारों के सामने ईरान का दरबार, तूरान, खुरासान कुछ नहीं.

यहां के लोग हर उद्योग, साहित्य की हर शाखा, ललित कला के हर क्षेत्र और सैन्य प्रशिक्षण की हर शैली से प्यार करते हैं.

उनका कहना है कि यद्यपि उनका (अर्थात भारत के लोगों का) हमारे जैसा कोई धर्म नहीं है, लेकिन उनकी अधिकांश मान्यताएं हमारे जैसी हैं. आज हमें भारत की हर परंपरा, भारत की हर परंपरा को देखने की जरूरत है, चाहे वह धार्मिक, सांस्कृतिक या भाषाई, वैज्ञानिक या साहित्यिक हो. खुसरो की तरह, इसे अपनाएं और इसे दान में दें.

खुसरो, जिनकी माता हिंदी थी और जिनके पिता तुर्की थे, एक भारतीय हैं. जो न केवल भारत की महानता के गीत गाते हैं, बल्कि इस मिट्टी का हिस्सा बनना चाहते हैं. जैसे कि यह मिट्टी ही सब कुछ है और जिसके साथ उनका रिश्ता और प्यार है. अल्ताफ हुसैन हाली ने कहा कि जन्नत मिलने पर मैं तुम्हारी एक मुट्ठी धूल का बदला कभी नहीं लूंगा. शेख इब्राहिम जौक के अनुसारः

गुलहाये रंगारंग से है जीनत चमन

ए जौक इस जहां को है जेब इख्तिलाफ से

(नोटः लेखक जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं.)